(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
'हिंदी फॉर हिंदुस्तान' पर भड़के CPI सांसद, पीएम मोदी को लिखा पत्र, बोले- ये आइडिया ऑफ इंडिया के लिए खतरनाक
राजभाषाओं पर संसद की समिति 11वीं रिपोर्ट पर सीपीआई सांसद बिनॉय विश्वम ने आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा है कि रिपोर्ट में की गई सिफारिशें विभाजनकारी और खतरनाक हैं. बिनॉय को पीएम को पत्र लिखा है.
CPI MP Binoy Viswam: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के केरल (Kerala) से राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम (Binoy Viswam) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र (PM Modi) को पत्र लिखा है. उन्होंने "राजभाषाओं पर संसद की समिति की 11 वीं रिपोर्ट" के खिलाफ आपत्ति जताई है. सांसद बिनॉय विश्वम ने पत्र लिखकर कहा है कि रिपोर्ट हिंदी को भारत की प्रमुख भाषा बनाने के लिए अनुचित महत्व देती है.
'हिंदी को थोपना आपत्तिजनक है'
पीएम मोदी को लिखे अपने पत्र में सांसद विश्वम ने कहा, "मैं 'राजभाषाओं पर संसद की समिति की 11वीं रिपोर्ट के खिलाफ अपनी कड़ी आपत्ति व्यक्ति कर रहा हूं, जो एक राष्ट्र के रूप में हिंदी को भारत की प्रमुख भाषा बनाने के लिए अनुचित महत्व देती है. कई भाषाओं में दूसरों के बहिष्कार के लिए हिंदी को थोपना आपत्तिजनक है और संविधान की 8 वीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त 21 अन्य आधिकारिक भाषाओं के महत्व को खतरा है."
'रिपोर्ट की सिफारिशें विभाजनकारी हैं'
सांसद ने दावा किया कि रिपोर्ट में सिफारिशें विभाजनकारी और खतरनाक पदों को प्रतिध्वनित करती हैं जो 'भारत के विचार' को अपूरणीय क्षति का कारण बनेंगी. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट का केंद्रीय सिद्धांत 'हिंदी फॉर हिंदुस्तान' भारत की विविधता की पूरी तरह से अस्वीकृति है और शैक्षणिक संस्थानों से लेकर सार्वजनिक कार्यालयों तक सभी केंद्र सरकार के संस्थानों में हिंदी को लागू करने की सिफारिश करता है.
'गैर-हिंदी भाषी छात्रों पर पड़ेगा असर'
विश्वम ने कहा कि इस तरह के कदम से गैर-हिंदी भाषी छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जो अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने से IIT या IIM जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में एक बड़े वर्ग का गठन करते हैं. उन्होंने कहा, "आगे हिंदी का उपयोग नहीं करने वाले लोक सेवकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की सिफारिश एजेंडे में अंतर्निहित रिपोर्ट का एक और उदाहरण है और देश में महान उथल-पुथल के लिए आधार तैयार करती है."
'मैं इस रिपोर्ट को वापस लेने का आग्रह करता हूं'
विश्वम ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई न्यायाधीशों, संवैधानिक कानून के विद्वानों, इतिहासकारों, राजनेताओं और अन्य प्रमुख नागरिकों ने अनगिनत बार दोहराया है. कई बार एकरूपता थोपने के प्रलोभन का विरोध किया जाना चाहिए और भारत की बहुलता की रक्षा की जानी चाहिए.
उन्होंने कहा, "मैं आपसे इस रिपोर्ट को वापस लेने और इस तरह का कोई भी नीतिगत निर्णय लेने से पहले इस संवेदनशील विषय पर व्यापक परामर्श लेने का आग्रह करता हूं. भारत कई संस्कृतियों का देश है जहां प्रत्येक नागरिक की मातृभाषा उनकी पहचान के एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करती है. किसी व्यक्ति की मातृभाषा पर एक माध्यमिक दर्जा थोपने का हमेशा कड़ा विरोध होगा और भारत की एकता के लिए समस्या पैदा करेगा."
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