बालासोर: एक साल के मीठू को उसकी मां बार बार आवाज़ दे रही है, लेकिन वो जवाब नहीं दे रहा. मीठू दरअसल एक तोता है, लेकिन तूफान की आहट से वो भी सहमा हुआ है. शायद उसे भी इल्म हो चला है कि तूफान की शक्ल में एक बड़ी मुसीबत जल्द दस्तक देने वाली है. वो अपनी मां की गोद में सहमा हुआ बैठा ये एहसास करा रहा है कि चक्रवाती तूफान यास से ओडिशा के लोग कैसे डरे हुए हैं.


प्रभाती भर बर्मन बताती हैं, "मेरा घर यहां से थोड़ी ही दूर पर है. बारिश के दौरान हम भी यहां आए, क्योंकि मेरे घर में पानी भर गया था. मेरा घर गुड पाई में है. मैं कुछ साड़ियां, अपने घर के कुछ बर्तन, अपने सारे दस्तावेज लेकर यहां पर आई हूं. पिछले कुछ वर्षों में हर साल एक बार इस तरह से तूफान आता है. समुद्र के किनारे रहना अब खतरे से खेलने से कम नहीं है. सरकार को हमारे लिए कुछ करना चाहिए. कम से कम पक्का मकान तो बनवाना चाहिए."


मीठू को लेकर उन्होंने कहा, "मेरे लिए मीठू मेरा बच्चा है. पक्षी है तो क्या? मै उसे घर पर छोड़ दूं? जब मैं अपनी जान बचा कर घर से निकली हूं तू वह भी मेरे साथ आएगा ही. मैं बहुत प्यार करती हूं. जब हमें पता है कि तूफान आ रहा है तो इसे भी पता है कि तूफान आ रहा है, उसे भी डर है और वह सह महुआ है."




प्रभाती भर बर्मन अपना सारा सामान यानी अपने सारे कागज़, अपना आधार कार्ड, अपना राशन कार्ड, सारे दस्तावेज बक्से में बंद करके अपने साथ राहत केंद्र लेकर आई हैं. ये कागज़ उनकी नागरिकता का प्रमाण हैं, क्योंकि वापस जाने पर क्या मिलेगा यह किसी को नहीं पता. 


राहत केंद्र पर मौजूद सुभाश्री घोष ने बताया, "मेरा घर यहां से कुछ मीटर की दूरी पर है, लेकिन अपना घर छोड़कर मुझे यहां रहना पड़ रहा है. बिजली नहीं है, लेकिन मेरे घर में भी हालात ठीक नहीं हैं, बच्चे की जान बचाने के लिए अपनी जान बचाने के लिए हम इस कष्ट में हैं. भाई और मैं यहां राहत केंद्र पर अपना घर छोड़कर आ गए हैं."


ऐसा नहीं है कि सभी लोग राहत केंद्रो पर जाने को तैयार हैं. प्रशासन की ओर से बार बार एलान किया जा रहा है, बावजूद इसके कई लोग अपना घर नहीं छोड़ना चाहते. अपनी जान की चिंता किए बिना वो अपने माल और सामान की रक्षा करना ज्यादा जरूरी समझते हैं. ओडिशा पुलिस के अधिकारी लगातार गांवों में जाकर लोगों को  वहां से राहत केंद्रों तक पहुंचाने की प्रक्रिया को अंजाम दे रहे हैं.




बालासर के डीएसपी अमूल्य धर ने कहा, "ओडिशा पुलिस हर संभव प्रयास कर रही है. हम वो सारे कदम उठा रहे हैं, जो जरुरी हैं. यहां करीब 246 गांव हैं. हम सभी लोगों को यहां के करीब एक राहत सेंटर पर भेज रहे हैं. बहुत से इलाकों में लोग एक बार में नहीं आते हैं अपना घर छोड़कर. ऐसे में हम ध्यान रख रहे हैं कि उन्हें घर से लेकर इस राहत केंद्र तक जल्द पहुंचाया जाए और उसके बाद उनके खाने की भी सारी व्यवस्था सरकार की ओर से ही की जा रही है."


बालासर जिले के 1600 राहत केंद्र में ऐसे न जाने कितनी हजारों लोग हैं जो अपना सबसे जरूरी सामान लेकर राहत की तलाश में पहुंचे हैं, लेकिन राहत केंद्र में भी राहत कहां. चारों ओर से खिड़कियां खुली हुई हैं. खाना सरकार के आदेश के अनुसार समय समय पर दे दिया जाता है.


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