महाराष्ट्र सरकार कोविड-19 के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए उर्दू का सहारा लेने जा रही है. इसके अलावा मुहिम में शामिल करने के लिए स्थानीय स्तर पर मस्जिद और मौलानाओं को भी जोड़ा जाएगा. स्वास्थ्य महकमा ऐसे लोगों को तलाश कर रहा है जो अल्पसंख्यक समुदाय में अपनी पकड़ रखते हैं.
महामारी के बारे में बताने के लिए उर्दू का सहारा
महाराष्ट्र में 3 मई तक कोरोना वायरस संक्रमण के कारण मृतकों की संख्या 548 थी. मरनेवालों में 239 लोग अल्पसंख्यक समुदाय से थे. यानी कुल मृतकों की तादाद में उनका फीसद 44 पाया गया. इसके पीछे विशेषज्ञ कई कारण बताते हैं. जैसे खाड़ी मुल्कों से आने वालों की एयरपोर्ट पर देर से स्क्रीनिंग, 20 मार्च तक बहुत सारी मस्जिदों में शुक्रवार की नमाज का होना. इसके अलावा मुस्लिमों की बड़ी आबादी उन इलाकों में रहती है जहां जनसंख्या घनत्व ज्यादा है. जिसके चलते सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना उनके लिए संभव नहीं है. विशेषज्ञ उनके इलाकों में स्वास्थ्य की खराब सुविधा भी को संक्रमण फैलने का अहम कारण मानते हैं.
मौलाना, मस्जिद भी होंगे जागरुकता मुहिम में शामिल
राज्य के महामारी विशेषज्ञ प्रदीप आवटे कहते हैं, “खाड़ी मुल्कों से लौटनेवाले लोगों की एयरोपोर्ट पर स्क्रीनिंग नहीं हुई. यही सबसे बड़ा कारण संक्रमण फैलने का बना. हमने पाया कि कई लोगों में कोरोना लक्षण नहीं होने के बावजूद संक्रमण फैला. इसलिए हमारा प्रयास है कि स्थानीय स्तर पर उन हस्तियों को तलाशा जाए जो बीमारी के बारे में स्थानीय लोगों को बता सकें. हम जल्द ही उर्दू के जरिए जागरुकता संदेश फैलाएंगे जिससे स्पॉट बने इलाके मालेगांव और मुंबई के अल्पसंख्यक इलाकों में पहुंचा जा सके.”
आपको बता दें कि महाराष्ट्र में तब्लीगी जमात से कोरोना वायरस के फैसले का मामला बहुत ही सीमित रहा है. सूबे में सिर्फ 69 केस जमात से जुड़े थे और जिसमें एक की मौत हुई.
PM मोदी ने कहा- सामूहिक प्रयासों से मौजूदा विपदा हटेगी, बुद्ध का दर्शन दुनिया को दिशा देगा
On This Day | आज के ही दिन हुआ था गुरूदेव रबींद्र नाथ टैगौर का जन्म, जानिए 7 मई का पूरा इतिहास