मुंबई ने बीते सोमवार को तूफान ताउते के वक्त जो कुछ भी देखा वो आने वाले वक्त की तस्वीर है. जिस तरह से मुंबई में अरब सागर अपनी सीमाओं को लांघ कर शहर में घुसने को बेताब था वो पर्यावरण वैज्ञानिकों कि उस आशंका को तस्दीक करता है कि साल 2050 तक मुंबई के एक बड़े हिस्से में पानी होगा. क्यों और कैसे डूबेगी मुंबई आईए समझने की कोशिश करते हैं.
मुंबई का गेटवे ऑफ इंडिया जिसे कि साल 1924 में अंग्रेजों ने ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम की भारत यात्रा की याद में तैयार किया था. ये गेटवे ऑफ इंडिया और इसके आसपास का इलाका समुद्र को पाट करके यानी रिक्लेम करके बनाया गया हैै. बारिश के मौसम में अक्सर अरब सागर की उफनती लहरें इस दीवार को टकराती है और उससे उपजी बौछारें बाहर की सड़क को भिगो देती है, लेकिन सोमवार को जो कुछ भी हुआ वो हाल के सालों में किसी मुंबई वाले ने नहीं देखा. ऐसा लग रहा था मानो समंदर सड़क को क्रॉस करके उसको और ऐतिहासिक ताजमहल होटल में घुसना चाहता है. लहरों की तीव्रता इतनी ज्यादा थी कि फुटपाथ के इर्द-गिर्द लगाए गए बैरिकेड गिर पड़े.
सोमवार को जो तस्वीरें दिखीं हैं आने वाले वक्त में बार-बार देखी जा सकती है. इसके पीछे कारण है ग्लोबल वार्मिंग और मुंबई का इतिहास और भूगोल. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से लगातार समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है.
मुंबई शहर पहले सात छोटे-छोटे डाकुओं में बटा हुआ था. इन टापू पर पुर्तगालियों ने कब्जा किया लेकिन साल 1661 में जब ब्रिटेन के राजकुमार की शादी पुर्तगाल की राजकुमारी के साथ हुई तो इन सातों टापू को दहेज में ब्रिटेन के हवाले कर दिया गया. ब्रिटिश सरकार ने सातों टापुओं को मिलाकर इसे वर्तमान मुंबई शहर की शक्ल दी. सातों टापू को जोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर समुद्र को पाटना पड़ा यानी रिक्लेमेशन करना पड़ा. रिक्लेमेशन करने का एक आम 1845 में पूरा हुआ आज मुंबई शहर जिस जगह खड़ा है उसका बड़ा हिस्सा तीन सौ साल पहले तक समंदर में हुआ करता था तो क्या इतिहास वापस अपने आपको दौर आएगा फिर एक बार मुंबई का बड़ा हिस्सा समंदर के हवाले हो जाएगा.
अमेरिका के संगठन Climate Central के मौसम वैज्ञानिकों की टीम ने एक पड़ताल के जरिए बताया है कि समंदर का स्तर जिस तरह से बढ़ रहा है उसको देखते हुए साल 2050 तक मुंबई एक बड़ा हिस्सा प्रभावित होगा. वहां समुद्री पानी दाखिल हो जाएगा. कम से कम मानसून के महीनों में ऐसी आशंका ज्यादा है. पूरे भारत में 30 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं. Goa की National Institute of Oceanography ने साल 2015 में पाया कि साल 1993 से लेकर 2012 तक सागर का औसत जलस्तर 03.22 मिलीमीटर बढ़ रहा है. Climate Central की रिपोर्ट पर कुछ लोगों ने सवाल भी उठाए हैं और उसमे खामियां पाई हैं लेकिन ग्लोबल वार्मिंग को लेकर काम कर रहे कई संगठनों का अनुमान है कि सदी के अंत तक 2 मीटर तक समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा.
समुद्री वैज्ञानिकों के मुताबिक सागर का जलस्तर हमेशा से बढ़ा रहा है. समुद्र में समाई द्वारका नगरी इसकी मिसाल है लेकिन 19वीं सदी में जबसे औद्योगिक युग शुरू हुआ है तबसे इसकी रफ्तार बढ़ी है.
तमाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पडतालों में इस बात के संकेत दिए गए हैं कि आने वाले वक्त में बड़ी ही तेजी से समंदर का जलस्तर बढ़ेगा. समंदर के जलस्तर बढ़ने से वैसे तो दुनिया भर के तटीय इलाके प्रभावित होंगे लेकिन अपनी आबादी और विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण मुंबई में इसका ज्यादा प्रभाव पड़ेगा.
मुंबई के लिए आफत एक के बाद एक आ रहे चक्रवात भी हैं. पहले बंगाल की खाड़ी में ज्यादा चक्रवात आते थे लेकिन दुनिया के जलवायु परिवर्तन ने अरब सागर में भी इसके बारंबारता बढ़ा दी है. अब लगभग हर साल अरब सागर में चक्रवात आता है. पिछले साल निसर्ग आया था, इस साल ताउती आया है.
तो क्या बार बार हो रही इन कुदरती आपदाओं से हम कोई सबक ले रहे हैं? मुंबई में समुद्र को पाटने का काम यानी रिक्लेमेशन आज भी जारी है. मुंबई के पश्चिमी तट पर बनाया जा रहे कोस्टल रोड का काम समंदर पार कर हो रहा है. इस कोस्टल रोड के बन जाने से दक्षिण मुंबई और उत्तर पश्चिमी उपनगरों की दूरी काफी कम हो जाएगी. लेकिन सवाल वही रह जाता है एक तरफ विकास और इंसान की सुख सुविधा हासिल करनी है तो दूसरी तरफ पर्यावरण को बचाना भी जरूरी है.
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