सरकार ने ड्राई आईस (सीओटू सॉलिड) में पैक की हुई कोविड वैक्सीन के एयर कार्गो से ट्रांसपोर्ट करने को लेकर गाइडलाइन जारी की है. जिसमें 14 रिस्क एसेसमेंट प्वाइंट दिए गए हैं जिनका ध्यान एयरक्राफ़्ट कैरियर और सम्बंधित संस्थाओं को रखना होगा. ड्राई आईस सामान्य तापमान और लो प्रेशर में गैस में बदलने लगती है और खतरनाक होती है. इसलिए इन सावधानियों का पालन जरूरी है.
सरकार के लिए कोविड वैक्सीन को उत्पादन यूनिट से इस्तेमाल की जगहों तक पहुंचाना बड़ी चुनौती है. कोविड वैक्सीन के लिए एयर ट्रांसपोर्ट सबसे सुरक्षित साधन है लेकिन इसमें बहुत से खतरे भी हैं. ऐसे में सरकार ने एक वेल डिफाइंड सिस्टम अपनाने के लिए बहुत सारी बातें स्पष्ट कर नियम बनाए हैं. इसमें ग्लोबल सेफ्टी स्टैण्डर्ड और लोकल कंडीशन की जरूरतों का विशेष ख्याल रखा गया है.
कोविड वैक्सीन के ट्रांसपोर्टेशन की गाइडलाइन
सरकार ने अपने सर्कुलर में एयर ट्रांसपोर्टर के लिए ड्राई आईस ले जाने सम्बंधी कई स्पष्ट गाइडलाइन दी हैं. ड्राई आईस में पैक की हुई कोविड वैक्सीन के ट्रांसपोर्ट के लिए वो शेडयूल्ड ऑपरेटर अधिकृत हैं जिन्हें पहले से खतरनाक किस्म के पदार्थों को ले जाने की अनुमति मिली हुई है. इनके अलावा अन्य एयरक्राफ्ट ऑपरेटरों को ड्राई आईस ले जाने के लिए अलग से अनुमति लेनी होगी.
कोविड वैक्सीन को सुरक्षित रखने के लिए निर्माता कंपनी के अनुसार -8 डिग्री से -70 डिग्री तापमान तक की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में ट्रांसपोर्टेशन के दौरान वैक्सीन को किसी रेफ्रीजरैंट मैटिरियल में रखना आवश्यक हो जाता है. ड्राई आईस इसके लिए सबसे सुलभ रेफ्रीजरैंट मैटिरियल है. कई तरह के रेफ्रीजरैंट मैटिरियल में से भारत में ड्राई आईस (ठोस कार्बन डाईऑक्साईड) का इस्तेमाल सबसे अधिक किया जाता है क्योंकि ये आसानी से उपलब्ध है और सस्ती पड़ती है. सामान्य तापमान पर जल्दी खराब होने वाली चीजों और दवाओं को सुरक्षित रखने के लिए ड्राई आइस का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है.
क्यों ‘ख़तरनाक सामान’ है ड्राई आईस?
ड्राई आईस सामान्य वायुमण्डलीय दबाव में और -78 डिग्री से ज्यादा तापमान पर अपने ठोस रूप से सीधे गैस रूप में पिघलने (सबलिमेशन) लगती है. सिर्फ दबाव कम हो जाने पर भी सब्लीमेशन होने लगता है. इसलिए ड्राई आइस को एयर ट्रांसपोर्ट के लिए डेंजेरस गुड्स की श्रेणी में रखा गया है. गैस अवस्था में कार्बन डाईऑक्साईड स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होती है. एयर ट्रांसपोर्टर को ये बताना होगा कि जिस कार्गो विमान में ड्राई आईस में पैक की हुई कोविड वैक्सीन जाएगी उसमें कितनी ड्राई आईस ले जाई जा सकती है.
विमान में कितनी ड्राई आईस के पैक जा सकते हैं. ये जानकारी एयरक्राफ्ट बनाने वाली कम्पनी बताएगी. एयरक्राफ्ट का वेंटीलेशन सिस्टम कितनी ड्राई आईस के खतरे को झेल सकता है. उसी आधार पर ड्राई आईस की ट्रांसपोर्ट मात्रा तय होगी. कुछ यात्री विमानों को भी पूरी तरह कोविड वैक्सीन ट्रांसपोर्ट के काम में लगाया जाएगा. इसलिए ऐसे विमानों के बारे में भी इस तरह की तकनीकी जानकारी आवश्यक होगी.
14 रिस्क असेस्मेंट प्वाइंट - एयर कार्गो से कोविड वैक्सीन ले जाने पर लागू
1. वैक्सीन विशेष की पैकेजिंग और हैंडलिंग के लिए वैक्सीन के गुण-धर्म की जानकारी.
2. ले जाई जा रही कुल ड्राई आईस की मात्रा, भार और उसके रेट ऑफ सब्लिमेशन की जानकारी.
3. कार्बन डाई ऑक्साईड डिटेक्शन मशीन
4. एयरक्राफ्ट वेंटिलेशन सिस्टम की प्रैक्टिकल स्थिति क्या है. सामान्य और असामान्य स्थितियों में इसके सभी कंट्रोलर्स काम कर रहे हैं या नहीं.
5. एयरक्राफ्ट और सिस्टम कंफिगरेशन के अन्य बिंदुओं के साथ ताल मेल
6. एयरक्राफ्ट में रखे अन्य तरह के सामानों के साथ ड्राई आईस की दूरी.
7. क्या ड्राई आईस वाले एयरक्राफ्ट में इन्हें ले जाने वाले या अन्य तरह के लोग भी यात्रा कर रहे हैं ?
8. प्रोसिजर एंड ट्रेनिंग- एयरक्राफ्ट के भीतर और बाहर के हैंडलिंग स्टाफ की आवश्यक ट्रेनिंग.
9. डिपार्चर और एराइवल स्थलों के तापमान का पूर्वानुमान ताकि ड्राई आईस के सब्लिमेशन रेट को आंका जा सके.
10. अगर कोविड वैक्सीन की पैकेजिंग से गैस लीक हुई तो सम्भावित गैस प्रेशर का अनुमान.
11. पैकेजिंग के एक स्थान पर अनुमान से अधिक देर रहने पर या डिले होने पर रेफ्रीजरैंट मैटिरियल पर पड़ने वाला प्रभाव.
12. अलग-अलग एयरपोर्ट या एयरपोर्ट विशेष की ग्राउंड हैंडलिंग कंडिशंस.
13. अनुमानित डाईवर्जन टाईम और अल्टरनेट रूट.
14. यात्री केबिन में वैक्सीन ले जाने की स्थिति में कार्बन डाईऑक्साईड का कंसंट्रेशन लेवल न बढ़े इस सम्बंध में तकनीकी सावधानियां.
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