पुणेः कोरोना वायरस महामारी पर भारतीय रिसर्चर्स के एक रिसर्च में सामने आया है कि जिन देशों में स्वच्छता की स्थिति अच्छी नहीं है और लॉ क्वालिटी की वाटर सप्लाई है, उनमें अमीर देशों की तुलना में कोविड-19 मृत्यु दर (सीएफआर) कम है. हालांकि रिसर्चर्स ने यह भी कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि स्वच्छता की खराब स्थिति डिजाइरबल है.


काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) के महानिदेशक डा. शेखर मांडे ने कहा कि इस निष्कर्ष से सूक्ष्म जीव चिकित्सा की संभावनाओं के इम्यून ट्रैनिंग की खोज की जा सकती है. नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंस (एनसीसीएस) और चेन्नई मैथेमेटिकल इंस्टीट्यूट के रिसर्चर्स ने यह स्टडी की है.


106 देशों और 25 -30 पैरामीटर्स पर स्टडी
स्टडी के पब्लिश्ड पेपर के अनुसार इसमें 106 देशों और 25 से 30 पैरामीटर्स स्टडी की गई. इनमें डेमोग्राफी, कम्युनिकेबल और नॉन- कम्युनिकेबल डिजीज की व्यापकता, बीसीजी वैक्सीनेशन, स्वच्छता और प्रति दस लाख में से कोविड-19 से हुई मौतों को शामिल किया गया.


डा. मांडे के अनुसार, ‘प्रति 10 लाख लोगों में मौत के आंकड़े उन देशों में ज्यादा हैं जो समृद्ध हैं और हाइ जीडीपी है, कम जीडीपी वाले देशों में कम लोग मर रहे हैं, जो बहुत विरोधाभासी है.’


अमीर देशों में ऑटो-इम्यून डिजीज का प्रसार
उच्च जीडीपी वाले देशों में रहने वाले 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों कोविड-19 से ज्यादा खतरा है. समृद्ध देशों में उन्होंने ऑटो-इम्यून डिजीज का प्रसार भी पाया.


ऑटो-इम्यून डिजीज जैसे मल्टीपल स्केलेरोसिस, टाइप 1 डायबिटीज मेलिटस, रुमेटीइड आर्थराइटिस, अस्थमा आदि अमीर देशों में प्रचलित हैं. क्योंकि उनके पास बहुत अच्छी स्वच्छता प्रणाली है, जैसे कि हाथ धोने, पीने का पानी, खुले में शौच नहीं जाना आदि. उच्च जीडीपी वाले देशों में ऑटो-इम्यून डिजीज के अधिक मानकों को परखा गया. रिसर्च पेपर के अनुसार कम जीडीपी वाले देशों में स्वच्छता की कमी को हाई कम्युनिकेबल डिजीज के लिये जिम्मेदार माना जाता है.
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