नई दिल्लीः एक तरफ भारत जहां फिर से चांद पर जाने की तैयारी कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ अभी भी समाज की रूढ़िवादिता लोगों का पीछा नहीं छोड़ रही. समाज की दकियानूसी सोच और संकीर्ण मानिसकता के कारण आज भी घरों में बेटियों को संपूर्ण आजादी नहीं मिलती है. बेटियों की आजादी के लिए सरकार से लेकर कई गैर सरकारी संगठन जागरुकता फैलाने का काम कर रहे हैं. लेकिन, 21वीं सदी के दो दशक गुजर जाने के बाद भी हमारा समाज अभी तक बेटियों को बालिग होने के बाद निजी ज़िंदगी के फैसले लेने की आजादी देने को तैयार नहीं दिख रहा है.


आए दिन बेटियों के साथ घट रही घटनाओं के बारे में जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. समाज की हर बुराई की कीमत बेटियों को चुकानी पड़ती है. कहीं बेटियां दहेज की लालच में जला दी जाती है तो कहीं सम्मान के नाम मौत की नींद सुला दी जाती हैं. रूढ़िवादिता और दकियानूसी इस कद्र है कि माता-पिता और रिश्तेदार आज भी बेटियों को अंतर जातीय विवाह की इजाजत नहीं दे रहे.


अंतर जातीय विवाह को लेकर कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां लड़कियों का या तो कत्ल कर दिया जाता है या समाज उन्हें अपनाने के लिए तैयार नहीं होता. कई मामले तो ऐसे भी आते हैं जहां लड़कियां दर-दर की ठोकरें खाकर निर्मम समाज के आगे घुटने टेक देती हैं. लेकिन इन सब के बीच अच्छी बात ये है कि तमाम दबावओं, रुकावटों के बावजूद समाज निरंतर बदलाव की ओर है और इसी का असर है कि अंतर जातीय विवाह का ट्रेंड बढ़ रहा है.


क्यों बढ़ रहा है अंतर जातीय विवाह का ट्रेंड


समाज की रूढ़िवादिता और दकियानूसी अपनी जगह, लेकिन इसी बीच अंतर जातीय विवाह का ट्रेंड बढ़ा है. अंतर जातीय विवाह की कई खबरें अक्सर देखने को मिलती है. अगर इसके कारण की पड़ताल की जाए तो पता चलता है कि  बदलाव की बयार बहुत तेजी बह रही है और माता-पिता और समाज की रूढ़िवादिता और दकियानूसी नौजवानों पर बहुत कारगर नहीं हो पा रही हैं.


इसकी वजहों में लड़का-लड़की दोनों का शिक्षित होना भी बहुत अहम है, जिससे वह खुद के लिए फैसला ले रहे हैं. इसके अलावा आर्थिक पृष्ठभूमि, शहरीकरण का बढ़ता प्रभाव और रोजगार के लिए घर से बाहर निकलना भी अहम भूमिका है. साल 2014 में हुए एक सर्वे के मुताबिक देश में 5 प्रतिशत शादियां दूसरे जाति में हो रही है. कुछ मामलों में परिवार के लोग शुरुआती आनाकानी के बाद रिश्ते को स्वीकार कर लेते हैं तो अधिकांश मामलों में ताउम्र रिश्तों को स्वीकार नहीं करते हैं.


अतंर जातीय विवाह को लेकर भीमराव अंबेडकर के विचार


अंतर जातीय विवाह को लेकर संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी अपने विचार रखे थे. उन्होंने कहा था कि अंतर जातीय विवाह के बाद लड़के-लड़कियों को घर का सपोर्ट नहीं मिलता है. ऐसे में सरकार को इन जोड़ों की मदद करना चाहिए. राज्य और केंद्र सरकार को इन जोड़ों को आर्थिक तौर पर मदद करनी चाहिए जिससे की परिवार से मिले असहयोग की भरपाई हो सके.


अतंर जातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए सरकार देती है सहायता राशि


अंतर जातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से सहयोग योजना चलाई जा रही है. इस योजना के तहत अगर कोई युवक या युवती किसी दलित से अंतर जातीय विवाह करता या करती है तो सरकार उस नवदंपत्ति को 2.5 लाख रुपये देती है.


इस योजना को साल 2013 में कांग्रेस की सरकार ने शुरू किया था. मौजूदा सरकार में भी इस योजना के तहत नवदंपत्ति को सहायता राशि मिलती है. योजना का मकसद समाज से जाति व्यवस्था की बुराई को खत्म करना है. साथ ही इस कुरीति के खिलाफ साहसिक कदम उठाने वाले युवाओं को प्रोत्साहित करना भी है. हालांकि, दूसरी शादी करने पर इस योजना का लाभ नहीं मिल पाता है.


कैसे उठाएं इस योजना का लाभ

1. नवदंपति अपने क्षेत्र के सांसद या विधायक की सिफारिश के साथ आवेदन को भरने के बाद डॉ अंबेडकर फाउंडेशन को भेजें.

2. नवदंपति आवेदन को पूरा भरकर राज्य सरकार या जिला प्रशासन को सौंप सकते हैं. जिसके बाद राज्य सरकार या जिला प्रशासन आवेदन को डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन को भेज देते हैं.

किसे मिलता है फायदा

1. नवदंपति में से कोई एक दलित समुदाय से होना चाहिए. दूसरा दलित समुदाय से बाहर का होना चाहिए.

2. शादी को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत रजिस्टर होना चाहिए. इस संबंध में नवदंपति को एक हलफनामा दायर करना होता है.

3. इस योजना के तहत फायदा उन्हीं नवदंपति को मिलता है जिन्होंने पहली बार शादी की है. दूसरी शादी करने वालों को इसका फायदा नहीं मिलेगा.

4. आवेदन भरकर शादी के एक साल के अंदर डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन को भेजना होता है.

5. अगर नवदंपति को राज्य या केंद्र सरकार द्वारा किसी तरह की आर्थिक सहायता पहले मिल चुकी है, तो उसको इस ढाई लाख रुपये की धनराशि में घटा दी जाएगी.

आवेदन के साथ लगाएं ये दस्तावेज

1. नवदंपति में से जो भी दलित समुदाय से होते हैं उन्हें आवेदन के साथ जाति प्रमाण पत्र लगाना होता है.

2. हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत शादी रजिस्टर करने के बाद जारी मैरिज सर्टिफिकेट भी अटैच करना होता है.

3. आवेदन के साथ कानूनी रूप से विवाहित होने का हलफनामा पेश करना होता है.

4. आवेदन के साथ ऐसा दस्तावेज भी लगाना होता है जिससे यह पता चल सके कि दोनों की यह पहली शादी है.

5. नवविवाहित पति-पत्नी को आय प्रमाण पत्र भी देना होता है.

6. नवदंपति का संयुक्त बैंक खाते की जानकारी आवेदन में देनी होती है जिसमें सहायता राशि सरकार की ओर से दी जाती है.

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