भारत में शोधकर्ताओं ने कोविड-19 बीमारी का कारण बननेवाले कोरोना वायरस के हजारों जेनेटिक वैरिएन्ट्स का पता लगाया गया है. हैदराबाद में सेंटर फोर सेलूलर एंड मोलेक्यूलर बॉयोलोजी (सीएसआईआर-सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के मुताबिक, उन वैरिएन्ट्स में से एक देश के दक्षिणी राज्यों में 'बहुत ज्यादा' फैल रहा है. उन्होंने उसके फैलाव को उचित तरीके से समझने के लिए सर्विलांस की जरूरत भी बताई है. गौरतलब है कि महाराष्ट्र, पंजाब, केरल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर समेत कई भारतीय राज्य पिछले कुछ दिनों से कोविड-19 के मामलों में वृद्धि का सामना कर रहे हैं.


कोरोना के वैरिएन्ट N440K से बढ़ी चिंता


सीएसआईआर-सीसीएमबी के विशेषज्ञों ने देश में उजागर हुए 5 हजार कोरोना वायरस के वैरिएन्ट्स और उनकी उत्पत्ति का महामारी के दौरान विश्लेषण किया. उन्होंने पाया कि उनमें से कुछ वैरिएन्ट्स भारत के खास सूबों में ज्यादा फैल रहे हैं, ज्यादातर दक्षिणी क्षेत्र में. सीएसआईआर-सीसीएमबी के डायरेक्टर डॉक्टर राकेश मिश्रा ने प्रेस रिलीज में बताया कि N440K कोविड वैरिएन्ट दक्षिणी राज्यों में बहुत ज्यादा फैल रहा है. उनका मानना है कि सटीक और वक्त रहते नए वैरिएन्ट्स की पहचान बहुत अहम होगा.


वैज्ञानिकों ने बताई सर्विलांस की जरूरत


कुछ रूपातंतरित कोविड-19 वैरिएन्ट्स ने अन्य देशों में खतरे की घंटी बजा दी है. लेकिन भारत में उनका प्रसार अब तक धीमा दर्ज किया गया है. डायरेक्टर ने हालांकि सुझाव दिया कि उनका स्पष्ट कम प्रसार प्रयाप्त सिक्वेंसिंग न करने की वजह से हो सकता है. मिश्रा ने कहा, "कोरोना वायरस के ज्यादा जिनोम्स को पूरे मुल्क में सिक्वेंस किए जाने की जरूरत है जिससे सटीकता से उनकी और अन्य नए वैरिएन्ट्स की उभार का पता लगाया जा सके." खासकर, कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में बदलाव ने चिंता बढ़ा दी है.


शोधकर्ता डॉक्टर दिव्या तेज सोपती का कहना है कि इस प्रोटीन में बदलाव 'वायरल ट्रांसमिशन की दर को बढ़ा सकता है'. उन्होंने चेतावनी दी कि इन वैरिएन्ट्स में से कुछ दोबारा संक्रमण की वजह बन सकते हैं. इससे पहले, दिसंबर में सीएसआईआर-आईजीआईबी, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने खुलासा किया था कि कम से कम भारत में पाए गए कोरोना वायरस के 19 जेनेटिक वैरिएन्ट्स एंटीबॉडीज को चकमा देने के लिए विकसित हो चुके हैं, जिससे दूसरी बार बीमारी की संभावना हो सकती है. N440K वैरिएन्ट भारत में जीन सिक्वेन्स के 2.1 फीसद मामलों में पाया गया था.


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