नई दिल्ली:  दिल्ली के जंतर मंतर और बोट क्लब जैसी जगहों पर धरना-प्रदर्शन पर लगी रोक सुप्रीम कोर्ट ने आज हटा ली. हालांकि, कोर्ट ने कहा है कि इन जगहों पर प्रदर्शन की इजाज़त से पहले 'उचित शर्तें' लगाई जाए. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से 2 महीने में इस मसले पर नियम बनाने को कहा है.


क्या है मामला?
मज़दूर किसान शक्ति संगठन नाम की संस्था ने नई दिल्ली क्षेत्र में लगातार धारा 144 लगाए रखने को चुनौती दी थी. उसका कहना था कि दिल्ली पुलिस की ये कार्रवाई शांतिपूर्वक विरोध करने के मौलिक अधिकार का हनन करती है. इसके अलावा कई और संगठनों ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें जंतर मंतर में धरना-प्रदर्शन पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गयी थी. NGT ने जंतर मंतर के आस-पास रहने वाले लोगों को भीड़ और शोरशराबे से होने वाली परेशानियों के मद्देनज़र ये आदेश दिया था.


एक याचिका में संसद ने नज़दीक बोट क्लब में पहले होने वाले प्रदर्शनों का हवाला दिया गया था. वहां भी दोबारा इजाज़त की मांग की गई थी. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सत्ता के केंद्र के नज़दीक अपनी मांग उठाना उनका हक है. NGT के आदेश के बाद संसद और मंत्रालयों से कई किलोमीटर दूर धरना-प्रदर्शन करना पड़ रहा है.


कोर्ट का फैसला?
जस्टिस ए के सीकरी और अशोक भूषण ने अपने फैसले में कहा है कि नई दिल्ली क्षेत्र में प्रदर्शन पूरी तरह नहीं रोके जा सकते. उचित शर्तों के साथ उनकी इजाज़त दी जानी चाहिए. कोर्ट ने माना है कि जंतर मंतर के नज़दीक रहने वाले लोगों को होने वाली दिक्कतों पर NGT का आकलन सही है. लेकिन प्रदर्शनों पर पूरी तरह रोक नहीं लगनी चाहिए थी. कोर्ट ने कहा है कि जंतर मंतर पर प्रदर्शन की इजाज़त देते वक्त वहां के लोगों की परेशानी का ध्यान रखा जाए.


कोर्ट का सुझाव है कि :-
* धरना-प्रदर्शन की जगह सीमित की जाए. उन्हें पूरे जंतर-मंतर रोड पर कब्ज़ा न करने दिया जाए
* जिस प्रदर्शन में लोगों की बहुत बड़ी संख्या जुटनी हो, उसे अनुमति न दी जाए
* लाउडस्पीकर का इस्तेमाल सीमित कर दिया जाए. ध्वनि प्रदूषण की सीमा के तहत ही आवाज़ का स्तर सुनिश्चित किया जाए
* रात के समय किसी किस्म की नारेबाज़ी न हो
* धरना देने वालों को अनिश्चितकाल तक न बैठने दिया जाए. इसकी समय सीमा तय की जाए


बोट क्लब पर आदेश ?
कोर्ट ने कहा है कि शांतिपूर्वक अपनी बात रखना नागरिकों का हक है. हालांकि, इस बात को पूरी तरह नहीं माना जा सकता कि विरोध प्रदर्शन की जगह चुनने की उन्हें पूरी आजादी है. बोट क्लब के आस-पास की जगह की संवेदनशीलता को देखते हुए कड़ी शर्तें ज़रूरी हैं. मसलन, प्रदर्शनकारियों की बेहद सीमित संख्या, संसद/मंत्रालयों से उनकी दूरी तय होना, जानवर-हथियार लाने की बिल्कुल इजाज़त नहीं होना, राष्ट्रपति/पीएम और दूसरे बड़े पद पर आसीन लोगों के आने-जाने के रास्ते से प्रदर्शनकारियों को दूर रखा जाए, जब किसी अहम विदेशी मेहमान का दौरा हो तो प्रदर्शन की इजाज़त न दी जाए


सोशल मीडिया का सहारा लें ?
कोर्ट ने सलाह दी है कि प्रदर्शनकारी सत्ता के केंद्र में आंदोलन करने की ज़िद करने की जगह मीडिया और सोशल मीडिया का सहारा लें. ये तरीके सत्ता में बैठे लोगों तक बात पहुंचाने के लिए ज़्यादा कारगर हैं. हालांकि, कोर्ट ने अपने फैसले में बार बार दोहराया है कि अपनी बात रखना और शांतिपूर्ण तरीके से जमा होना संविधान के अनुच्छेद 19 1(a) और 19 1(b) के तहत मौलिक अधिकार हैं. कुछ सीमाओं का पालन करते हुए नागरिकों को अपने अधिकार का इस्तेमाल करने देना चाहिए