रॉकेट की दुनिया में भारत का बड़ा कदम, क्रायोजेनिक इंजन की इंटीग्रेटेड फैसिलिटी तैयार, US लगाता रहा है अड़ंगा
Cryogenic Engine Facility Inaugurated: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मंगलवार को बेंगलुरु में द आर्ट इंटीग्रेटेड क्रायोजेनिक इंजन मैन्युफैक्चरिंग फैसेलिटी (ICMF) का उदघाटन करेंगी.
Cryogenic Engine Facility: जिस क्रायोजेनिक इंजन को भारत में बनाने को लेकर अमेरिका (America) ने एक लंबे समय तक अड़ंगा लगाया था. उस इंजन की एक पूरी मैन्युफैक्चरिंग-फैसिलिटी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मंगलवार को देश को समर्पित करने जा रही हैं. बेंगलुरू में हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड (HAL) ने अंतरिक्ष में जाने वाले रॉकेट के लिए बेहद जरूरी क्रायोजेनिक इंजन की इंटीग्रेटेड फैसिलिटी तैयार कर ली है, जहां इन इंजनों के निर्माण से लेकर टेस्टिंग तक की जाएगी.
एचएएल के मुताबिक मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बेंगलुरू में इस स्टेट ऑफ द आर्ट इंटीग्रेटेड क्रायोजेनिक इंजन मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी (ICMF) का उद्घाटन करेंगी. इस फैसिलिटी के बनने से इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) के सभी रॉकेट इंजन का निर्माण एक छत के नीचे ही होगा.
इस फैसिलिटी के बनने से रॉकेट इंजन के निर्माण में आत्मनिर्भर बनने में एक बड़ा कदम है. एचएएल के अनुसार आईसीएमएफ करीब 4500 वर्ग मीटर में फैली है और यहां भारत के स्पेस लॉन्च व्हीकल के लिए क्रायोजेनिक (CE-20) और सेमी-क्रायोजेनिक (एसई2000) बनाने के लिए 70 से ज्यादा हाई-टेक उपकरण और टेस्टिंग फैसेलिटी को तैयार किया गया है.
क्रायोजेनिक इंजन का इसलिए होता इस्तेमाल
क्रायोजेनिक इंजन अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले लॉन्च व्हीकल में इस्तेमाल किए जाते हैं और अभी तक अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और जापान जैसे चुनिंदा देश ही इस बनाने में सक्षम हैं. अब इस श्रेणी में भारत भी शामिल हो चुका है लेकिन एक समय था जब अमेरिका ने क्रायोजेनिक इंजन को भारत में बनाने को लेकर काफी मुश्किलें खड़ी की थी.
यहां तक की अमेरिका ने रूस तक को क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक देने से रोक दिया था. इसके कारण भारत के स्पेस-प्रोग्राम में काफी रुकावट आई थी. 90 के दशक में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक, नम्बी नारायण इसी क्रायोजेनिक इंजन विंग के प्रमुख थे जिन्हें साजिश के तहत फंसाकर जेल भेज दिया गया था.
पहली बार कब हुआ क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल
इसरो ने साल 2014 में जीएसएलवी-डी 5 सैटेलाइट के लॉन्च के दौरान पहली बार स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया था. इस इंजन को प्राइवेट कंपनियों की मदद से तैयार किया गया था. भविष्य में अंतरिक्ष में रिसर्च के लिए क्रायोजेनिक तकनीक बेहद महत्वपूर्ण है. क्रायोजेनिक इंजन से पहले एचएएल इसरो के लिए लिक्विड प्रोपेलेंट टैंक और पीएसएलवी, जीएसएलवी इत्यादि के लिए लॉन्च व्हीकल के स्ट्रक्चर का निर्माण भी करता है.
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