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देश में फरवरी 2021 तक कोरोना के खत्म होने की संभावना, पढ़ें वैज्ञानिक कमेटी की रिपोर्ट

लॉकडॉउन के प्रभाव पर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अगर प्रारंभिक लॉकडॉउन में देरी होती तो और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता.

नई दिल्ली: सरकार द्वारा नियुक्त एक वैज्ञानिक कमेटी ने रविवार को कहा कि भारत में कोविड -19 महामारी अपने चरम यानी पीक को पार कर गई है, लेकिन सुरक्षात्मक उपायों को जारी रखना चाहिए. वहीं अगर मौजूदा सावधानी और उपाय बरते गए तो फरवरी 2021 में महामारी समाप्त होने की संभावना है और तब तक संक्रमण की कुल संख्या लगभग 10.5 मिलियन होगी. वर्तमान में भारत का कुल संक्रमण लगभग 75 लाख है. भारत की केवल 30% आबादी ने अब तक प्रतिरक्षा विकसित की है.

वहीं वैज्ञानिक कमेटी के मुताबिक मार्च में लॉकडाउन की अनुपस्थिति में, भारत की कुल मौतें इस साल अगस्त तक 25 लाख से अधिक हो सकती थीं. वर्तमान में यानी अभी तक  भारत की कुल मौतें सिर्फ 1.14 लाख हैं.

कमेटी 'इंडियन नेशनल सुपरमॉडल' को कोविड -19 के लिए एक मैथमेटिकल मॉडल के साथ आने के लिए नियुक्त किया गया था, जो भारत में महामारी की संभावना पर प्रकाश डाल सकता है. इस समिति में आईआईटी और आईसीएमआर यानी इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के सदस्य थे.

भारत में कोविड -19 महामारी अपने चरम को यानी 'पीक' को पार कर गई है लेकिन सुरक्षात्मक उपायों को जारी रखना चाहिए. हालांकि इस कमेटी के मुताबिक आगामी त्योहार और सर्दियों के मौसम में संक्रमण की संभावना बढ़ सकती है इसलिए सावधानियां जारी रखनी चाहिए. वहीं इनकी रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन अब अवांछनीय है, केवल संकीर्ण भौगोलिक क्षेत्रों पर होना चाहिए. वहीं गतिविधियों को फिर से शुरू करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए.

इस कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च में लॉकडाउन की अनुपस्थिति में, भारत की कुल मौतें इस साल अगस्त तक 25 लाख से अधिक हो सकती थीं. वर्तमान में भारत में कुल मौतें 1.14 लाख हुई हैं. इस दर से फरवरी 2021 तक मृत्यु दर 0.04% से कम होगी.

सभी गतिविधियों को फिर से शुरू किया जा सकता है बशर्ते उचित सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन किया जाना जारी रहे. अगर सभी प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है, तो अगले साल की शुरुआत में फरवरी के अंत तक न्यूनतम सक्रिय मामलों यानी एक्टिव केस में कमी के साथ महामारी को नियंत्रित किया जा सकता है.

इस कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों के अपने राज्य में जाने से केस में बढ़ोतरी नहीं हुई . खासकर यूपी और बिहार में प्रवासियों की आवाजाही के कारण मामलों में तीव्र वृद्धि नहीं देखी गई. लेकिन अगर लॉकडाउन से पहले माइग्रेशन की अनुमति दी जाती तो एक  प्रतिकूल प्रभाव पड़ता.

लॉकडॉउन का प्रभाव पर भी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है की अगर प्रारंभिक लॉकडॉउन में देरी होती तो और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ाता. कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक,

मार्च में वास्तविक लॉकडाउन लगने से

सितंबर अंत तक 10+ लाख पीक एक्टिव सिंप्टोमेटिक मामले और 1 लाख लोगों की मौत.

कोई लॉकडाउन नहीं होता तब?

जून तक 140+ लाख पीक एक्टिव सिंप्टोमेटिक मामले और अगस्त के अंत तक 26 लाख से ज्यादा मौतें होतीं.

अगर लॉकडॉउन 1 अप्रैल- 1 मई के दौरान होता तो?

अगस्त तक 40-50 लाख एक्टिव मामले और 7-10 लाख मौतें होतीं.

त्यौहार और सर्दियों के मौसम में संक्रमण की संभावना बढ़ सकती है ऐसे में सुरक्षात्मक उपायों में ढील से मामलों में वृद्धि हो सकती है. एक महीने के भीतर यानी मध्य अक्टूबर तक 26 लाख संक्रमण होंगे. भविष्य में मौसम और त्योहारों के प्रभाव पर कमेटी का कहना है, कुछ सबूत हैं कि वायरस ठंडे जलवायु में अधिक सक्रिय होते हैं. वहीं कुछ सबूत हैं कि बड़ी सभाओं से ये तेजी से फैलती हैं.

कमेटी ने केरल का उदाहरण देते हुए यह समझाया कि कैसे त्योहार और सभाएं कोरोना के मामले को बढ़ा सकती हैं. केरल में 22 अगस्त से 2 सितंबर को ओणम त्यौहार मनाया गया, और इसके बाद 8 सितंबर से केरल में कोरोना के मामलों में तेज वृद्धि दर्ज की गई. वहीं सितंबर में केरल के लिए संक्रमण की संभावना 32% और चिकित्सा प्रतिक्रिया की प्रभावशीलता 22% तक बढ़ गई.

वैज्ञानिक कमेटी ने फरवरी 2021 के अंत तक अनुमान लगाया है की अगर वर्तमान उपाय जारी रखे गए तो 1.05 लाख केस होंगे. वहीं अगर कोई उपाय नहीं किए गए तो 1.76 लाख केस होंगे. इसके अलावा अगर उपाय कम किए गए तो 1.37 लाख केस हो सकते है.

भारत में अब तक 74 लाख से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके है. अब तक कुल 74,94,551 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए जिसमें से 1,14,031 मरीजों की जान गई है. राहत की बात है की भारत में अब तक 65,97,209 ठीक हो चुके है. इसके साथ ही भारत में रिकवरी रेट यानी ठीक होने की दर 88.03% है जबकि मृत्यु दर 1.52%.

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