नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट में कोरोना के मसले पर सुनवाई के दौरान आज जो जानकारी निकल के सामने आई उसने अपने कई सवाल खड़े कर दिए. हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और ऑक्सीजन सिलेंडर एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट का हिस्सा ही नहीं है.
इसका मतलब यह हुआ कि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और सिलेंडर को अगर कोई किसी भी कीमत पर बेचता है या अपने पास रखता है तो उसके खिलाफ करवाई करना इतना आसान नहीं होगा. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इसको एक बड़ी चूक करार दिया और सरकार से कहा कि इसको लेकर ऐसे कानून पर विचार करें जिससे कि जमाखोरी और कालाबाजारी को रोका जा सके. इसके साथ ही कोर्ट ने दिल्ली सरकार में मंत्री इमरान हुसैन और दिल्ली सरकार से भी जवाब मांगा है कि इमरान हुसैन के पास जो सिलेंडर और ऑक्सीजन पहुंची थी वह कहां से आए क्या वह दिल्ली के कोटे से थी या नहीं?
ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और ऑक्सीजन सिलेंडर के एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट में शामिल न होने को लेकर जो हाई कोर्ट के सामने जानकारी आई तो कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा लगता नहीं दिल्ली सरकार ने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर को लेकर एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट के तहत कोई आदेश पारित किया है. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि यह आदेश दिल्ली सरकार को नहीं बल्कि केंद्र सरकार को पारित करना है.
इसी बीच एक वकील ने खान मार्केट मामले का जिक्र करते हुए कहा कि क्योंकि ऑक्सीजन सिलेंडर और कंसंट्रेटेर को लेकर एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट के तहत कोई आदेश नहीं जारी हुआ है लिहाजा मुमकिन है कि कालाबाजारी करने वाले लोग ऐसे ही छूट जाए. जिस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा यह तो एक बड़ी खामी है.
केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि इस बाबत दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने पहले ही नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि कई निजी इंपोर्टर आयात शुल्क में मिली छूट के चलते इन उपकरणों को आयात कर रहे हैं ऐसे में अब केंद्र सरकार इस पर विचार कर रही है कि क्या इसको लेकर कोई कानून बनाया जा सकता है.
सुनवाई के दौरान एक दूसरे वकील ने कहा कि अब प्राइवेट इंपोर्टर्स पर भी नजर रखनी होगी जिससे की कालाबाजारी ना हो. दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह जमाखोरी और कालाबाजारी को लेकर कोई दिशा-निर्देश जारी कर सकते हैं. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर कालाबाजारी और जमाखोरी को लेकर दिशा-निर्देश आ जाता है तो ऐसे में इंपोर्टर्स अगर सामान आयात भी करते हैं तो उससे तो कंपटीशन बढ़ेगा और कीमतें कम भी आ सकती हैं लेकिन जरूरी यह है कि उस पर नजर रखी जाए.
दिल्ली सरकार के मंत्री इमरान हुसैन के ऊपर लगे कालाबाजारी और जमाखोरी के आरोपों को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने इमरान हुसैन के वकील से पूछा कि आखिर यह सिलेंडर आ कहां से रहे थे कोर्ट को ये नहीं बताया गया.
इमरान हुसैन के वकील ने कहा कि हमने 10 दिन सिलिंडर किराए पर लिए थे और उनको फरीदाबाद से रिफिल करवा रहे थे. इमरान हुसैन के वकील ने कहा कि उनके पास इसकी रसीदें भी मौजूद हैं. कोर्ट ने कहा कि आप कोर्ट को पूरी जानकारी दीजिए, अगर आप जन सेवा कर रहे हैं अच्छी बात है आप करते रहिए लेकिन अगर आप दिल्ली के कोटे से ऑक्सिजन लेकर अपनी वाहवाही करना चाह रहे हैं तो वह ठीक नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि हम आपको जन सेवा करने से रोक नहीं रहे. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार लगातार कह रही है कि उसके पास ऑक्सीजन की कमी है और अगर आप दिल्ली में ही रिफिलर से ऑक्सीजन लेकर ऐसा कर रहे हैं तो इसको स्वीकार नहीं किया जा सकता. इमरान हुसैन के वकील ने कहा कि ऐसा पेश किया गया जैसे हम कोई गलत काम कर रहे हैं, जिस पर कोर्ट ने कहा कि अगर आप बाहर से लाकर जन सेवा कर रहे हैं और यह साबित करते हैं तो हम खुद आपकी पीठ थपथपाएंगे. लेकिन हमारे सामने शुरुआती तौर पर जो जानकारी आई है उस पर सवाल तो बनता ही है.
कोर्ट ने कहा अगर आप यह दिखा सकते हैं कि आपने दिल्ली के कोटे से ऑक्सीजन नहीं ली तो हम को कोई दिक्कत नहीं है. इमरान हुसैन के वकील ने सिलेंडर के किराए और फरीदाबाद से रिफिल करवाने को लेकर 2 दिनों में सामने कोर्ट के सामने सारे दस्तावेज पेश करने को कहा है. सबके बीच याचिकाकर्ता ने कहा कि एक और वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें आम आदमी पार्टी के एक विधायक के दफ्तर के सामने पीडब्ल्यूडी के तरफ से ऑक्सीजन सिलेंडर उतारे जा रहे हैं. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ऑक्सीजन मरीजों के लिए है और अस्पतालों में जानी चाहिए ना कि इस तरीके से नेताओं के दफ्तरों पर जिससे कि वह अपनी राजनीति चमका सकें. कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि वह यह बताएं कि क्या इन लोगों को ऑक्सीजन दी गई थी?
दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि हमको यहां यह भी देखना होगा कि क्या यह याचिका राजनीति से प्रेरित है, जिस पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हमको इस से मतलब नहीं कि राजनीति से प्रेरित है या नहीं लेकिन अगर दिल्ली की कोटे की ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जा रहा है तो यह गंभीर मामला है. दिल्ली सरकार ने कहा कि शुरुआती तौर पर हम को जानकारी यही है कि ऑक्सीजन दिल्ली के कोटे से नहीं ली गई. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि इस याचिका को उस याचिका के साथ ही सुनवाई पर लाना चाहिए जिसमें अन्य राजनेताओं के खिलाफ भी ऐसे ही जमाखोरी के आरोप लगे हैं.
कोर्ट ने कहा कि हमको इस बात पर आपत्ति नहीं है कि वह कहीं दूसरी जगह से ऑक्सीजन का इंतजाम कर रहे हैं. आपत्ति इस बात को लेकर है कि वह दिल्ली के कोटे से ना हो. कोर्ट ने इमरान हुसैन के वकील से कहा कि आप यह लिखित में दीजिए कि आपने 10 सिलेंडर किराए पर लिए थे और ऑक्सीजन फरीदाबाद से ली थी.
कोर्ट ने कोर्ट के सलाहकार से कहा कि वह अगर इस तरीके की जानकारी आती है तो उसको क्रॉस वेरीफाई करें. इस मुद्दे पर 13 मई को सुनवाई होगी. कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा है कि वह भी लिखित में जवाब दें कि इमरान हुसैन को दिल्ली सरकार के कोटे से ऑक्सीजन मिली या नहीं मिली है.
वहीं दिल्ली के अस्पतालों में बेड की कमी और डॉक्टरों की कमी के मुद्दे पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने कोर्ट को जानकारी दी कि हम बेड बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं जिस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर डॉक्टर ही उपलब्ध नहीं होंगे तो ऐसे बेड बढ़ाने से फायदा क्या, आपको इस ओर भी ध्यान देना होगा.
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि फिलहाल इस बात से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि डॉक्टरों की कमी है. कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि सरकार ने उस कमी को दूर करने के लिए क्या किया? कोर्ट ने सवाल पूछा कि क्या अखबारों में उसी तरह से ऐड दिए गए जैसे कि चुनावी मौसम में दिए जाते हैं.
जवाब में दिल्ली सरकार के वकील ने 1-2 अखबारों के नाम बताएं जिस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि बड़े अखबारों में क्यों नहीं दिए गए अब तक? जिस पर जवाब देते हुए दिल्ली सरकार ने कहा कि वहां पर भी जल्द ही नजर आएंगे. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि हम पिछले 2 हफ्ते से दिल्ली सरकार से इस तरह के ऐड जारी करने को कह रहे हैं लेकिन तब से लेकर अब तक कुछ खास नहीं हुआ.
हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया था कि अस्पताल में दाखिल होने वाले मरीजों को वेटलिस्ट के आधार पर दिया जाए दाखिला. जिस पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा मुमकिन नहीं क्योंकि हो सकता है कि जिस मरीज का नंबर वेटिंग लिस्ट में बाद में हो उसको पहले दाखिले की जरूरत हो क्योंकि उसकी हालत गंभीर हो. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जमीनी स्थिति बहुत खराब है आप खुशनसीब हैं अगर आपको जरूरत के वक्त बेड और इलाज मुहैया हो रहा है.
इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट को बताया इंदिरा गांधी अस्पताल में 250 बेड और शुरू कर दिए गए हैं. जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि आप हमको बताइए कि कुल कितने अस्पतालों में कितने बेड उपलब्ध है. कोर्ट ने इसके साथ ही दिल्ली सरकार से भी पूछा है कि वह यह भी बताएं कि बाकी के बेड कब से उपलब्ध हो जाएंगे.
याचिकाकर्ता वकील ने कहा कि फिलहाल जो माहौल है उससे लग रहा है कि अभी ये बीमारी इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं. लिहाज़ा एक सिस्टम बनाना होगा जिससे कि लोगों को इलाज मिल सके. ऐसा ना हो कि किसी रसूख वाले का फोन आया और अस्पताल में मरीजों को इलाज या भर्ती करने की बजाय पैरवी वाले मरीज की देखभाल में लग जाए. कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा.
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने कहा कि अभी भी दिल्ली को केंद्र की तरफ से कुल 3861 बेड ही मिले हुए हैं जो कि पहले की तुलना में काफी काम है. दिल्ली में लगातार लोग बैठ की कमी से जूझ रहे हैं और केंद्र सरकार केंद्र के अस्पतालों में बेड उपलब्ध करवाने को तैयार नहीं. दिल्ली सरकार ने अलग-अलग केंद्र सरकार के अस्पतालों का ब्यौरा देते हुए कहा कि पहले के मुकाबले हर अस्पताल में बेड कम हो गए हैं. जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील से इस पर हलफनामा देने को कहा कि केंद्र सरकार बताए कि उसके अस्पतालों में अभी बेड की क्या स्थिति है और पहले के मुकाबले दिल्ली को बेड कम क्यों दिए गए हैं. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि फिलहाल दिल्ली के अस्पतालों में कुल 592 आईसीयू बेड है जिसमें से 591 भरे हुए हैं.
इस बीच एक सप्लायर ने कोर्ट को बताया कि उसके सामने दिक्कत यह आ रही है कि वह जब ऑक्सीजन सप्लाई करने के लिए अस्पताल पर जा रहा है तो उसके टैंकर को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है क्योंकि अस्पताल को दूसरे सप्लायर से ऑक्सीजन मिलने लगी है. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा इसका मतलब तो यह हुआ कि दिल्ली के पास जरूरत के हिसाब से ज्यादा ऑक्सीजन उपलब्ध है इसी वजह से टैंकर इंतजार कर रहे हैं. दिल्ली सरकार ने कहा कि यह 3 दिन पहले की बात है जब दिल्ली के पास 730 मिनट तक ऑक्सीजन उपलब्ध हुई थी उसके बाद से ऐसा नहीं हुआ. ऑक्सीजन सप्लायर ने कहा कि इस को राजनीतिक रंग ना दें यह कल डीडीयू अस्पताल में हुआ है. सप्लाई ने कहा कि जब हमारा टैंकर ऑक्सीजन लेकर डीडीयू पहुंचने वाला था तभी जानकारी दी गई कि अस्पताल को ऑक्सीजन नहीं चाहिए.
दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान दिल्ली के अस्पतालों द्वारा वसूले जा रहे अधिक बिल का मुद्दा भी उठाया गया कहा कि कुछ अस्पताल ऐसे हैं जो दिन का दो ₹2 लाख तक वसूल रहे हैं. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि अभी तक सरकार या किसी कमेटी के सामने ऐसी कोई शिकायत नहीं आएगी है अगर आती है तो कार्रवाई की जाएगी. कोर्ट ने कहा मुमकिन है कि पिछले साल की तुलना में इस बार खर्च ज्यादा हो रहा हो लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि मनमाने पैसे वसूले जाए सरकार को भी देखना चाहिए कि क्या ₹18000 प्रतिदिन का जो कैंप लगाया गया है वह ठीक है या फिलहाल उस में कुछ बदलाव की गुंजाइश है.
इस बीच एक वकील ने इंश्योरेंस पॉलिसी का जिक्र करते हुए कहा कि जो मरीज घर पर हैं और इलाज कर रहे हैं और उसमें पैसा खर्च हो रहा है लेकिन इंश्योरेंस पॉलिसी में यह कवर नहीं होता इस पर भी ध्यान देना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि फिलहाल इस मुद्दे पर अभी हम कुछ नहीं कर सकते. कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा इंश्योरेंस रेगुलेटर के सामने उठाना चाहिए और उनको इस ओर देखना चाहिए.
दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मांग की थी कि कोर्ट ऑक्सीजन सिलेंडर की कीमत पर भी अधिकतम सीमा तय करने (कैप लगाने) का आदेश है. कोर्ट के सलाहकार ने इस बीच कोर्ट को जानकारी दें एसडीएम साउथ में एक निर्देश निकाला है किस जिले के लोगों को ही ऑक्सीजन सिलेंडर मुहैया कराया जाएगा.कोर्ट सलाहकार ने कहा कि करना ठीक नहीं होगा इससे बचा जा सकता है क्योंकि हर जिले में स्थिति अलग है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले को गंभीरता से देखना होगा. दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि उपभोक्ता तक पहुंचने वाले ऑक्सीजन सिलेंडर की कीमत को लेकर कोई फैसला लिया जाना चाहिए.सभी पक्षों से इस बारे में बात कर शुक्रवार 14 मई तक कोर्ट को बताएं. इस बीच कोर्ट ने फिर दोहराया कि ज़ब्त किए गए ऑक्सीजन सिलेंडर और कंसंट्रेटर को जल्द से जल्द छुड़ाकर मरीजों के इस्तेमाल में लाने का जो पहले का आदेश है उस पर अमल किया जाए.
दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट के सलाहकार ने कोर्ट को बताया कि देश में केकी जांच के लिए आरटी-पीसीआर और एंटीजन टेस्ट के अलावा भी दो और टेस्ट मौजूद है जिन को अप्रूवल मिला हुआ है और जो इन टेस्ट से कहीं ज्यादा सस्ते हैं और जल्दी नतीजा देते हैं. इन टेस्ट को फेलूडा और रे नाम से जाना जाता है. कोर्ट के सलाहकार ने कहा कि रे टेस्ट में 45 मिनट में रिजल्ट आ जाता है और आईसीएमआर ने इसको आरटीपीसीआर की तरह ही सही माना है. आईसीएमआर के वकील ने कहा कि पर आरटीपीसीआर सबसे बेहतर है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे तो एंटीजन की रिपोर्ट भी काफी बार गलत आती है. कोर्ट ने आईसीएमआर के पूछा कि अगर ऐसा विकल्प मौजूद है तो आखिर इस को अब तक इसको बढ़ावा क्यों नहीं दिया गया?