नई दिल्लीः गाय के राष्ट्रीय पशु बनाने की कवायद करते हुए जस्टिस महेश चंद्र शर्मा ने मोर का उदारण पेश किया. जज ने मोर को ब्रह्मचारी पक्षी बताया. इसे लेकर सोशल मीडिया सहित चारो ओर जज साहब की तीखी आलोचना हो रही है. एबीपी न्यूज ने रिटायर्ड जस्टिस महेश चंद्र शर्मा से खास बातचीत की है. इस बातचीत में रिटायर्ड जज ने कहा कि गाय को लेकर ये भाव मेरे मन में काफी पहले से थे और आज जब मैं ये सुझाव देने योग्य हूं तो मैंने सरकार को ये सुझाव दिया है.
जहां गाय रहती है वहीं सुख समृद्धि आती है
सुंदर कांड में भी लिखा है कि गाय और तुलसी जहां होते हैं वहां हर प्रकार की सुख समृद्धि आती है. ये मेरी आत्मा कि आवाज है जिसे मैंने अपने जजमेंट में ढाला. धर्म और कानून दोनों अलग-अलग चीजें हैं. धर्म से कानून निकला है कानून से धर्म नहीं.
गाय को संवैधानिक दर्जा
हाल ही में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गंगा-यमुना को कानूनी दर्जा देने की बात कही है तो हम गाय को क्यों नहीं दे सकते. गाय तो जीवीत प्राणी है.
गाय पर हाथ फेरने से ब्लड प्रेशर की परेशानी खत्म
जस्टिस शर्मा का कहना है कि मां के दूध में एक बार कुछ कमियां हो सकती है लेकिन गाय का दुध खुद में निपूर्ण होता है. यहां तक की गाय के ऊपर हाथ फेरने से ब्लड प्रेशर की परेशानी खत्म हो जाती है.
मोर को लेकर दिया विवादित बयान
जस्टिस महेश चंद्र शर्मा ने कहा कि ‘ मोर को राष्ट्रीय पक्षी इसलिए घोषित किया क्योंकि मोर आजीवन ब्रह्मचारी रहता है. मोर के आंसू को चुग कर मोरनी गर्भवती होती है. मोर कभी भी मोरनी के साथ सेक्स नहीं करता. मोर के पंख को भगवान कृष्ण ने इसलिए लगाया क्योंकि वह ब्रह्मचारी है. मंदिरों में भी इसलिए मोर पंख लगाया जाता है. ठीक इसी तरह गाय के अंदर भी इतने गुण हैं कि उसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए.’
जस्टिस महेश चंद्र शर्मा ने सरकार को ये सुझाव अपने रिटायरमेंट के दिन आखिरी सुझाव के रुप में दिया . इसके साथ ही उन्होंने राजस्थान के मुख्य सचिव और महाधिवक्ता को गाय का लीगल कस्टोडियन बना दिया.