नई दिल्ली: 21 दिन के लॉकडाउन को देखते हुए केंद्र सरकार समेत अलग-अलग राज्य सरकारें लगातार यही कोशिश कर रही हैं कि लोगों के पलायन को रोका जाए लेकिन लोग हैं कि वह मानने को तैयार नहीं. बड़ी संख्या में लोग पलायन करने के लिए घरों से निकल चुके हैं. वे अपने गांव और कस्बे तक पहुंचना चाहते हैं.


लोगों का कहना है कि उनके पास खाना और पानी नहीं है लिहाजा वह ऐसे कैसे रह सकते हैं. इसी को देखते हुए दिल्ली सरकार ने आश्रय ग्रह और रैन बसेरों में ऐसे लोगों के लिए खाने और पीने का इंतजाम भी किया हुआ है. दिल्ली सरकार लगातार लोगों से अपील भी कर रही है कि वह पलायन ना करें. लेकिन क्या वाकई में लोग इन रैन बसेरों में रहना चाहते हैं? यही पड़ताल की एबीपी न्यूज़ ने.


पुलिस रैन बसेरों तक ले कर तो आई लेकिन लोग रुके नहीं


आश्रय गृह और रैन बसेरों की पड़ताल के लिए जब एबीपी न्यूज़ की टीम कस्तूरबा नगर स्थित एक रैन बसेरे में पहुंची तो वहां पर मौजूद केयर टेकर ने बताया कि पुलिस पिछले दो दिनों के दौरान दो दर्जन से ज्यादा लोगों को लेकर आई थी जो अपने-अपने कस्बों और गांवों में जाने की कोशिश में लगे थे.


पुलिस और प्रशासन उनको इस रैन बसेरे में ले तो आया लेकिन पुलिस के जाते ही वे लोग भी यहां से खाना पीना खा कर चले गए. उनका कहना था कि हम यहां रुकने के लिए नहीं आए हमें अपने गांव और कस्बे में जाना है और इतना कहकर वह यहां से चले गए.


खाना पानी और छत होने के बावजूद लोग रुकने को नहीं है तैयार


एबीपी न्यूज़ की पड़ताल में निकल कर सामने आया कि इन रैन बसेरों में रहने के अलावा खाने-पीने का भी पूरा इंतजाम है. दो वक्त का खाना यहां पर तैयार किया जाता है जो कि यहां पर रहने वाले लोगों को मुहैया कराया जाता है.


वैसे तो कस्तूरबा नगर के इस रैन बसेरे में 135 लोगों तक के रुकने का इंतजाम किया जा सकता है लेकिन फिलहाल इस रैन बसेरे में सिर्फ 35 लोग ही मौजूद हैं क्योंकि लोग खाना पानी मिलने और छत होने के बावजूद इन रैन बसेरों में रुक नहीं रहे.


रैन बसेरा पहुंचे एक शख्स की अपील, घबराकर ना करें पलायन यहां है सारा इंतजाम


हालांकि इन रैन बसेरों में कुछ ऐसे लोग भी मिले जो पलायन कर सैकड़ों किलोमीटर दूर जाने के लिए घर से निकले थे लेकिन जब पुलिस और प्रशासन उनको हाईवे और आनंद विहार बस अड्डे से यहां पर ले आई तो अब उनको इस बात का एहसास हो रहा है कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की थी.


लिहाजा अब वो लोगों से भी यही अपील कर रहे हैं कि जब इन रैन बसेरों और आश्रय गृह में रहने और खाने का समुचित इंतजाम है तो इस तरह घबरा कर हाईवे की तरफ ना जाए जरूरत हो तो ऐसे रैन बसेरों और आश्रय गृह में आकर रह सकते हैं.


जब हालात सामान्य हों तो उसके बाद अगर वह जाना चाहे तो अपने गांव और कस्बे में जाएं लेकिन फिलहाल ऐसे आश्रय गृह और रैन बसेरों का सहारा ले सकते हैं.


इंतजाम होने के बावजूद लोग कर रहे पलायन


यानी एबीपी न्यूज़ की पड़ताल में यह बात तो जरूर साफ हो गई कि दिल्ली सरकार के आश्रय गृह और रैन बसेरों में लोगों के ठहरने और खाने-पीने के लिए इंतजाम तो जरूर किया जा रहा है लेकिन जो लोग पलायन के लिए घरों से निकल चुके हैं.


उसमें से बड़ी तादाद में लोग ऐसे हैं जो इन रैन बसेरों में रहने के इच्छुक नहीं है. ऐसे लोग केंद्र और दिल्ली सरकार के प्रयासों को एक तरह से विफल भी कर रहे हैं. क्योंकि यह लोग यह समझने को तैयार नहीं कि इनके इस तरह से बाहर निकलने से ना सिर्फ इनको बल्कि बड़ी आबादी को भी नुकसान पहुंच सकता है.


जिस मकसद से लॉकडाउन किया गया है वह भी सफल नहीं होगा. अगर 21 दिनों का लॉकडाउन सफल नहीं हुआ तो इसका खामियाजा देश की एक बड़ी जनता को चुकाना पड़ सकता है.


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