नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम फ्री करने की मांग SC ने ठुकराई, कहा- वकील हैं तो क्या कुछ भी दाखिल कर देंगे
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई जिसमें फोन कॉल, इंटरनेट, डीटीएच के साथ नेटफ्लिक्स के वीडियो भी मुफ्त में उपलब्ध कराने की मांग की गई थी.
नई दिल्ली: लॉकडाउन के दौरान सिर्फ ज़रूरी मामलों की सुनवाई के लिए बैठ रहे सुप्रीम कोर्ट के सामने कई ऐसी मांगें आ जाती हैं कि जज भी हैरान रह जाते हैं. आज ऐसा ही एक मामले में हुआ जिसमें याचिकाकर्ता फोन कॉल, इंटरनेट, डीटीएच के साथ नेटफ्लिक्स के वीडियो भी मुफ्त में उपलब्ध कराने की मांग कर रहा था. वकील की बातें सुन कर जज भी चौंक गए.
मुफ्त मनोरंजन की मांग वकील मनोहर प्रताप की याचिका में कहा गया था कि लोग कोरोना जैसी गंभीर बीमारी से घबराए हुए हैं. उन पर मनोवैज्ञानिक दबाव है. इसलिए उन्हें अनलिमिटेड कॉलिंग और इंटरनेट की सुविधा दी जाए. मोबाइल कंपनियों से यह कहा जाए कि लोगों से इनके पैसे न लें.
इस याचिका में यह मांग भी की गई है कि डीटीएच कंपनियों से कहा जाए कि लोग जो चैनल देखना चाहते हैं, उन्हें फ्री में देखने दिया जाए. नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम वगैरह पर जिस वीडियो कंटेंट के पैसे लिए जाते हैं, उन्हें भी अभी फ्री कर दिया जाए.
जस्टिस रमन्ना संजय किशन कौल और बी आर गवई की बेंच ने याचिका पर विचार से मना कर दिया. बेंच ने नाराजगी जताते हुए कहा, “यह किस तरह की याचिका है? क्या आप कुछ भी दाखिल कर देंगे?”
पीएम फंड के खिलाफ याचिका पीएम केयर्स फंड को अवैध बताने वाले याचिकाकर्ता को भी कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई. इलाहबाद के शाश्वत आनंद समेत 4 वकीलों की याचिका में कहा गया था कि बिना किसी कानूनी प्रावधान के इस फंड को शुरू किया गया है. इसमें जमा सारा पैसा राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में ट्रांसफर किया जाए.
जज इस याचिका पर आश्वस्त नहीं थे. लेकिन वकील ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाने लगे. इस पर जस्टिस कौल ने टिप्पणी की, “आपकी याचिका राजनीति से प्रेरित लग रही है. या तो आप इसे वापस लीजिए या हम आप पर जुर्माना लगाते हैं."
इस याचिका में घर घर जाकर कोरोना टेस्ट की भी मांग की गई थी. जजों ने इसे अव्यवहारिक बताते हुए आदेश देने से इंकार कर दिया.
2 और याचिकाएं खारिज आज एक याचिका में बिना लक्षण वाले यानी asymptomatic कोरोना मरीज़ों की जांच के लिए अलग से दिशानिर्देश बनाए जाने की मांग की गई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “ऐसे मामलों को सरकार पर छोड़ देना बेहतर है.“
एक और याचिका में आरोप लगाया गया था कि देश में कोविड 19 की महामारी के बीच दलित, मुस्लिम, उत्तर पूर्व भारत के लोगों से इलाज में भेदभाव किया जा रहा है. जजों ने याचिका पर नाराजगी जताते हुए कहा कि इस तरह का कोई तथ्य सामने नहीं आया है. वकीलों ने घर बैठे याचिका तैयार कर दी है.
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