नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी ने चंद महीनों में ही दुनिया के पुराने सभी तौर तरीकों को बदलकर रख दिया. अब लोग एक दूसरे से मिलजुल नहीं सकते. बाज़ार, ट्रेन, हवाई जहाज़ सभी बंद हैं. जहां जहां भी लोगों की भीड़ लगने का अंदेशा है, वहां ताला लगा दिया गया है. मतलब साफ है, इस महामारी से साथ रहकर नहीं, बल्कि एक दूसरे से दूरी बनाकर ही जीत हासिल की जा सकती है. धर्म भी इससे नहीं बच पाया है. मस्जिदें, गिरजाघर, गुरुद्वारे और मंदिर समेत तमाम धार्मिक स्थलों पर सन्नाटा है.
अब इस महामारी के बीच मुसलमानों का सबसे पवित्र महीना रमज़ान शुरू हो रहा है. कई देशों में कल यानी 24 अप्रैल से ही रोज़े की शुरूआत हो जाएगी, जबकि भारत और पाकिस्तान में चांद नहीं दिखने की वजह से रमज़ान शनिवार से शूरू होगा. कोरोना वायरस के खौफ के बीच शुरू हो रहे इस पाक महीने में मुसलमानों के लिए सब कुछ पहले जैसा नहीं रहने वाला. दरअसल दुनियाभर के मुस्लिमों के लिए रमज़ान का महीना इबादतों भरा होता है.
अपने रब की रज़ा के लिए तमाम मुसलमान इस महीने में रोज़ा रखते हैं. नमाज़ों की पाबंदी पहले से ज्यादा होती है. साथ ही खास नमाज़ जिसे तरावीह कहते हैं, वो भी चांद देखने के साथ ही शुरू हो जाती है. लेकिन इस बार ये सब थोड़ा अलग होगा. पहले के सालों की तरह इस बार मस्जिदें गुलज़ार नहीं हो सकेंगी. लोगों को घरों में रह कर हर तरह की इबादत करनी होगी. मस्जिद में नमाज़ अदा करने की सूरत में लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर सेकेंगे. इससे कोरोना फैलने का खतरा बढ़ जाएगा. यही वजह है कि तमाम देशों की सरकारों के अलावा मुस्लिम धर्म गुरू भी लोगों से लगातार अपील कर रहे हैं कि रमज़ान के दौरान घर पर रह कर ही इबादत करें.
शनल यूनिवर्सिटी ऑफ मलेशिया के इंस्टिट्यूट ऑफ द माले वर्ल्ड एंड सिविलाइज़ेशन के रिसर्च स्कॉलर मोहम्मद फैज़ल मूसा ने अल जज़ीरा से बात करते हुए कहा, "मुझे याद नहीं कि मैंने ऐसा होते पहले कभी देखा हो."
ये भी पढ़ें: COVID-19: ब्रिटेन में शुरू हुआ कोरोना वायरस की वैक्सीन का मानव परीक्षण, बस नतीजों का इंतज़ार
फैजल ने आगे कहा, "वर्ल्ड वॉर 2 हो या प्राकृतिक आपदा, लेकिन पहले के साहित्य, ऐतिहासिक लेख और अलग अलग संग्रह में मैंने पाया है कि मुसलमान इन सब के बावजूद रमज़ान में इकट्ठा हुए हैं. जंग और आपदा के बावजूद लोग अपने धार्मिक रस्म रिवाजों को अंजाम देते रहे हैं. हालांकि इस बार हमारे सामने एक अलग तरह का दुश्मन है, जो रहम नहीं करता और दिखाई भी नहीं देता."
रमज़ान में मुसलमान सुबह सवेरे उठते हैं और सेहरी करते हैं और शाम को सूरज डूबने के बाद रोज़ा खोलते हैं, जिसे इफ्तार कहा जाता है. पहले के सालों में मस्जिदों में गरीबों के लिए इफ्तार का इंतज़ाम होता था, जहां सभी साथ बैठकर रोज़ा खोलते थे, लेकिन महामारी के चलते अब ये होना मुमकिन नहीं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी रमज़ान को लेकर खास सलाह दी है. संगठन ने कहा है कि जहां भी मुमकिन हो, लोग वर्चुअल रास्तों के ज़रिए सामाजिक और धार्मिक चीज़ों के लिए साथ जुड़े.
रमज़ान के महीने में सिर्फ मस्जिदों में ही रौनक नहीं होती, बल्कि बाज़ार भी खरीदारों से गुलज़ार रहते हैं. ऐसे में इस दफा लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से लोगों को बाज़ारों से भी दूर रहना होगा. ऐसे में साफ है कि दुनियाभर के मुसलमानों के लिए इस साल रमज़ान पहले जैसा नहीं रहने वाला है.
ये भी पढ़ें:
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में सोनिया गांधी की दो टूक, कहा- 'नफरत का वायरस फैला रही है बीजेपी'
सरकारी कर्मचारियों-पेंशनर्स के लिए झटका, सरकार ने महंगाई भत्ता बढ़ाने पर लगाई रोक