वाराणसी कोर्ट ने 12 सितंबर को ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने फैसले में कहा ज्ञानवापी केस में हिंदू पक्ष की अपील सुनवाई के योग्य है. दरअसल मुस्लिम पक्ष की ओर से इस केस पर सुनवाई न करने के लिए कहा जा रहा था. उन्होंने सुनवाई न करने के पीछे उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम यानी Places of worship (special provisions) act 1991 का हवाला दिया था. इस पूरे मामले को समझने के लिए आइये जानते हैं कि आखिर ज्ञानवापी मस्जिद की कहानी क्या है.
क्या है मामला
कहा जाता है कि ज्ञानवापी मस्जिद से पहले यहां एक मंदिर हुआ करता था. जिसे मुगल शासक औरंगजेब ने तुड़वाया और मस्जिद का निर्माण किया गया. दावा है कि इस जगह औरंगजेब ने 1699 में काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई है.
इस विवाद पर ABP न्यूज से बात करते हुए वकील मनोज कुमार ने कहा कि यह मामला आज से नहीं बल्कि साल 1991 से चला आ रहा है. उस वक्त सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा, हरिहर पांडे ने याचिका दायर की थी.
कहा गया कि मस्जिद में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ है. वर्तमान में विवाद तब छिड़ गया जब पांच महिलाओं ने वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर कर काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी स्थल की पूजा की अनुमति मांगी थी.
जिसके बाद सिविल जज ने वीडियोग्राफी का आदेश दिया. वीडियोग्राफी के दौरान वजू खाने में ऐसा दावा किया गया कि वहां कोई शिवलिंग है. जिसके बाद वहां वजू पर पाबंदी लगा दी गई और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया.
सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद से नमाज की पाबंदी हटा दी और वजू खाने को प्रीजर्व करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि ये बहुत संवेदनशील मुद्दा है इसको सिविल जज के वजाय वाराणसी के वरिष्ठ डिस्ट्रिक जज सुने.
क्या हैं दोनों पक्ष के दावे?
इस पूरे विवाद में हिंदू पक्ष की मांग है कि ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंप दिया जाए क्योंकि यहां मंदिर था जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई. हिंदू पक्ष का कहना है कि इस मामले में 1991 का वॉरशिप एक्ट लागू नहीं होता साथ ही उनकी मांग है कि ज्ञानवापी में मुस्लिमों की एंट्री को बंद किया जाए और मस्जिद के गुंबद को ध्वस्त करने का आदेश दिया जाए.
वहीं, मुस्लिम पक्ष हिंदू पक्ष के दावे को बेबुनियाद मानता है और उनका कहना है कि ज्ञानवापी मामले में सुनवाई करने जैसा कुछ नहीं है. वजू खाने में शिवलिंग मिलने की बात पर मस्लिम पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी में ‘शिवलिंग’ नहीं फव्वारा है. उनका कहना है कि इस मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम यानी Places of worship (special provisions) act 1991 के तहत सुनवाई नहीं हो सकती.
क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?
वकील मनोज कुमार ने बताया कि उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम को साल 1991 में नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के समय बनाया गया था. उस वक्त राम मंदिर का मुद्दा काफी जोरों पर था. राम मंदिर आंदोलन के बढ़ रहे प्रभाव के कारण अयोध्या के साथ ही कई और जगह मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगा था. इन्हीं मुद्दों को शांत करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा इस कानून को लाया गया.
उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम के तहत देश आजाद होने यानी 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म की उपासना स्थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता.
इस कानून के तहत अगर कोई ऐसा करता है तो सजा के तौर पर उस जेल भेजा जा सकता है. प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के मुताबिक आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा. इसके अलावा इस कानून के तहत इन धार्मिक स्थलों को तोड़ा या नया निर्माण नहीं किया जा सकता है.
वकील मे बताया कि उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम के तहत अगर ये साबित हो जाए कि वर्तमान धार्मिक स्थल को किसी दूसरे धर्म के स्थल को तोड़कर बनाया गया है तो भी इसे दूसरे पंथ के स्थल में भी नहीं बदला जाएगा.
हालांकि अयोध्या विवाद को इस कानून के दायरे से अलग रखा गया था इसके पीछे तर्क दिया गया कि यह मामला काफी पहले यानी अंग्रेजो से समय से ही कोर्ट में था. इसलिए इसे अलग रखा जाएगा.
नरसिम्हा राव सरकार के बनाए कानून की भी व्याख्या होगी?
वकील मनोज ने कहा कि इस मामले में वाराणसी कोर्ट के फैसले का असर मथुरा और तमाम ऐसे ही विवादों या मामलों पर पड़ेगा जो वर्शिप एक्ट के तहत आते हैं.
ऐसा हो सकता है कि इस कानून की व्याख्या की जाए और डिटेल में बताया जा सकता है कि इस कानून के अंदर क्या-क्या नियम हैं. ज्ञानवापी के अलावा ताजमहल को लेकर दावा किया गया है कि वहां पहले शिवमंदिर था.
वहीं मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के बराबर में स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर दावा किया गया है कि यहां पर भी मस्जिद से पहले मंदिर स्थित था जिसे तोड़ा गया और मस्जिद का रूप दे दिया गया.
इसके अलावा धार में हिंदुओं के मंदिर पर मस्जिद बनाने का मामला. दिल्ली में कुतुबमीनार का नाम बदलकर विष्णु स्तंभ रखने की मांग, जौनपुर में अटला देवी के मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने का दावा भी किया जा रहा है.