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बिहार: इस गांव में सालों पहले बसाई गई थी चमगादड़ों की बस्ती, दैवीय रूप मानकर लोग करते हैं संरक्षण

सुपौल जिले का त्रिवेणीगंज प्रखंड में बसा लाहर्निया गांव, जहां सैकड़ों एकड़ में बसे चमगादड़ की बस्ती है. यहां के लोग इसका संरक्षण कर रहे हैं. लाखों की संख्या में बसे इन चमगादड़ों को यहां के लोग दैवीय रूप मानते हैं.

बिहार: आईसीएमआर की रिपोर्ट में बताया गया है कि चमगादड़ो में कोविड 2 टाइप का वायरस पाया जाता है. ऐसे में जब पूरा विश्व कोरोना से जूझ रहा है, तो ये रिपोर्ट डरावनी हो सकती है. सुपौल में एक गांव ऐसा भी है जहां, सैकड़ों एकड़ में कई साल पहले चमगादड़ों को बसाया गया और वहां के लोग आज भी इसे दैवीय रूप मानकर इसका संरक्षण कर रहे हैं.

सुपौल जिले का त्रिवेणीगंज प्रखंड में बसा लाहर्निया गांव, जहां सैकड़ों एकड़ में बसे चमगादड़ की बस्ती है. यहां के लोग इसका संरक्षण कर रहे हैं. लाखों की संख्या में बसे इन चमगादड़ों को यहां के लोग दैवीय रूप मानते हैं. लोगों की मान्यता है कि ये चमगादड़ किसी घटना का पूर्वानुमान कराते हैं, तो इसे कैसे हटा दें.उन्हें इस चमगादड़ से कोरोना होने का तनिक भी भय नहीं सताता है.

इलाके के रहने वाले अजय सिंह बताते हैं, "ये चमगादड़ हमारे पूर्वज से पहले आए हुए हैं. इन चमगादड़ों ने आज तक हम लोगों का नुकसान नहीं किया है. मैं उदाहरण देकर बता सकता हूं. साल 2008 में बाढ़ आई थी, जिसमें सिर्फ मेरा गांव बचा था. वो भी इन चमगादड़ों के चलते हुआ था. मेरे गांव में अभी 5 लाख चमगादड़ हैं, इनके रहने के लिए 3 आम के पेड़ और एक लीची का बागान दिया है. एक बात मुझे याद है. भयानक भूकंप से पूर्व सारे चमगादड़ मेरे कैंपस के ऊपर मंडराने लगे, जिसे देखने के लिए हम लोग बाहर निकले, जैसे ही बाहर निकले उसके तुरंत बाद भूकंप आया."

अजय सिंह ने बताया कि कोई भी त्रासदी आने से पहले ये चमगादड़ उन्हें पहले ही आभास करा देते हैं. उन्होंने कहा, "जब मैंने अपने दादा जी से पूछा कि ये चमगादड़ यहां कब से हैं, तो उन्होंने कहा कि हम लोगों को भी नहीं पता है. यह चमगादड़ कब से है, बात ये है कि एक ही परिवार नहीं सारे गांव के लोग भी इस चमगादड़ को संरक्षण देते हैं. कोई चमगादड़ को डिस्टर्ब ना करे. कोई बहेलिया या शिकारी चमगादड़ को पकड़ने या मारने आता है तो, गांव का कोई भी शख्स देख लेता है, तो उसके साथ मारपीट करके उसको भगा देता है या उसको पुलिस के हवाले कर देता है."

उन्होंने कहा, "एक बार रात को पता चला कि आम के पेड़ पर तीन चार लोग बैठे हुए हैं. तब हम लोग देखने गए, तो वहां जाकर देखा कि नेट लगाकर चार बहेलिया वृक्ष के ऊपर बैठे हुए हैं, जिसको सारे ग्रामीणों ने मिलकर पकड़ लिया और लेकर आए. उसके साथ मारपीट करने लगे. नौबत यहां तक आ गई कि उसको जान से मार दिया जाता, तब तक हमने पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस आई और तीनों को पकड़ के ले गई. पूर्वज हम लोगों को बोलकर गए हैं कि इसको कोई परेशान न करे. जब तक चमगादड़ गांव में हैं, तुम्हारा नुकसान कोई नहीं करेगा. यही कारण है कि आज तक हम लोगों का कोई नुकसान नहीं हुआ है. हम लोगों को कोरोना का कोई डर नहीं है. इसमें डरने की क्या बात है. यह तो हम लोगों का पूर्व संकेतक है. कोरोना जहां फैलता है, वहां फैलता है हम लोग तो 5 लाख की संख्या में इसको पाले हुए हैं."

जिला प्रशासन ने भी इस रिपोर्ट के आने के बाद पशुपालन और स्वास्थ्य महकमे को सजग कर दिया है. डीएम महेंद्र कुमार बताते हैं कि अब तक चमगादड़ों से इंसान के शरीर में किस तरह से कोविड का असर होता है, इसकी पुष्टि नही हुई है, लेकिन जिला प्रशासन वहां के लोगों को इस समस्या के लिए जागरूक करेगी और अगर किसी में कोरोना के लक्षण मिलते हैं, तो आगे की करवाई की जाएगी.

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