SC ने लॉकडाउन के दौरान ज़रूरतमंदों के लिए बंदोबस्त पर जताया संतोष , कहा- सरकार के काम में अभी कोई दखल नहीं देना चाहते
निपुण सहगल
Updated at:
07 Apr 2020 06:12 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट में पिछले हफ्ते सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और स्वामी अग्निवेश की तरफ एक याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि सभी प्रवासी कामगारों को एक सप्ताह के अंदर न्यूनतम मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को दिशा-निर्देश जारी किए जाएं.
(फाइल फोटो)
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह अगले 10-15 दिनों तक कोरोना को लेकर सरकार की तरफ से उठाए जा रहे कदमों में कोई दखल नहीं देना चाहता है. कोर्ट ने यह टिप्पणी लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को आमदनी मुहैया कराए जाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की. सरकार ने कोर्ट को बताया था कि उसकी पहली प्राथमिकता मजदूरों को आवास, भोजन और दूसरी जरूरी चीजें देना है.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और स्वामी अग्निवेश की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि लॉकडाउन के दौरान मजदूर और रेहड़ी-पटरी पर छोटा रोजगार करने वाले लोग बेरोजगार हो गए हैं. सरकार को इनकी आमदनी सुनिश्चित करनी चाहिए. उन्हें पैसे देने चाहिए. कोर्ट ने इस पर सरकार से जवाब मांगा था. जवाब देने के लिए पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का कड़ा विरोध किया.
मेहता ने कहा, “इन लोगों को लगता है कि इनके अलावा सरकार या किसी भी संगठन को गरीबों की चिंता नहीं है. सरकार अपनी तरफ से हर संभव कदम उठा रही है. मजदूरों के पलायन को रोका गया है. उन्हें आवास मुहैया कराया गया है. भोजन और तमाम जरूरी चीजें मुहैया करवाई जा रही हैं. केंद्रीय गृह मंत्री खुद हालात पर नजर बनाए हुए हैं. भविष्य में और भी जरूरी कदम उठाए जाएंगे.“
सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट के सामने आंकड़े भी रखे. उन्होंने बताया कि देश के 578 जिलों में 6 लाख से ज्यादा लोगों को सरकारी इमारतों में ठहराया गया है. स्वयंसेवी संगठनों ने भी 4 लाख से ज्यादा लोगों को शरण दी है. 15 लाख लोगों को उसी फैक्ट्री में या जगह पर रोक दिया गया है, जहां वो मजदूरी करते थे. इन सब लोगों को और दूसरे लोगों को भी भोजन और जरूरी चीजें उपलब्ध कराई जा रही हैं. केंद्र और राज्य सरकारें इस समय 54 लाख से ज्यादा लोगों तक भोजन पहुंचा रही हैं. स्वयंसेवी संगठन भी 40 लाख से ज्यादा लोगों को भोजन दे रहे हैं.
इस पर टिप्पणी करते हुए चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता से कहा, “हमें लगता है कि भोजन लोगों की पहली और सबसे बड़ी जरूरत है. अगर उसे उपलब्ध कराया जा रहा है, और सरकार भविष्य में दूसरी जरूरतों पर भी ध्यान देने का आश्वासन दे रही है तो फिलहाल उसे काम करने देना चाहिए. इस पर याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा है, “गरीबों की जरूरत भोजन जरूर है, लेकिन उन्हें अपने गांव में पैसे भेजने होते हैं. इसलिए सरकार उन्हें पैसे दे.“
सॉलिसिटर जनरल ने प्रशांत भूषण की बात को काटते हुए कहा, “मैंने पहले ही कहा था कि याचिका करने वाले वकीलों को जमीनी हकीकत की कोई जानकारी नहीं है. उनके दिल में आया तो उन्होंने एक याचिका दाखिल कर दी. इस वक्त सरकार को काम करने दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट भी ऐसी याचिकाओं पर अपना समय बर्बाद न करे. इस तरह की याचिकाएं सिर्फ सरकार की ऊर्जा को बर्बाद करती है, जिसे सकारात्मक काम में लगाए जाने की जरूरत है.“
प्रशांत भूषण ने एक बार फिर अपनी मांग को दोहराया. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, “ समझते हैं कि अभी 10-15 दिनों तक सरकार के काम में दखल नहीं देना चाहिए. सरकार हालात को हमसे बेहतर समझती है.“ इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई को टालते हुए कहा कि याचिकाकर्ता सरकार के हलफनामे को देख ले और उस पर जवाब दे. कोर्ट सोमवार को उनकी बात सुनेगा.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह अगले 10-15 दिनों तक कोरोना को लेकर सरकार की तरफ से उठाए जा रहे कदमों में कोई दखल नहीं देना चाहता है. कोर्ट ने यह टिप्पणी लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को आमदनी मुहैया कराए जाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की. सरकार ने कोर्ट को बताया था कि उसकी पहली प्राथमिकता मजदूरों को आवास, भोजन और दूसरी जरूरी चीजें देना है.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और स्वामी अग्निवेश की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि लॉकडाउन के दौरान मजदूर और रेहड़ी-पटरी पर छोटा रोजगार करने वाले लोग बेरोजगार हो गए हैं. सरकार को इनकी आमदनी सुनिश्चित करनी चाहिए. उन्हें पैसे देने चाहिए. कोर्ट ने इस पर सरकार से जवाब मांगा था. जवाब देने के लिए पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का कड़ा विरोध किया.
मेहता ने कहा, “इन लोगों को लगता है कि इनके अलावा सरकार या किसी भी संगठन को गरीबों की चिंता नहीं है. सरकार अपनी तरफ से हर संभव कदम उठा रही है. मजदूरों के पलायन को रोका गया है. उन्हें आवास मुहैया कराया गया है. भोजन और तमाम जरूरी चीजें मुहैया करवाई जा रही हैं. केंद्रीय गृह मंत्री खुद हालात पर नजर बनाए हुए हैं. भविष्य में और भी जरूरी कदम उठाए जाएंगे.“
सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट के सामने आंकड़े भी रखे. उन्होंने बताया कि देश के 578 जिलों में 6 लाख से ज्यादा लोगों को सरकारी इमारतों में ठहराया गया है. स्वयंसेवी संगठनों ने भी 4 लाख से ज्यादा लोगों को शरण दी है. 15 लाख लोगों को उसी फैक्ट्री में या जगह पर रोक दिया गया है, जहां वो मजदूरी करते थे. इन सब लोगों को और दूसरे लोगों को भी भोजन और जरूरी चीजें उपलब्ध कराई जा रही हैं. केंद्र और राज्य सरकारें इस समय 54 लाख से ज्यादा लोगों तक भोजन पहुंचा रही हैं. स्वयंसेवी संगठन भी 40 लाख से ज्यादा लोगों को भोजन दे रहे हैं.
इस पर टिप्पणी करते हुए चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता से कहा, “हमें लगता है कि भोजन लोगों की पहली और सबसे बड़ी जरूरत है. अगर उसे उपलब्ध कराया जा रहा है, और सरकार भविष्य में दूसरी जरूरतों पर भी ध्यान देने का आश्वासन दे रही है तो फिलहाल उसे काम करने देना चाहिए. इस पर याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा है, “गरीबों की जरूरत भोजन जरूर है, लेकिन उन्हें अपने गांव में पैसे भेजने होते हैं. इसलिए सरकार उन्हें पैसे दे.“
सॉलिसिटर जनरल ने प्रशांत भूषण की बात को काटते हुए कहा, “मैंने पहले ही कहा था कि याचिका करने वाले वकीलों को जमीनी हकीकत की कोई जानकारी नहीं है. उनके दिल में आया तो उन्होंने एक याचिका दाखिल कर दी. इस वक्त सरकार को काम करने दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट भी ऐसी याचिकाओं पर अपना समय बर्बाद न करे. इस तरह की याचिकाएं सिर्फ सरकार की ऊर्जा को बर्बाद करती है, जिसे सकारात्मक काम में लगाए जाने की जरूरत है.“
प्रशांत भूषण ने एक बार फिर अपनी मांग को दोहराया. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, “ समझते हैं कि अभी 10-15 दिनों तक सरकार के काम में दखल नहीं देना चाहिए. सरकार हालात को हमसे बेहतर समझती है.“ इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई को टालते हुए कहा कि याचिकाकर्ता सरकार के हलफनामे को देख ले और उस पर जवाब दे. कोर्ट सोमवार को उनकी बात सुनेगा.
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