नई दिल्ली: महामारी से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना की संभावित तीसरी लहर के आने से पहले यदि देश की बड़ी आबादी का टीकाकरण नहीं हुआ, तो हालात संभालना मुश्किल हो जायेगा. चूंकि इस महामारी से निपटने का कारगर हथियार सिर्फ वैक्सीन ही है, लेकिन अभी तो 18 से 44 साल के आयु वर्ग वालों को ही टीका लगवाने के लिए तरसना पड़ रहा है. ऐसे में, उन बच्चों का क्या होगा जिनकी उम्र दो से 12 साल के बीच है और जिन्हें कोरोना का संक्रमण तेजी से अपनी चपेट में ले रहा है. उत्तराखंड इसका ज्वलंत उदाहरण है. वैक्सीन की कमी को लेकर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के चिंता जताने के बाद कल सरकार ने स्पष्ट किया था कि विभिन्न तरह की कुल 12 वैक्सीन पर काम चल रहा है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि ये लोगों को जल्द उपलब्ध हो सके, उसके लिए जिस युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है,उसकी मॉनिटरिंग भी कोई कर रहा है कि नहीं?


देश के विभिन्न राज्यों में वैक्सीन की जो किल्लत बनी हुई है, उससे लोगों में अब एक तरह से डर का माहौल बनने लगा है और उन्हें लगता है कि अगर जल्द वैक्सीन नहीं मिली तो वे संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं. लोगों के इस डर को खत्म करने और महामारी को रोकने का एक ही उपाय है कि केंद्र सरकार कुछ और वैक्सीन निर्माताओं को तत्काल मंजूरी दे, ताकि राज्य अपनी जरुरत के मुताबिक अपने आर्डर बुक करा सकें. वैक्सीन का ऑर्डर देने और उसकी डिलीवरी की पूरी प्रक्रिया में भी वक़्त लगता है,लिहाज़ा केंद्र को हर बार इस पहलू का भी ख्याल रखना होगा. वैसे भी इतनी बड़ी आबादी के लिए वैक्सीन तैयार करना महज दो कंपनियों के बूते की बात नहीं है.


दरअसल, कोरोना के संक्रमण को रोकना जितनी बड़ी चुनौती थी, कुछ वही हाल अब वैक्सीन की किल्लत को लेकर है. पिछले छह दिन से लगातार वैक्सीन की कमी बनी हुई है और कमोबेश हर राज्य का यही हाल है. देश में कुल 754 जिले हैं लेकिन यह जानकर हैरानी होती है कि इनमें से 92 जिलों में कल यानी बुधवार को वैक्सीन की एक भी खुराक किसी को नहीं दी गई. पूरे देश की बात करें, तो बुधवार को सबसे कम यानी 11 लाख 66 हजार ही वैक्सीन की डोज़ दी गईं.


जबकि सोमवार को ये आंकड़ा 13 लाख और मंगलवार को 12 लाख था. देश में केवल छह राज्य ऐसे हैं जहां एक करोड़ से ज्यादा वैक्सीन की डोज दी जा चुकी हैं. ये राज्य हैं- गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा दो करोड़ से ज्यादा डोज दी जा चुकी है.


हालांकि देश में अगले दो महीनों में वैक्सीन संकट खत्म होने का अनुमान है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा है कि भारत इस साल के अंत तक वैक्सीन की 267 करोड़ खुराक हासिल कर लेगा. तब देश इस स्थिति में होगा कि कम से कम देश की पूरी वयस्क आबादी को यह टीका लगा दिया जाए. वैक्सीन की 51 करोड़ डोज जुलाई तक और 216 करोड़ अन्य खुराक अगस्त-दिसंबर के बीच में उपलब्ध होंगी.


वहीं एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया का कहना है कि संभवत अगले दो महीने में टीके बड़ी मात्रा में उपलब्ध हो जाएंगे क्योंकि वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां भारत में उत्पादन करना शुरू कर देंगी. इसके अलावा बाहर से भी वैक्सीन आएगी. हालांकि डॉ गुलेरिया ने ये भी कहा कि वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन की हमेशा कुछ ना कुछ कमी बनी रहेगी.


वैसे इस बीच सरकार ने एक अच्छी खबर दी है कि कोरोना वायरस से बचाने वाले टीके कोवैक्सीन का दो से 18 साल के बच्चों पर ट्रायल अगले 10-12 दिनों में शुरू हो जाएगा. उत्तराखंड से थोड़ी चोंकाने वाली जानकारी सामने आई है. वहां पिछले डेढ़ माह में 16 हज़ार से अधिक बच्चे और 19 साल तक के युवक संक्रमित पाए गए हैं.


स्टेट कंट्रोल रूम कोविड-19 की वेबसाइट के मुताबिक़, इनमें नौ साल की उम्र के 3,020 और और 10 से 19 साल के बीच के 13,393 किशोर शामिल थे. यह आंकड़ा बड़ी तेजी से बढ़ रहा है,लिहाज़ा सवाल उठने लगा है कि क्या उत्तराखंड में कोरोना की तीसरी लहर पहुँच चुकी है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि इसमें सबसे ज़्यादा नुक़सान बच्चों-किशोरों को होगा.


उत्तराखंड में डायरेक्टर नेशनल हेल्थ मिशन डॉक्टर सरोज नैथानी के मुताबिक कहीं ना कहीं ये आँकड़े 'हमें अलर्ट कर रहे हैं.' जबकि विपक्ष का आरोप है कि उत्तराखंड में चाइल्ड स्पेशलिस्ट पर्याप्त संख्या में नहीं हैं. मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशोर उपाध्याय कहते हैं, "इस समय उत्तराखंड में चाइल्ड स्पेशलिस्ट नहीं हैं, उसके साथ ही कोविड से संक्रमित जो बच्चे हैं उनको किस तरह से हमको ट्रीट करना है और मनोवैज्ञानिक तरह से कैसे उनकी मदद करनी है, उसकी राज्य में किसी भी तरह की व्यवस्था नहीं है."