जम्मू-कश्मीरः पिछले कुछ दिनों से भारत की सीमाओं पर बड़े तनाव के चलते जम्मू कश्मीर में लोग खासे परेशान हैं. एक तरफ लद्दाख में चीनी सेना भारतीय इलाके पर कब्जा करने की कोशिशों में जुटी है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में सीमाओं पर गोलाबारी जारी रखे हुए है, जिसमें अभी तक कई आम नागरिक और सेना के जवान अपनी जान खो चुके हैं. सरहद पर रहने वाले एक तरफ कोरोना और दूसरी तरफ पाकिस्तानी गोलाबारी का शिकार हो रहे हैं.


उत्तरी कश्मीर में बारामुल्ला के उरी सेक्टर में पिछले एक हफ्ते से पाकिस्तानी गोलाबारी में खासी बढ़ोतरी हुई है. लगातार हो रही गोलाबारी के चलते हाजीपीर सेक्टर, रामपुर सेक्टर और उरी सेक्टर में दर्जनों गांवों में लोग पलायन करने पर मजबूर हो गए है.

उरी-हाजीपीर सेक्टर में शेलिंग

उरी का दर्दकोट इलाका सबसे पहले इस गोलाबारी का शिकार हुआ. 9 जून को यहां पाकिस्तानी फायरिंग और शेलिंग में दर्जन भर मकान बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए, लेकिन गनीमत रही कि कोई जान नहीं गई. गांव के सरपंच फैसल इकबाल के मुताबिक, इस बार शेलिंग इतनी ज्यादा थी कि लोगों को घरों के अंदर भी मौत का खौफ होने लगा था और खुशकिस्मती के चलते वह लोग बच गए.

दर्दकोट गांव हाजीपीर सेक्टर में सीमा से सटा एक बड़ा गांव है. करीब 5 हजार की आबादी वाले इस गांव को यहां से हटा पाना मुश्किल है, इसलिए लोग हर घर में बंकर की मांग कर रहे हैं ताकि ऐशे हालात आने पर वो अपने और अपने परिवार की जान बचा सकें. यही हाल इस सेक्टर के दर्जन भर गांवों का है, जिनमें से सिलिकोट, चुरुंडा, गरकोट और दर्दकोट जैसे गांव सबसे ज्यादा मार झेल रहे है.

रामपुर सेक्टर में महिला की मौत

पास के ही रामपुर सेक्टर में भी 11 जून को जबरदस्त गोलाबारी हुई लेकिन यहां पर रहने वाले इतने खुशकिस्मत नहीं थे. पाकिस्तानी शेलिंग में गांव की तीन महिलाएं घायल हो गईं, जिनमें से 49 साल की अख्तर बेगम सिर में शैल  लगने से मौके पर ही मर गयीं.

अख्तर बेगम के 19 साल के बेटे हफीज अहमद बताते हैं कि पाकिस्तानी सेना जानबूझकर भारतीय इलाके में गांव और रिहायशी मकानों को निशाना बना रही है.  हफीज के अनुसार, भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना के पोस्ट को निशाना बनाती है, लेकिन पाकिस्तानी सेना इसके बिलकुल उलट आबादी वाले इलाकों पर शेलिंग करती है.

गांव के ही एक और शख्स सैय्यद मुनीर के अनुसार, भारतीय सेना के मजबूत हमलों को पाकिस्तानी सेना झेल नहीं पाती और इसलिए यहां सिविलियन घरों को निशाना बनाती है और जब भारतीय इलाकों में आम नागरिक शिकार होने लगते हैं, तो मजबूरी में सेना को पाकिस्तानी इलाको पर गोलाबारी रोकनी पड़ती है.

घरों में बंकर बनाने की मांग

ऐसे में लोगो की बस एक ही मांग है कि या तो उनको पुंछ और राजौरी की तरह घरो में बंकर बना कर दिए जाएं या फिर पाकिस्तानी सरकार और सेना पर दबाव डालकर गोलाबारी रुकवाई जाए. स्थानीयों का मानना है कि जहां बाकी लोग पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जंग की बात करते हैं, वहीं सरहद पर रहने वाले इन लोगो के लिए हर दिन जंग से कम नहीं.

पाकिस्तानी गोलाबारी और कोरोना का दोतरफा खौफ

इन गांव के लोगों का दर्द इस वक्त दोहरा है. एक तरफ सरकार लोगों को कोरोना के चलते घरो में रहने के लिए मजबूर करती है, तो वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तानी गोले उनके लिए घर को कब्रिस्तान बन रहे है. ये लोग दोनों देशों की सरकारों से अपील कर रहे हैं कि कम से कम कोरोना के काल में तो उनको शांति से रहने दें.

ऐसे में इन इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए भारतीय सेना ही एकमात्र मददगार बन कर आई है. सेना के जवान इन सरहदी इलाकों में रहने वाले लोगों की हिफाजत के लिए न सिर्फ पाकिस्तानी गोलीबारी का जवाब देकर उनके पोस्ट को नष्ट करते हैं, बल्कि पाकिस्तानी गोलों से उन को बचा भी रहे हैं. सेना के जवानों के लिए इन दिनों केवल दो काम हैं - पाकिस्तानी फायरिंग और शेलिंग के शिकार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना और उन गोलों को नष्ट करना जो फट नहीं पाए.

इसके साथ-साथ सेना पाकिस्तानी फायरिंग का शिकार होने वालों को मदद भी पहुंचा रही है. जख्मी लोगों का उपचार करना और लोगों को खाने-पीने का सामान और जरूरी सुविधाएं भी पहुंचा रही है.

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