कोरोना वायरस से इलाज की अभी तक दवा या वैक्सीन इजाद नहीं हुई है. इसके खतरे को देखते हुए बचाव ही को सबसे कारगर साधन माना जा रहा है. चंद उपाय जैसे मास्क, सोशल डिसटेंसिंग, क्वारंटाइन या हैंड सैनेटाइजर को अपनाकर वायरस के ट्रांसमिशन से बचा जा सकता है. ये चंद सावधानियां बरतने से आप खुद भी कोरोना वायरस के संक्रमण से बच सकते हैं और दूसरों को भी इसकी महामारी से सुरक्षित रख सकते हैं. लेकिन सोशल डिसटेंसिंग और क्वारंटाइन क्या है ? क्या इसको लेकर आपके मन में कोई उलझन है ? आइए जानते हैं जिनके बारे में विशेषज्ञ महामारी के समय मशविरा दे रहे हैं.


सोशल डिसटेंसिंग या सामाजिक दूरी 


सोशल डिसटेंसिंग को सामाजिक दूरी भी कहा जाता है. वायरस के संक्रमण को रोकने में ये एक अहम उपाय है. खासकर उस वक्त जब बीमारी महामारी की शक्ल अख्तियार कर जाए. सोशल डिसटेंसिंग का मतलब है खुद को भीड़भाड़ वाली जगह से दूरी बनाना. यानी आप शॉपिंग मॉल, सिनेमा घर, क्लब, शैक्षणिक संस्थान, मेला या पार्क जैसी जगहों पर ना जाएं. लोगों से गैर जरूरी मिलना-जुलना बंद कर दें और सफर से परहेज करें. अगर आपको किसी से जरूरी हालत में मिलना भी है तो कम से एक मीटर की दूरी बनाए रखें.


क्वारंटाइन का मतलब


क्वारंटाइन सोशल डिसटेंसिग से एक कदम आगे आगे है. क्वारंटाइन का शब्द अंग्रेजी में इतालवी भाषा से आया है. इतालवी में 40 की गिनती के लिए क्वारंटा बोला जाता है. क्वांराता का अर्थ 40 दिन का समय होता है. मेडिकल साइंस में इसका अर्थ होता है विदेश से आनेवाले लोगों या वहां से लाये गये लोगों को कुछ समय के लिए अलग-थलग कर देना. कोरोना वायरस से प्रभावित मुल्कों से आनेवालों लोगों का क्वारंटाइन किया जाता है. हालांकि उनमें इसके लक्षण सामने नहीं आए हों तब भी उन्हें अलग-थलग करने की जरूरत पड़ती है. इस तरह वायरस के ट्रांसमिशन को रोका जा सकता है. जबकि आइसोलेशन का मतलब होता है लक्षण सामने आने के बाद इलाज के लिए अस्पताल में अलग-थलग करना. क्वारंटाइन में गए लोगों के कोरोना के लक्षण की मॉनिटरिंग की जरूरत पड़ती है. अगर कोरोना के लक्षण सामने आ गये तब ऐसे शख्स को अस्पताल में आइसोलेट कर दिया जाता है.


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