नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में कोरोना का कहर इस तरह से बढ़ रहा है कि मौत की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. आलम यह हो गया है कि छोटे प्राइवेट अस्पतालों में जहां पर मोर्चरी की सुविधा नहीं है, या फिर एक डेड बॉडी रखने की व्यवस्था है. वहां पर कोरोना की वजह से मौत का शिकार बने व्यक्ति की बॉडी को रख पाना मुश्किल हो रहा है. कोविड प्रोटोकॉल के चलते अस्पताल बॉडी देना नहीं चाहता, लेकिन उस बॉडी को सुरक्षित रखने के लिए मोर्चरी की व्यवस्था भी नहीं है. ऐसे में परिजन बॉडी की बेकद्री को लेकर काफी चिंतित रहते हैं.
पिछले कुछ दिनों की बात करें तो इस समस्या से निपटने के लिए शहीद भगत सिंह सेवा दल नामक एक संस्थान ने मोबाइल मोर्चरी की शुरुआत की है, जो एंबुलेंस में रेफ्रिजरेटर रखकर बॉडी को रात भर के लिए सुरक्षित रखते हैं और फिर सुबह के समय अंतिम संस्कार करवा देते हैं.
झिलमिल कॉलोनी में रहने वाले दीपक शर्मा खुद कोरोना के शिकार हो गए थे. वह एक दूसरे फ्लैट में आइसोलेशन में रह रहे थे, लेकिन कुछ दिन पहले उनके 83 वर्षीय पिता की भी तबीयत बिगड़ गई. उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया जिसके बाद उन्हें नजदीक ही स्थित जैन अस्पताल में ले जाया गया. अस्पताल में डॉक्टरों ने जांच करने के बाद बताया कि उनके पिता को निमोनिया हो गया है, जिसे इन दिनों कोरोना का लक्षण भी माना जाता है.
वहां पर जब दीपक शर्मा के पिता एडमिट थे, तो उनकी हालत और बिगड़ गई और उन्हें वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ी. जिसके बाद उन्हें कृष्णा नगर के गोयल अस्पताल में भर्ती करवाया गया. जहां पर एक वेंटिलेटर बेड मिल गया. वहां पर अगले दिन सुबह उनकी हालत और ज्यादा बिगड़ गई, जिसके बाद डॉक्टरों ने कहा कि इन्हें किसी मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल ले जाया जाए. हम दिन भर अलग-अलग अस्पतालों में बेड का पता करते रहे, चाहे वह बीएल कपूर हो या और बड़े अस्पताल हो, लेकिन कहीं पर भी हमें बेड की व्यवस्था नहीं मिली. देर रात लगभग 10-10:30 बजे मेट्रो अस्पताल में बेड की व्यवस्था हुई. इससे पहले कि हम अपने पिता को उस अस्पताल में शिफ्ट कर पाते, गोयल अस्पताल से हमें फोन आया कि आपके पिता की मृत्यु हो गई है.
उन्होंने कहा कि इसके बाद मैं वहां पर पहुंचा तो उन्होंने कहा कि कोविड प्रोटोकॉल के तहत अभी आपके पिता की बॉडी आपको नहीं दी जा सकती है. कल सुबह आप ले जाइएगा. हमने उनसे पूछा कि आपके अस्पताल में मोर्चरी है. इस पर उन्होंने कहा कि हमारे अस्पताल में मोर्चरी तो नहीं है, फिर हमने उनसे पूछा कि आप किस तरीके से इस बॉडी को सुरक्षित रख पाएंगे. तब उनके पास कोई जवाब नहीं था.
उनका कहना था कि प्रोटोकॉल के तहत आपको फिलहाल यह बॉडी घर नहीं ले जानी है. इसके बाद शहीद भगत सिंह सेवा दल से संपर्क किया, क्योंकि मैं भी उस संस्थान से जुड़ा हुआ हूं. हमने अस्पताल से बात की कि आप बॉडी को इस मोबाइल मोर्चरी में रखवा दें. चाहे इस मोबाइल मोर्चरी को अपने अस्पताल के बाहर खड़ा करवा लीजिए. वह मान गए और हमने इस संस्थान की पार्किंग में रात भर के लिए बॉडी को मोबाइल मोर्चरी में सुरक्षित रखवाया, सुबह एक बार फिर से अस्पताल में बॉडी को लेकर गए, जहां से सारी फॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद पिता के शव का अंतिम संस्कार सीमापुरी श्मशान घाट में किया गया.
शहीद भगत सिंह सेवादल के जितेंद्र सिंह शंटी ने बताया कि हमारी संस्थान के पास रोज मोबाइल मोर्चरी के लिए फोन आते हैं. छोटे प्राइवेट अस्पतालों में मोर्चरी की सुविधा नहीं है. ऐसे में जिस तरीके से कोविड के पेशेंट्स की मौत हो रही है, उनकी बॉडी को सुरक्षित रखने के लिए मोर्चरी की आवश्यकता होती है. लेकिन मोर्चरी न होने की वजह से बॉडी खराब होने का खतरा बढ़ जाता है. हमने इस समस्या को दूर करने के लिए मोबाइल मोर्चरी की शुरुआत की है, जो बिल्कुल निशुल्क है.
उन्होंने कहा कि हमारे पास एंबुलेंस है और रेफ्रिजरेटर है. जब हमारे पास ऐसा कोई मामला आता है, जहां पर अस्पताल में मोर्चरी की सुविधा नहीं है, तो हम इस मोबाइल मोर्चरी को भिजवा देते हैं. जहां से बॉडी रखने की रिक्वेस्ट आती है और शव का संस्कार प्रोटोकॉल के तहत करवा देते हैं. अगर हम पिछले हफ्ते 10 दिनों की बात करें, तो कोविड की वजह से मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है.