नई दिल्ली: उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगा प्रभावित इलाकों में फिर से काम करने की उम्मीद से लौटे लोगों पर इस बार कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन ने चाबुक चलाया है. आलम यह है कि लॉकडाउन के बाद से इन लोगों को एक वक्त की रोटी भी बमुश्किल नसीब हो रही थी. यही वजह है कि एक बार फिर से ये लोग दिल्ली से पलायन कर पैदल ही अपने गांव को लौट चले हैं.


15 दिन पहले ही लौटे थे गांव से
खजूरी इलाके में बड़ी संख्या में सिलाई की यूनिट लगी हुई है. जहां बड़ी संख्या में लोग काम करते हैं. दंगे की वजह से ये सभी लोग सुरक्षा कारणों के चलते दिल्ली को छोड़कर अपने गांव लौट गए थे. लगभग 15 दिन पहले जब राजधानी दिल्ली की कानून व्यवस्था दुरुस्त हुई और दंगों पर अंकुश लग गया तो ये सभी लोग रोजी-रोटी के चक्कर में एक बार फिर दिल्ली लौटे और काम करने लगे. लेकिन एक बार फिर से कोरोना वायरस के रूप में बदकिस्मती इन पर हावी हो गई और इनकी रोजी रोटी एक बार फिर से बाधित हो गई. आलम यह है कि अब यह सभी लोग अपने गांव लौटने को मजबूर हैं और पैदल ही गांव की तरफ चल पड़े हैं.


3 दिन में एक बार ही खाना हो रहा था नसीब
दिल्ली से पैदल ही अपने गांव को पलायन करने वाले उन लोगों से जब बात की गई तो अधिकतर लोगों का यही कहना था कि अब यहां रह कर एक वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी बहुत मुश्किल हो चला है. तीन दिन में एक बार खाना नसीब हो रहा है. वह भी भर पेट नहीं मिल पा रहा है. किराए के कमरे में रहते हैं. जब खाने के लिए कुछ नहीं है तो किराया कहां से देंगे. इन्हीं सब कारणों की वजह से हम अपने गांव वापस लौट रहे हैं कि चाहे जिस हाल में हो अपने घर वालों के साथ तो रहेंगे.


नहीं पता कब और कैसे पहुंचेंगे
दिल्ली से अपने गांव को लौट रहे लोगों का कहना है कि हमें नहीं पता कब और कैसे हम अपने गांव पहुंचेंगे. क्योंकि रास्ते में पुलिस भी है और हमें यह जानकारी मिली है कि कर्फ्यू जैसा माहौल है. पुलिस रोक भी सकती है. हमारे पास पैसा भी नहीं है. ऐसे में हमारे सामने खाने पीने की समस्या तो है ही और बगैर किसी वाहन के भूखे पैदल गांव तक पहुंचना अपने में एक बड़ी चुनौती है. हम नहीं जानते कि हम किस तरह से अपने गांव तक पहुंचेंगे. बस हम जल्द से जल्द अपने गांव पहुंचना चाहते हैं.


बरेली, बदायूं और बिजनौर के रहने वाले हैं ये लोग
खजूरी से पलायन करते हुए अपने गांव को जा रहे सभी लोग उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूं और बिजनौर जिले के रहने वाले हैं. सभी सिलाई यूनिट में काम करते हैं. एक दूसरे के जानकार हैं और कहीं न कहीं अपने अपने जिले के आस पास के गांव के ही रहने वाले हैं.


ठेकेदार ही गायब है तो पैसा कौन देगा
इन लोगों से जब बात की गई, तो उनका कहना था कि जिस ठेकेदार के नीचे हम लोग काम कर रहे थे, वे ठेकेदार ही अब गायब हो चुके हैं वे सभी अपने अपने परिवार के खर्चे की बात कहकर यहां से चले गए हैं. हममें से किसी को कोई मेहनत मजदूरी नहीं दी गई है. अब काम भी पूरी तरीके से बंद हो चुका है, तो ऐसे में हमें पैसा कौन देगा. सरकार की तरफ से भी अभी तक हमें कोई मदद नहीं मिली है.


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