दलाई लामा ने बुद्ध पूर्णिमा पर दिया संदेश, कहा- एक साथ मिलकर कोविड-19 महामारी सहित वैश्विक खतरों पर पाएं काबू
तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा कि लोगों को कोविड-19 सहित दूसरे वैश्विक खतरों से निपटने के लिए एक साथ आना चाहिए, दलाई लामा ने कहा कि भले ही बुद्ध के समय से हमारी दुनिया काफी हद तक बदल गई है, लेकिन उनकी शिक्षा का सार आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि 2,600 साल पहले था.
धर्मशाला: तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा कि लोगों को कोविड-19 सहित दूसरे वैश्विक खतरों से निपटने के लिए एक साथ आना चाहिए. बुद्ध पूर्णिमा पर बौद् धर्म के अनुयायियों के लिए अपने संदेश में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लामा ने कहा कि दूसरों के लिए सम्मान की भावना और उनके कल्याण के लिए चिंता करके व्यक्ति खुद में केंद्रित होने की आदत को कम कर सकता है, जो कई समस्याओं की जड़ है.
एक स्टेटमेंट में दलाई लामा ने कहा "मैंने अपनी बौद्ध शिक्षा एक बच्चे के रूप में शुरू की थी और हालांकि अब मैं लगभग 86 वर्ष का हो गया हूं, लेकिन मैं अभी भी सीख रहा हूं. भले ही बुद्ध के समय से हमारी दुनिया काफी हद तक बदल गई है, लेकिन उनकी शिक्षा का सार आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि 2,600 साल पहले था"
भगवान बुद्ध की शिक्षा सभी के लिए
दलाई लामा ने उन्होंने कहा, "... आइए हम सभी मिलकर कोविड-19 महामारी सहित वैश्विक खतरों से निपटने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं, वह करें" उन्होंने कहा कि बुद्ध की शिक्षा केवल लोगों के एक समूह या एक देश के लिए बल्कि सभी संवेदनशील प्राणियों के लिए व्यावहारिक थी. उन्होंने कहा, "लोग अपनी क्षमता और इच्छा के अनुसार इस पथ को फॉलो कर सकते हैं."
दलाई लामा ने हर जगह बौद्धों को यह पता लगाने के लिए कहा कि शिक्षा को अपने जीवन में लागू करने में सक्षम होने का वास्तव में क्या अर्थ है. उन्होंने कहा कि "इसमें सुनना और पढ़ना, जो आपने सुना और पढ़ा है उसके बारे में सोचना और खुद को इससे गहराई से परिचित करना शामिल है."
भगवान बुद्ध ने दूसरों को नुकसान न पहुंचाने और दूसरों की मदद की दी थी सलाह
दलाई लामा ने जोर देकर कहा कि बुद्ध की सलाह थी कि दूसरों को नुकसान न पहुंचाएं और हर संभव तरीके से दूसरों की हमेशा मदद करें. उन्होंने कहा कि " हम इसको यह पहचान कर शुरू कर सकते हैं कि बाकी सभी हमारे जैसे ही हैं. वे सुख चाहते हैं और दुख को नापसंद करते हैं. सुख की खोज और दुख से मुक्ति सभी प्राणियों का जन्मसिद्ध अधिकार है लेकिन व्यक्तिगत खुशी बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करती है कि हम दूसरों से कैसे जुड़े हुए हैं. "
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