नई दिल्ली: कोरोना का असर इस बार त्योहारों पर भी पड़ा है. संक्रमण फैलने के खतरे को देखते हुए किसी भी बड़े धार्मिक आयोजन की मनाही है. नवरात्रि, ईद, रक्षाबंधन जैसे बड़े त्योहार निकल गये और लोगों ने घर पर रहकर ही त्योहार मनाया. जन्माष्टमी और गणेश उत्सव पर भी कोरोना का असर देखने को मिल रहा है. सबसे ज़्यादा मार पड़ी हैं उन मूर्ति बनाने वालों पर जिनका साल भर का रोज़गार और कमाई इसी पर टिका होता है. सड़क किनारे गणपति की सुंदर और भव्य मूर्तियों की कतार लगी होती थी, खरीददारों और ऑर्डर देने वालों की भीड़ लगी होती थी. लेकिन इस बार सब अलग है.
किसी बड़े आयोजन के न होने के चलते पहले से मिलने वाले मूर्ति के ऑर्डर अब कारीगरों को नहीं मिल रहे. भगवान की मूर्ति की ऊंचाई भी मूर्तिकारों ने घटा दी है. बड़ी मूर्तियां न बनाकर कम ऊंचाई वाली मूर्तियां ही बनाई जा रही हैं, उनकी संख्या भी काफी कम है. मूर्ति बनाने वालों को डर है कि ग्राहक आयेंगे भी या नहीं.
दिल्ली की आउटर रिंग रोड पर पिछले 25 सालों से मूर्ति बनाने का काम करने वाले मदन और मंजू भी इसी परेशानी से गुज़र रहे हैं. मदन का कहना है "छोटी मूर्ति बना रहे हैं बड़ी मूर्ति नहीं बना रहे. डर लगता है कि बिकेगी नहीं. दो फुट से ज़्यादा ऊंचाई की मूर्ति इस बार नहीं बनाई वैसे 6 फुट तक की मूर्ति बनाते थे. 50-60 मूर्ति बनाई है पहले 500 के करीब बनाते थे. जो पुराना कस्टमर है वो तो लेकर जायेगा ही. इसी हिसाब से उनके लिये बनाया है."
मंजू का कहना है, "रोज़गार बिल्कुल खत्म हो गया है. 500 मूर्ति रखते थे अब 50-100 ही रखी है. डर लग रहा है कि कोरोना की वजह से पता नहीं ग्राहक आयेंगे या नहीं. लोग नहीं आयेंगे तो हमें बहुत घाटा हो जायेगा. पहले महीने भर पहले से ही ऑर्डर मिल जाते थे, इस बार नहीं मिला. ख़र्चा चलाने में तो मुश्किल होगी ही. कुछ और मजदूरी दिहाड़ी वाला काम करेंगे."
दिल्ली के लोनी रोड पर हर साल इस वक्त मूर्तियों की लंबी कतार देखने को मिलती थी लेकिन इस बार इक्का-दुक्का दुकानें नज़र आ रही हैं.
इसी इलाके में 20 साल से मूर्ति बनाने के काम मे लगी स्वरूपी और शांति देवी का कहना है, "20 साल से मूर्ति बना रहे हैं ऐसा समय नहीं आया कभी. लॉकडाउन से बहुत असर पड़ा है. कर्जा भी हो गया है और मूर्ति की बिक्री नहीं हो रही है. ग्राहक नहीं आ रहे हैं. हर साल इस समय बहुत काम होता था.
सड़क किनारे मूर्तियों की लंबी लाइन लगी होती थी, इस बार कुछ भी नहीं है. बड़ी मूर्ति नहीं बना रहे क्योंकि पता नहीं बिकेंगी या नहीं. पहले से ही कर्जा है और कर्ज़ बढ़ जायेगा. दुर्गा मूर्ति अप्रैल के नवरात्रों के लिये बनाई थी, सिर्फ एक मूर्ति बिकी बाकी वैसे ही रखी हैं. रोजी रोटी का साधन यही है. लॉकडाउन में बहुत बुरा हाल हुआ है."
मूर्ति की पेंटिंग का काम करने वाले कारीगर श्रवण का कहना है, "इस समय बहुत भीड़ होती थी. 100-150 बड़े पीस 6-7 फुट के बनते थे और छोटे पीस 1000-1200 बनाते थे. लेकिन इस बार कुछ समझ नहीं आ रहा कि माल बिकेगा या नहीं. पहले नवरात्रों के लिये बनाया था. 23 अप्रैल से नवरात्रि का सामान बिकता 24 से लॉकडाउन हो गया. सारा माल उस समय का रखा हुआ है.
पहले अब तक सारी बुकिंग हो जाती थी काफी काम होता था. 1500 पीस बनते थे अब 200-250 पीस ही बने हैं. गणेश पूजा का मौका ही सबसे ज़्यादा काम वाला होता था, साल भर इसी सीज़न का इंतजार करते थे इस बार पता नहीं क्या करेंगे. करीब 6-7 लाख का नुकसान हो गया यानि साल भर की कमाई खत्म हो गई."
मूर्ति खरीदने आये कुछ लोगों से हमने बात की उनका कहना है, "कोरोना का असर तो आया ही है, लाइन लगाकर दुकानें होती थीं. इस बार कुछ नहीं है. मूर्ति भी बहुत कम हैं. आर्थिक रूप से सबको दिक्कत है. लेकिन पूजा तो करेंगे ही. सामूहिक धार्मिक आयोजन नहीं होंगे. कोरोना का पूरा ख्याल रखकर ही घर पर भी पूजा करेंगे. बप्पा आएंगे और सबका भला करेंगे."
कोरोना की मार और ग्राहकों के अभाव में इन मूर्तिकारों को सबसे बड़ी चिंता यही सता रही है कि जो मूर्तियां इन्होंने बनाई हैं वो भी बिक पायेंगी या नहीं.
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