नई दिल्ली: लॉकडाउन के कड़ाई से पालन के लिए सेना को कमान सौंपने की मांग पर विचार करने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई को गैरजरूरी बताते हुए कहा, "बेहतर हो कि सेना को कहीं भेजने का फैसला सरकार को ही लेने दिया जाए. यह कोर्ट का काम नहीं है."


मुंबई के रहने वाले कमलाकर रत्नाकर शेनॉय की याचिका में कहा गया था कि कोरोना की बीमारी लगातार फैल रही है. फिर भी लोग लॉकडाउन को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. कई जगह लॉकडाउन का पालन करवाने पहुंचे पुलिसकर्मियों पर पथराव किया गया है. मेडिकल मदद देने पहुंचे डॉक्टरों पर भी कई इलाकों में पथराव किया गया है. ऐसे में जरूरत है कि मामला सेना के हाथ में सौंप दिया जाए."


जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और बी आर गवई की बेंच ने याचिका को सुनवाई के लायक नहीं माना. कोर्ट ने टिप्पणी की, "सेना को कहां भेजना है, इसका फैसला सरकार पर छोड़ देना चाहिए." याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, "गुजरात के कुछ हिस्सों में हिंसा के बाद सेना बुलाई गई. आखिर ऐसा पूरे देश में क्यों नहीं हो सकता है?"


इस पर जजों ने कहा, "बेहतर हो आप खुद ही इस याचिका को वापस ले लीजिए. नहीं तो हम इसे खारिज कर देंगे." कमलाकर शेनॉय की याचिका में देश के अलग-अलग हिस्सों में घर वापस जाने की उम्मीद में हजारों मजदूरों के जमा हो जाने की घटनाओं का भी मसला उठाया गया था. इन घटनाओं के पीछे साजिश होने का अंदेशा जताया गया था. यह मांग की गई थी कि मुंबई, सूरत समेत दूसरे शहरों में हुई ऐसी घटनाओं की जांच सीबीआई से करवाई जानी चाहिए. लेकिन आज याचिकाकर्ता के वकील ने इस मांग पर जिरह की ही नहीं. वह पहली मांग पर जोर देते रहे और याचिका खारिज हो गई.


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