रांची: रात करीब 11 बज रहे थे, झारखंड की राजधानी रांची के एक रेलवे स्टेशन हटिया पर सैकड़ों पुलिसकर्मियों की भीड़ थी. बीच-बीच में स्थानीय नेता आ-जा रहे थे. कुछ घण्टों पहले ही मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन भी दौरा कर के गए थे.
लॉकडाउन के दौरान महीने भर बाद राज्य में चहल-पहल दिख रही थी क्योंकि तेलंगाना के लिंगमपल्ली से झारखंड के 1200 मजदूर आ रहे थे. इन मजदूरों के लिए तेलंगाना सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने एक स्पेशल ट्रेन चलाई थी जो पूरे लॉकडाउन की पहली ट्रेन थी जो यात्रियों के तौर पर मजदूरों को लेकर उनके घर छोड़ने जा रही थी.


रात के करीब 11.30 बजे ट्रेन आने की आवाज सुनाई दी. पत्रकार से लेकर अधिकारी तक सब पहले से अलर्ट थे. शायद देश में ऐसा पहली बार हो रहा था जब मजदूर दिवस के मौके पर मजदूरों का इतनी बेसब्री से सब इंतजार कर रहे थे. 24 बोगियों वाली ट्रेन मजदूरों को लेकर हटिया स्टेशन पर पहुंच चुकी थी. एक-एक कर के ट्रेन के डिब्बे खोले जा रहे थे और उसी के साथ मजदूरों के आने का सिलसिला भी शुरू हुआ. मजदूर जब गेट से बाहर निकले तो उनके एक हाथ में गुलाब का फूल, खाने का पैकेट था तो दूसरे में साथ लाया हुआ कुछ सामान.


बाहर निकलने के बाद मजदूरों को सीधे जिले का नाम पूछकर वहां पहले से अलग-अलग जिलों के लिए 60 बसों में से जिले के अनुसार बैठाया जा रहा था. बैठाने के साथ ही एक व्यक्ति हर बस पर सवार होने वाले मजदूरों से उनके बारे में कुछ जानकारियां भी नोट कर रहा था.


बसों में बैठाने के बाद पुलिस के कुछ जवानों के साथ हर जिले के लिए बसें रवाना हुई. जिला मुख्यालय पहुंचने के बाद वहां भी सभी की पहले प्रारंभिक जांच हुई. किसी भी बीमारी के होने या किसी लक्षण के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के बाद होम क्वॉरंटीन की मुहर के साथ घर में 14 दिन तक क्वॉरंटीन रहने के लिए निर्देश दिया गया. एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में रांची के डीसी राय महिपत रे बताया कि सभी को होम क्वॉरंटीन किया जाएगा, जरूरत पड़ने पर ही क्लिनिकल क्वॉरंटीन किया जाएगा.


एबीपी न्यूज़ ने मजदूरों से भी बात की. धनबाद जा रहे राजन ने बताया कि दिक्कत बहुत थी, लग रहा था जैसे कभी वापस ही नहीं जा पाएंगे, अब अगर यहां काम मिल गया तो वापस नहीं जाएंगे. सरायकेला के हरी राम हैदराबाद में सुपरवाइजर थे, कहा खाना तो कंपनी देती थी लेकिन समस्याएं इतनी थी कि बता भी नहीं सकते, सरकार हम लोगों को यहां कोई भी काम दे दें हम वापस नहीं जाएंगे.


अनुमान के मुताबिक झारखंड के करीब 9 लाख लोग मजदूरी करने या रोजगार की तलाश में राज्य से बाहर थे, ऐसे में कितने लोग वापस आए हैं कितने नहीं इसका कोई आंकड़ा मिलना तो मुश्किल ही है लेकिन अगर 1200 मजदूरों की बातों पर गौर करें तो एक बात साफ है कि ये मजदूर, कामगार शायद ही वापस कहीं काम करने जाएं. ऐसे में आने वाले दिनों में कंपनियों के लिए भी मजदूरों का इंतजाम करना टेढ़ी खीर होगी. जाहिर है इसका असर उत्पादन पर पड़ेगा, और उत्पादन का असर दाम पर.