नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 सितंबर को मंद पड़ती आर्थिक वृद्धि और निवेश में तेजी लाने के इरादे से कंपनियों के लिये कई उपायों की घोषणा की. वित्त मंत्री ने कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का एलान किया. सरकार ने नया कॉरपोरेट टैक्स 25.17 फीसदी तय किया है.


सरकार के एलान के बाद अब कॉरपोरेट टैक्स की दर 22 फीसदी हो गई है. वित्तमंत्री ने कहा कि एक अक्टूबर के बाद बनने वाली घरेलू विनिर्माण कंपनियां बिना किसी प्रोत्साहन के 15 प्रतिशत की दर से आयकर भुगतान कर सकेंगी. इन कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स की दर 17.01 प्रतिशत होगी. कंपनियों को अब दो प्रतिशत सीएसआर की राशि आईआईटी, एनआईटी और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं पर खर्च करने की भी छूट दी गयी है. छूट/प्रोत्साहन का लाभ उठाने वाली कंपनियों के लिए, मिनिमम अल्टरनेट टैक्स (MAT) की दर 18.5 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत कर दी गई है.


जुलाई में बजट में घोषित एक हायर सरचार्ज, अब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) और साथ ही व्यक्तियों और निवेशकों के अन्य वर्गों द्वारा किए गए इक्विटी की बिक्री पर पूंजीगत लाभ पर लागू नहीं होगा. इसके अलावा, सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा शेयरों के बायबैक पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, जिन्होंने 5 जुलाई 2019 से पहले बायबैक प्लान की घोषणा की है.


वैश्विक स्तर पर इन दरों की तुलना कैसे की जाती है?


नई दरें भारत को कुछ मामलों में करीब लाती हैं, जो उभरते और औद्योगिक देशों में से कई में प्रचलित दरों से कम हैं. भारत में नई कॉरपोरेट टैक्स दरें संयुक्त राज्य अमेरिका (27 प्रतिशत), जापान (30.62 प्रतिशत), ब्राजील (34 प्रतिशत), जर्मनी (30 प्रतिशत) से कम होंगी और चीन (25 प्रतिशत) और कोरिया (25 प्रतिशत) के समान हैं. भारत में 17 प्रतिशत की प्रभावी टैक्स दर के साथ नई कंपनियां सिंगापुर में कॉरपोरेट्स (17 प्रतिशत) के बराबर भुगतान करेंगी.


यह क्यों किया गया है?


नया उपाय भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए अब तक का सबसे बड़ा और सबसे साहसिक कदम है, जिसे हाल ही में वैश्विक विकास इंजन के रूप में लाया गया था. इसका लक्ष्य भारत को निवेशकों के प्रिय स्थान में बदलना है. यह आर्थिक प्रबंधन पर बात करने के लिए सरकार के इरादे को प्रदर्शित करता है. साथ ही निवेशकों के विश्वास को बहाल करता है और भावनाओं और मांग को बढ़ाता है.


भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में छह सालों में सबसे खराब मंदी से गुजर रही है. कार शोरूम, खुदरा मॉल और किसानों से संबंधित हाल के महीनों के आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था खराब दौर से गुजर रही है. 30 अगस्त, 2019 को जारी आधिकारिक राष्ट्रीय आय के आंकड़ों ने इन आशंकाओं की पुष्टि की. अप्रैल-जून 2019 में भारतीय अर्थव्यवस्था 5 प्रतिशत बढ़ी, जो पिछले साल की समान तिमाही में 8 प्रतिशत थी और पिछली तिमाही (जनवरी-मार्च 2019) में 5.8 प्रतिशत थी, जिसका मतलब साफ है कि लोग कार और टीवी जैसी आकांक्षी वस्तुओं की खरीदारी कम कर रहे हैं.


सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) के आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल-जून के दौरान यात्री वाहन की बिक्री में 18.42 प्रतिशत की गिरावट आई है. पिछले साल की तुलना में इस दौरान सभी श्रेणियों में वाहनों की बिक्री में 12.35 प्रतिशत की गिरावट आई है. उचित नीतिगत हस्तक्षेपों को लेकर सरकार पर दबाव था. 23 अगस्त, 2019 को, सीतारमण ने भारत की व्यापक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के उपायों की घोषणा की. सरकार ने 2019-20 के बजट में पेश किए गए कुछ विवादास्पद उपायों को वापस ले लिया, जिसमें भारत के इक्विटी बाजारों में निवेश करने वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) द्वारा किए गए पूंजीगत लाभ पर बढ़ाया गया सरचार्ज शामिल है.


इससे क्या हासिल होगा?


इस कदम से भारतीय कॉरपोरेट इकोसिस्टम की प्रॉफिटेबिलिटी गतिशील रूप से बदल जाएगी. कम टैक्स का परिणाम आदर्श रूप से हायर प्रॉफिट मार्जिन होना चाहिए. कम कॉर्पोरेट आयकर दरों और प्रॉफिटेबिलिटी में परिणामी बदलाव से कंपनियों को अधिक निवेश करने की संभावना होगी, जिससे उनका पूंजीगत व्यय (capex) बढ़ेगा. यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होगा, जिनके पास फंड है.


भारतीय अर्थव्यवस्था में समस्या कम मांग के बारे में अधिक है. लोग कम सामान खरीद रहे हैं और कंपनियों के पास अनसोल्ड इन्वेंट्रीज़ का माउंट है. ये उपाय कैसे उपभोक्ता मांग को पुनर्जीवित करने में मदद करेंगे? सबसे दिलचस्प यही देखना रहेगा.


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