नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा 2300 करोड़ से ज्यादा की धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किए गए मालविंदर सिंह और शिविंदर सिंह समेत पांच आरोपियों को आज अदालत में पेश किया. जहां पुलिस ने पांचों की रिमांड मांगी. कोर्ट ने पुलिस की जिरह सुनने के बाद सभी आरोपियों को चार दिनों की रिमांड में भेज दिया है. पुलिस का दावा है कि इन चार दिनों में उसका पूरा प्रयास रहेगा कि पता लगा सके कि आखिर इतनी बड़ी रकम का आरोपियों ने क्या किया और उसे किस जगह पर खपाया है?


21 कंपनियों को बिन मांगे दिया गया लोन


दिल्ली पुलिस सूत्रों के अनुसार अब तक की जांच में पता चला है कि सिंह बंधुओं ने यह लोन 21 कंपनियों को दिया था. यह सभी कंपनियां डायरेक्ट और इनडायरेक्ट तरीके से इनसे जुड़ी हुई हैं. पुलिस ने यह भी दावा किया है कि लोन देते समय किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया और ना ही कोई कागजी कार्रवाई की गई.


सिंह बंधु अपने अधिकारियों को मौखिक तौर पर लोन देने के लिए कहते हैं और फिर पैसा इन कंपनियों को ट्रांसफर कर दिया जाता था. पुलिस का कहना है कि जो भी कायदे कानून थे सभी को ताक पर रखा गया. न ही किसी तरह की कोई सिक्योरिटी आदि जमा कराई गई. पुलिस का कहना है कि अब जांच में यही पता लगाना है कि आखिर यह रकम कहां गई.


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सिंह बंधुओं को पुलिस ने दिया है एमएमएस और एसएमएस का कोड


रैनबेक्सी के प्रमोटर्स रहे मालविंदर मोहन सिंह और शिविंदर मोहन सिंह को दिल्ली पुलिस ने एमएमएस और एसएमएस का कोड दिया है. पुलिस का कहना है कि दोनों से ही पूछताछ की जानी है क्योंकि इस पूरे घोटाले के कर्ताधर्ता या सूत्रधार यह दोनों भाई ही हैं.


चार महीने की जांच के बाद दर्ज की गई एफआईआर 


दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने सिंह बंधुओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में लगभग चार महीने का समय लिया. यह जांच प्रक्रिया दिसंबर 2018 से उस समय शुरू हुई थी, जब एमएमएस और एसएमएस के खिलाफ शिकायत दी गई थी. लगभग चार महीने की जांच के बाद मार्च 2019 में दिल्ली पुलिस ने इस संबंध में एफआईआर दर्ज की. पुलिस का कहना है कि जांच अभी जारी है और इस मामले में कुछ अन्य रसूखदारों के नाम का खुलासा भी हो सकता है.


कैसे हुआ खुलासा


दिल्ली पुलिस सूत्रों के अनुसार एमएमएस और एसएमएस रैली गियर इंटरप्राइजेज लिमिटेड (आरईएल) के प्रमोटर थे. इन दोनों भाइयों ने एक अन्य सहायक कंपनी रैली गियर फिनवेस्ट लिमिटेड (आरएफएल) नामक कंपनी भी खोली जो एक नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी है और छोटी कंपनियों और मध्य वर्ग की कंपनियों को लोन या कॉर्पपोरेट लोन देने का काम करती हैं. ये आरबीआई में लिस्टेड हैं.


दोनों बंधुओं का आरईएल पर जून 2017 तक नियंत्रण था क्योंकि इस कंपनी से अपनी हिस्सेदारी बेच चुके थे लेकिन इन दोनों ने जून 2017 के बाद भी कंपनी पर नियंत्रण रखा और फरवरी 2018 तक अपने नियंत्रण में कंपनी को रखते हुए काम किया. फरवरी 2018 के बाद दोनों भाई कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर से बाहर निकल गए. जिसके बाद जब नया मैनेजमेंट आया और आरएफएल के अकाउंट्स ऑडिट किए गए तो पता चला कि इस कंपनी ने जो अन्य कंपनियों को लोन दिया है वह इन-सिक्योर लोन हैं और कंपनी बड़े घाटे में है. यह खुलासा होने के बाद कंपनी की तरफ से आरबीआई आदि में भी शिकायत की गई और साथ ही दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा में भी एक शिकायत दी गई.


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क्या है असल मामला


पुलिस के अनुसार आरएफएल कंपनी में सिंह बंधुओं के 85 फीसदी शेयर थे. इसलिए उनका कंपनी पर मालिकाना हक था. यह कंपनी साल 2008 से वर्किंग थी. आरोप है कि सिंह बंधुओं के कहने पर अन्य आरोपियों ने समय समय पर लगभग 21 कंपनियों को सैकड़ों करोड़ का लोन दे दिया. खास बात यह रही कि इन कंपनियों का बाद में सिंह बंधुओं से ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर रिश्ता उजागर हुआ.


मतलब उन्होंने अपने ओहदे का गलत इस्तेमाल करके खुद से जुड़ी कंपनियों को अवैध तरीके से लोन दिया. उनके दस्तावेज तक की जांच नहीं की गई, न ही पूरा रिकॉर्ड रखा गया. अंत में आरएफएल कंपनी को बेचकर उससे पल्ला झाड़ कर चलते बने.


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ईओडब्लू अडिशनल सीपी ओपी मिश्रा ने क्या कहा


ईओडब्ल्यू के एडिशनल कमिश्नर ओपी मिश्रा का कहना है कि धोखाधड़ी के इस मामले में मालविंदर सिंह, शिविंदर सिंह और उनकी कंपनी के तीन वरिष्ठ अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया है. आज पांचों को कोर्ट में पेश किया गया. पांचों को चार दिनों की पुलिस रिमांड में भेज दिया गया है. आगे की जांच में हम यही पता लगाएंगे कि यह रकम कहां गई और किस तरीके से इसे ठिकाने लगाया गया.