नई दिल्ली: कश्मीर घाटी की सुरक्षा की जिम्मेदारी सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स यानी सीआरपीएफ के जवानों के कंधे पर है. दिन के चौबीस घंटे, साल के 365 दिन ये भारी खतरे के बीच काम करते हैं, ज़रा सी चूक का मतलब है, जान गंवा देना, इसीलिए फायरिंग प्रैक्टिस बेहद जरूरी है.


पिछले साल सीआरपीएफ दस्तों पर किए गए हमलों में 15 जवान शहीद हुए हैं इन आंकड़ों से आप समझ सकते हैं कि सीआरपीएफ जवानों को अपनी जान हथेली पर रखकर कश्मीर घाटी में काम करना पड़ता है. लेकिन सीआरपीएफ कश्मीर घाटी में सिर्फ लोगों की सुरक्षा ही नहीं करती, बल्कि छोटी से बड़ी हर तरह की मदद भी करती है. कश्मीर घाटी का कोई भी नागरिक सीआरपीएफ की इस मददगार हेल्पलाइन पर फोन करता है तो फौरन उसके पास मदद पहुंच जाती है. 16 जून 2017 को मददगार हेल्पलाइन की शुरूआत की गयी थी.


कश्मीर घाटी के सभी 10 जिलों के लोग किसी भी परेशानी को इस पर साझा कर सकते हैं. अब तक 93 हजार से भी ज्यादा कॉल हेल्पलाइऩ पर आ चुकी हैं. बच्चों सहित कई लोगों की जिंदगियां हेल्पलाइन के जरिए बचायी जा चुकी हैं. 14411 इस नंबर पर कोई भी जो कश्मीर का रहने वाला है वो कॉल कर सकता है. यहां कॉल करेंगे फिर वो समस्याएं लिखेंगे, फिर यहां जो डिस्पैचर हैं उनके पास वो समस्या भेजेंगे और फिर ये जो संबंधित यूनिट कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में वो वहां पर बताएंगे.


श्रीनगर में सीआरपीएफ की इस मददगार हेल्पलाइऩ का कंट्रोल रूम है. यहीं पर सारी कॉल्स आती हैं, परेशानी सुनी जाती है और फिर उन्हें संबंधित इलाके के अधिकारियों तक पहुंचा दिया जाता है. यानी सिर्फ परेशानी आगे बढ़ाकर ही नहीं रहते बल्कि फीडबैक लेकर सुनिश्चित भी करते हैं कि मदद हुई या नहीं, कंट्रोल रूम चौबीसों घंटे चलता है. कॉल अटेंड करने से लेकर उससे संबंधित यूनिट तक ट्रांसफर करने तक, हर काम बड़ी ही सावधानी और मुस्तैदी से होता है.


एबीपी न्यूज़ की टीम वहां मौजूद ही थी कि तभी एक मेडिकल इमरजेंसी की कॉल आयी, कॉल सेंटर ने अलर्ट किया और एंबुलेंस फौरन निकल पड़ी. मददगार हेल्पलाइन की मदद से इस मरीज को फौरन मेडिकल सहायता मिली और उसका इलाज किया गया. अगर किसी को कोई परेशानी होती है तो वो तुरंत मददगार हेल्पलाइन पर कॉल करता है और अपने लिए एंबुलेंस की मांग करता है और फिर इसी तरीक से उसका इलाज किया जाता है. आने वाली कॉल्स में सबसे ज्यादा मेडिकल सुविधाओं के लिए ही होती हैं.


कैंप में जो मेडिकल इंवेस्टेगेशन रूम बना होता है, वहां फौरी तौर पर यहां इलाज किया जाता है. अगर इलाज यहीं मुकम्मल होगा तो यहीं करते हैं अगर जरूरत पड़ेगी बड़े हॉस्पिटल में ले जाने की तो यहां से फिर बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है.