कोरोना के कारण देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर में पहुंच गई है. बेरोजगारी बढ़ रही है, नौकरियों को लेकर लोग चिंतित हैं, शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड में लगाये जाने वाले पैसे नुकसान में हैं. उद्योगों को खोलने की इजाजत तो मिल गई लेकिन वो, ना जाने आगे क्या होगा के संकट से जूझ रहे हैं. ऐसे में सरकार क्या कर रही है और सरकार को करना चाहिए, प्राइवेट कंपनियां किस मुश्किल दौर से गुजर रहीं हैं और उनकी क्या मांग है और व्यक्तिगत तौर पर हमारी और आपकी क्या परेशानी है. हमें क्या करना चाहिए. भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तहस नहस हो चुकी है.


इतने का हुआ नुकसान


पिछले पचास दिन में 18 लाख करोड़ रूपये का नुकसान हो चुका है. 2020-21 के लिए वर्ल्ड बैंक ने भारत में जीडीपी के 1.5 से 2.8 फीसदी रहने का अनुमान जताया है. IMF ने 1.9 फीसदी, फिच ने 0.8 फीसदी और मूडीज ने इसे शून्य आंका है. विदेशी रेटिंग एजेंसियों ने भारत को लेकर जो अनुमान लगाया है उसकी वजह भी साफ है. देश में जब कामकाज ही ठप है तो 2020-21 में जीडीपी बढ़ेगी कैसे वही सबसे बड़ा सवाल है.


लॉकडाउन के कारण सरकारी खजाने पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है. आर्थिक गतिविधियां ठप हैं जिससे टैक्स की आमदनी नहीं हो रही है. जीएसटी की कमाई जो करीब एक लाख करोड़ प्रति महीने थी वो अब 30 हजार करोड़ से नीचे जा चुकी है. ऐसे में सरकार को अब बाजार से कर्ज लेना होगा और सरकार इस ओर बढ़ चुकी है. इन पैसों से अलग-अलग सेक्टर को आर्थिक पैकेज दी जा सकती है.

आर्थिक पैकेज का इंतजार


ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, जीडीपी को हर दिन 40 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने भी यही दावा किया है. उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तहस नहस हो चुकी है. पिछले पचास दिन में 18 लाख करोड़ रूपये का नुकसान हो चुका है. उधर सरकार भी मान रही है कि बड़ा संकट आ चुका है और देश के हर सेक्टर मुश्किल में है जिससे सरकार की कमाई को झटका लगा है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि यहां कुछ राज्य सरकारों के पास सैलरी देने के लिए पैसे नहीं है. केंद्र सरकार की भी कमाई कम हुई है. बैंकिंग सेक्टर संकट में है. समस्या तो बड़ी है. उद्योग भी संकट में हैं. सभी संकट में हैं ऐसे में हमे सबको साथ लेकर चलने की जरूरत है.


सबको उम्मीद है कि सरकार जल्द ही एक बड़े आर्थिक पैकेज का एलान कर सकती है. गडकरी ने कहा कि सरकार उद्योग के साथ है, सरकार लेबर के साथ है. लेकिन ये कहना कि अमेरिका ने 2 ट्रिलियन डॉलर के पैकेज का एलान किया, जापान ने अपनी जीडीपी के 12 फीसदी के बराबर पैकेज का एलान किया ये ठीक नहीं क्योंकि भारत और उनकी जीडीपी में बड़ा अंतर है. हमलोग विचार कर रहे हैं. वित्त मंत्री भी मीटिंग कर रही हैं. सब लगे हुए हैं और बहुत जल्द ही कोई घोषणा होगी.


फिलहाल बेरोजगार हो चुके लोगों में सबसे बड़ी तादाद रोज कमाने और रोज खाने वाले दिहाड़ी मजदूरों की है. जिनकी संख्या करीब 9 करोड़ से ऊपर है. इसी वर्ग को केंद्र में रखकर 26 मार्च को वित्त मंत्री ने 1 लाख 70 हजार करोड़ के पहले आर्थिक पैकेज का एलान किया था. पीएम गरीब कल्याण पैकेज के तहत 39 करोड़ गरीब लोगों को 34,800 करोड़ की आर्थिक मदद दी गई. सभी राज्यों के 80 करोड़ लोगों को 51 हजार करोड़ का खाद्यान्य दिया जाएगा. 3 महीने के लिए दी जाने वाली इस मदद में हर महीने 40 लाख टन अनाज बांटा जाएगा. एक लाख 70 हजार करोड़ का पहला पैकेज जीडीपी के 0.8 फीसदी के बराबर था. इसी के बाद अब उद्योग जगत केंद्र से जीडीपी के बड़े हिस्से के बराबर आर्थिक पैकेज की मांग कर रहा है. CII ने भारत 15 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की मांग की है. FICCI का कहना है कि उद्योग जगत को पटरी पर लाने के लिए 10 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज मिले.


कोरोना ने तीन सेक्टर को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई है. उसमें सबसे ऊपर पर्यटन उद्योग है. फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन इन इंडियन ट्यूरिज्म एंड हॉस्पिटिलिटी ने अनुमान जताया है कि पर्यटन उद्योग को 10 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.


MSME को कितना का नुकसान?
MSME सेक्टर को 5 लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है. जबकि लॉजिस्टिक सेक्टर को 50 हजार करोड़ का नुकसान हो सकता है. महिंदा ग्रुप के मुख्य अर्थशास्त्री सच्चिदानंद शुक्ला ने कहा कि सिविल एविएशन सेक्टर को भी 25 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है.


कितना क़र्ज़ लेगी सरकार


इस साल सरकार कुल 12 लाख करोड़ का कर्ज लेगी. बजट में 7.8 लाख करोड़ के कर्ज का लक्ष्य था. पहले से तय लक्ष्य से 4.2 लाख करोड़ रुपये ज्यादा कर्ज लिया जाएगा. सितंबर तक सरकार बाजार से 6 लाख करोड़ कर्ज उठाएगी. वैसे ऐसा करने से देश की अर्थव्यवस्था का संतुलन बिगड़ जाएगा, राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है लेकिन एक्सपर्ट मानते हैं कि सरकार का ये कदम सही है. क्योंकि बाजार में नकद की कमी है और फिलहाल उसे पूरा करने पर ध्यान होना चाहिए. जानकारों की राय में इस समय सबसे जरूरी है, लोगों का खर्च करना. खर्च नहीं करने के नतीजे बहुत गंभीर हो सकते हैं और खर्च तभी होगा, जब लोगों की आय सुरक्षित होगी. सरकार के सामने ये भी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि भारत में 12 करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके हैं. हमारे देश में बेरोजगारी दर 27.1% हो गई है.


अर्थशास्त्री प्रो अरुण कुमार कहते हैं आर्थिक पैकेज अभी काम नहीं करेगा. अर्थव्यवस्था में अभी 25 फीसदी ही उत्पादन है. अर्थव्यवस्था निराशा के दौर में है. बिजनेस को बचाने के लिए लोन माफ करना होगा. लोन पर ब्याज भी सरकार माफ कर सकती है. RBI को बैंकों की मदद करनी पड़ेगी. बैंकों का NPA बढ़ने से रोकना होगा.


क्या है मैन्युफैक्चरिंग का हाल?


कोरोना की रफ्तार रोकने के लिए देश में सब कुछ बंद करना पड़ा. लॉकडाउन अभी भी जारी है लेकिन जब अर्थव्यवस्था की रफ्तार मंद होने लगी तो सरकार को रियायतों के बारे में सोचना पड़ा. उद्योग धंधों को शर्तों के साथ काम शुरू करने की छूट तो दे दी गयी. लेकिन सवाल है कि क्या इस नए माहौल में निजी क्षेत्र की कंपनियां वैसे ही काम कर पा रही हैं जैसे वो करती थीं ? देश की जानी मानी मोबाइल कंपनी लावा इंटरनेशनल में कम लोग काम कर रहे हैं. लॉकडाउन में करीब एक महीने बंद रहने के बाद यहां मोबाइल बनाने का काम शुरू हो चुका है. लेकिन जिन स्थितियों में फिलहाल यहां काम हो रहा है वो चिंताजनक हैं. 20 फीसदी कर्मचारियों के साथ उत्पादन शुरू करने की शर्त के कारण इस कंपनी में फिलहाल सिर्फ 600 कर्मचारी ही काम कर रहे हैं. जबकि यहां कुल कर्मचारियों की संख्या 3000 है. नतीजा ये है कि जहां पहले इस फैक्ट्री में हर दिन करीब 60 हजार फोन बनते थे वहीं अब सिर्फ इसका एक चौथाई यानी लगभग 15 हजार फोन बन पा रहे हैं.

लावा इंटरनेशनल लिमिटेड के चीफ मैन्यूफैक्चरिंग ऑफिसर संजीव अग्रवाल कहते हैं, ''दो तरह से खर्च बढ़ा है, एक इस जगह को मेंटेन करने में जो कम लोग हैं फिर भी खर्च उतना ही है और दूसरा प्रोटोकॉल फॉलो करने का खर्च बढ़ा है. कंपनी का खर्च बढ़ेगा तो जाहिर है कि आने वाले वक्त में इसका असर उत्पाद की कीमतों पर भी पड़ेगा. ऐसा न हो इसके लिए कंपनी चलाने वाले सरकार से मदद की उम्मीद रख रहे हैं. लावा कंपनी के डायरेक्टर का मानना है कि ये वो वक्त है जब सरकार को ट्रेड बैरियर यानी व्यापार में आने वाली बाधाओं को दूर करना होगा. निजी कंपनियों को रेड टेपिज्म यानी लाल फीताशाही से बचाना होगा. कंपनियों पर भरोसा करते हुए उन्हें सरकारी नियंत्रण से कुछ छूट देनी होगी.


रिटेल भी क्यों हुआ बेहाल


लॉकडाउन का असर उन मल्टी ब्रांड कंपनियों पर भी पड़ा है जो मॉल में स्टोर के जरिए सामन बेचती हैं. इनमें लाइफस्टाइल से लेकर कपड़े और जूतों के स्टोर शामिल हैं. इस सेक्टर से जुड़े लोगों का मानना है कि आने वाले दिन भी मल्टीब्रांड स्टोर के लिए मुश्किल भरे होने वाले हैं. कैंटाबिल के डायरेक्टर दीपक बंसल ने कहा कि लगभग 85 बिलियन डॉलर तक का बाजार होने की उम्मीद थी, लेकिन अब कोरोना के बाद ऐसा होना मुश्किल लग रहा है. माना जा रहा है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी लोग अब पहले की तरह शॉपिंग नहीं करेंगे. वो मॉल में जाने से बचेंगे, ऐसे में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर से जुड़ी निजी कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ेगा. दुकान से सामान खरीदने के बजाय लोग ऑनलाइन शॉपिंग ज्यादा करेंगे.


मेट्रो कैश एंड कैरी के सीईओ अरविंद मेदिरत्ता ने कहा कि लॉकडाउन से काफी कंपनियों की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है इसलिए डिमांड कम होगा. आगे भविष्य में ज्यादा ग्राहक ई-कॉमर्स की तरफ जाएंगे इसलिए हमें इसका प्लान तैयार करना होगा. लोग दुकानों या मॉल में जाना ज्यादा पसंद नहीं करेंगे.


देश में रिटेल का कारोबार करीब 5 लाख करोड़ का है. रिटेल सेक्टर लगभग 5 करोड़ लोगों को नौकरी देता है. रिटेल सेक्टर में राशन से लेकर रोजमर्रा की जरूरत की चीजें बेचने वाली दुकानें आती हैं. लॉकडाउन के कारण राशन की दुकानें तो खुली रहीं लेकिन बाकी सारी दुकानें बंद होने से इस सेक्टर को भी खासा नुकसान उठाना पड़ा.


रिटेल सेक्टर से जुड़े लोगों का मानना है कि दिसंबर तक इस सेक्टर को 50 हजार करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है. रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सीईओ कुमार राजागोपालन का कहना है कि रिटेल को बिजनेस संभालने के लिए सरकार की मदद चाहिए होगी, वर्किंग कैपिटल की मदद चाहिए. सब खुले छोटे-बड़े, ऑनलाइन-ऑफलाइन. आगे रिटेल काफी बदल जाएगा और मदद चाहिए सरकार की तरफ से तो रिटेल का कारोबार वापस ठीक हो जाएगा. इससे सप्लाई चेन, मैन्यूफैकचरिंग सबको सपोर्ट मिल जाएगा.`


स्टार्ट-अप भी रहा है हांफ


उद्योग जगत के अलावा अपनी स्टार्ट अप कंपनी चलाने वाले लोगों के लिए भी मुश्किल बढ़ गयी है, ओजो टेक्नोलॉजिस प्राइवेट लिमिटेड के संजीव पांडे ने 4 साल पहले कंपनी शुरू की थी, उनका हर महीने का खर्च 4 लाख रुपए से ज्यादा का है, काम बंद होने के बाद से उनके लिए पैसा जुटाना एक बड़ी समस्या हो गयी है.


देश भर में जितनी कंपनियां हैं उनमें से 95 फीसदी प्राइवेट क्षेत्र की हैं, सबसे ज्यादा कंपनियां बिजनेस सर्विसेज और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर से जुड़ी हैं. भारत में कुल 11 लाख 23 हजार निजी कंपनियां हैं. इनमें से 3,74,767 बिजनेस सर्विस से जुड़ी हैं. मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में 2,21,025 निजी कंपनियां हैं. इसी तरह ट्रेडिंग, कंस्ट्रक्शन, केमिकल और रियल एस्टेट सेक्टर में भी हजारों निजी कंपनियां काम कर रही हैं. बड़ी बात ये है कि ये निजी कंपनियां देश में लगभग 87 फीसदी नौकरियां देती हैं.


इसका मतलब ये है कि अगर निजी कंपनियों की मुश्किलों को समझते हुए उन्हें जरूरी मदद नहीं दी गयी तो इसका सीधा असर रोजगार पर पड़ेगा. निजी कंपनियों का घाटा बढ़ा तो बेरोजगारी बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था को संभालना मुश्किल हो जाएगा. एक निजी कंपनी में काम करने वाले सुभाष चौहान पिछले 50 दिनों से घर में हैं और इस दौरान लगातार उन्हें ये चिंता सता रही है कि आने वाला वक्त कैसा होगा, क्या वो घर वैसे ही चला पाएंगे जैसे अब तक चलाते रहे हैं.


इस समय खुद को कैसे बचाएं?


सवाल है कि इस माहौल में नौकरीपेशा लोगों को क्या करना चाहिए? निवेश सलाहकार जीतेंद्र सोलंकी का कहना है कि मेरी राय में सबसे पहले 1 साल के लिए इमरजेंसी फंड लेकर चलना पड़ेगा, क्योंकि एक साल तक सिचुएशन क्या होगी पता नहीं, नौकरी रहेगी या नहीं रहेगी तो वो देखना होगा. डेब्ट फंड और FD में निवेश करें. 3-4 महीने तक जोखिम वाला निवेश नहीं करें. जानकारों के मुताबिक निवेश के इन विकल्पों के अलावा लोगों को इस वक्त बचत के ज्यादा से ज्यादा तरीके भी ढूंढने चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि कोई भी गैर जरूरी खर्च न करें.