नई दिल्ली: कोरोना वायरस के इलाज में अब भारत भी प्लाज़्मा ट्रीटमेंट यानी कोविड-19 से ठीक हो चुके मरीज़ों के खून में मौजूद एंटीबॉडी से उपचार के क्लीनिल ट्रायल शुरू करने जा रहा है. इस कड़ी में अगले दो दिनों के भीतर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद अपना प्रोटोकॉल गाइडलाइन जारी कर देगा. साथ ही इसके लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से मंजूरी भी ली जा रही है.


भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ मनोज मुरहेकर ने बताया कि प्लाज़्मा ट्रीटमेंट के क्लीनिल ट्रायल के लिए फिलहाल केरल को आईसीएमआर ने इजाजत दी है. साथ ही राज्य सरकार ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से भी मंजूरी ले रही है. देश में इस उपचार पद्धति के क्लीनिल ट्रायल के लिए आईसीएमआर एक प्रोटोकॉल जल्द ही जारी करेगा. साथ ही डीसीजीआई की मंजूरी भी ली जा रही है. हालांकि क्लीनिल ट्रायल के तहत यह उपचार केवल उन मरीज़ों को दिया जाएगा जो वेंटिलेटर पर हैं.


महत्वपूर्ण है कि विभिन्न देशों में प्लाज़्मा ट्रीटमेंट पर काम हो रहा है. इसके तहत कोविड-19 से ठीक हो चुके मरीज़ों का वह रक्त प्लाज़्मा रोगियों को दिया जाएगा जिसमें इस महामारी के खिलाफ एंटीबॉडीज़ मौजूद हैं.


गौरतलब है कि मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के तहत बनने वाली एन्टीबॉडी एक प्राकृतिक दवा है, जो किसी भी संक्रमण के खिलाफ प्रभावी रोकथाम कर करती है. शरीर में किसी वायरस या बाहरी संक्रमण के खिलाफ बनी एन्टीबॉडी उसे कोशिकाओं पर जुड़ने से रोकती हैं. वायरस चूंकि किसी कोशिका से जुड़ने के बाद ही मल्टीप्लाय होता है. लिहाज़ा उसे रोकने का यह प्राकृतिक और प्रभावी तरीका होता है और घर न मिलने से वायरस नष्ट हो जाता है.


नोवेल कोरोना वायरस से फैली कोविड-19 महामारी भी सार्स का ही एक रूप है. ऐसे में माना जा रहा है कि सार्स की तरह इस रोग से भी ठीक हो जाने वाले लोगों में आमतौर पर इसके खिलाफ एन्टीबॉडी करीब साल भर तक सक्रिय रहती हैं. लिहाज़ा फिर से संक्रमित होने के मामले काफी कम हैं.


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