नई दिल्ली: कोरोना का संक्रमण अब जिस तेजी के साथ बच्चों को अपनी चपेट में ले रहा है, उससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या कुछ राज्यों में तीसरी लहर ने दस्तक दे दी है? महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के बाद अब बिहार सहित अन्य प्रदेशों में भी 12/14 साल के बच्चे संक्रमित हो रहे हैं, लिहाजा बड़ा सवाल यह है कि इसे लेकर राज्य सरकारों की क्या तैयारी है. ऐसी शिकायतें मिल रही हैं कि कुछ राज्यों में तो जिला स्तर पर चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर ही नहीं हैं, सो वहां किस तरह से मासूमों की जिंदगी को बचाया जायेगा? बच्चों के लिए बनने वाली वैक्सीन का अभी ट्रायल ही चल रहा है, ऐसे में यह केंद्र समेत हर राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है कि इससे निपटने के लिए युद्ध स्तर पर इंतज़ाम किये जाएं.


हालांकि सरकार ने दो दिन पहले दावा किया था कि कोरोना वायरस से बचाने वाले टीके कोवैक्सीन का दो से 17 साल के बच्चों पर ट्रायल अगले 10-12 दिनों में शुरू हो जाएगा. लेकिन बढ़ते हुए मामलों को देखकर अब सरकार को इसमें तेजी लानी होगी, क्योंकि वैक्सीन को मंजूरी मिलने के बाद उसे बड़ी मात्रा में तैयार करने में भी खासा वक़्त लगेगा.


वैसे बच्चों में संक्रमण के मामले सबसे पहले महाराष्ट्र से पिछले महीने सामने आये थे जिसके बाद सरकार ने बच्चों के लिए अलग से कोविड वार्ड बनाने शुरू कर दिए थे. लेकिन उत्तराखंड की हालत चिंताजनक है, क्योंकि वहां प्रतिदिन मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन उस हिसाब से सरकार की तैयारी सिफर है. उत्तराखंड से थोड़ी चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है. वहां पिछले डेढ़ माह में करीब 17 हज़ार से अधिक बच्चे और 18 साल तक के युवक संक्रमित पाए गए हैं. स्टेट कंट्रोल रूम कोविड-19 की वेबसाइट के मुताबिक़ इनमें नौ साल की उम्र के 3,220 और और 10 से 19 साल के बीच के 13,793 किशोर शामिल थे. यह आंकड़ा बड़ी तेजी से बढ़ रहा है, लिहाज़ा सवाल उठने लगा है कि क्या उत्तराखंड में कोरोना की तीसरी लहर पहुंच चुकी है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि इसमें सबसे ज़्यादा नुक़सान बच्चो-किशोरों को होगा.


उत्तराखंड में डायरेक्टर नेशनल हेल्थ मिशन डॉक्टर सरोज नैथानी के मुताबिक कहीं ना कहीं ये आंकड़े 'हमें अलर्ट कर रहे हैं.' जबकि विपक्ष का आरोप है कि उत्तराखंड में चाइल्ड स्पेशलिस्ट पर्याप्त संख्या में नहीं हैं. मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशोर उपाध्याय कहते हैं, "इस समय उत्तराखंड में चाइल्ड स्पेशलिस्ट नहीं हैं, उसके साथ ही कोविड से संक्रमित जो बच्चे हैं उनको किस तरह से हमको ट्रीट करना है और मनोवैज्ञानिक तरह से कैसे उनकी मदद करनी है, उसकी राज्य में किसी भी तरह की व्यवस्था नहीं है."


वैसे उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण से बच्चों को बचाने के लिए प्रदेश की सरकार ने जो मॉडल अपनाया है उसका अब बॉम्बे हाई कोर्ट भी कायल हो गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और देश का नीति आयोग कोविड प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के 'यूपी मॉडल' की तारीफ कर चुका है. आयोग ने यूपी के इस मॉडल को अन्य राज्यों के लिए नजीर बताया है. पिछले दिनों बॉम्बे हाई कोर्ट ने यूपी मॉडल के तहत बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए किए गए प्रबंधों का जिक्र करते हुए वहां की सरकार से यह पूछा था कि महाराष्ट्र सरकार यहां ऐसा करने पर विचार क्यों नहीं करती? महाराष्ट्र में दस साल की उम्र के करीब 11 हजार बच्चे कोरोना का शिकार हुए हैं, जिसे लेकर हो रही सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाराष्ट्र सरकार से यह सवाल पूछा था.


यूपी सरकार ने कोरोना संक्रमण से बच्चों का बचाव करने के लिए सूबे के हर बड़े शहर में 50 से 100 बेड के पीडियाट्रिक बेड (पीआईसीयू) बनाने का फैसला किया है. यूपी सरकार के इस फैसले को डॉक्टर बच्चों के लिए वरदान बता रहे हैं. यह बेड विशेषकर एक महीने से ऊपर के बच्चों के लिए होंगे. इनका साइज छोटा होगा और साइडों में रेलिंग लगी होगी. गंभीर संक्रमित बच्चों को इसी पर इलाज और ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.


वहीं जाप अध्यक्ष पप्पू यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर बच्चों को कोविड के प्रकोप से बचाने और ब्लैक फंगस वाले मरीजों के समुचित इलाज की व्यवस्था करने का आग्रह किया है. उन्होंने बिहार सरकार से सभी लोगों को नि:शुल्क जांच की सुविधा उपलब्ध कराने की मांग की है और कहा कि अब बच्चे भी तेजी से कोरोना से प्रभावित हो रहे हैं. बच्चों के इलाज के लिए प्रत्येक ग्रामीण प्रखंड और नगर-वार्ड में पहले से ढांचा तैयार किया जाए. 


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