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राफेल डील: फ्रेंच मीडिया का खुलासा- डसॉल्ट के पास रिलायंस के अलावा कोई विकल्प नहीं था, कंपनी का इंकार

फ्रांस की मीडिया ने डसॉल्ड एविएशन के आंतरिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा गया है कि इसे ऑफसेट पार्टनर के तौर पर अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस के अलावा कोई विकल्प दिया ही नहीं गया था.

नई दिल्ली: फ्रांस की मीडिया ने राफेल डील को लेकर एक और धमाकेदार खुलासा किया है. बुधवार को हुए इस खुलासे में राफेल बनाने वाली कंपनी डसॉल्ड एविएशन के आंतरिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा गया है कि इसे ऑफसेट पार्टनर के तौर पर अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस के अलावा कोई विकल्प दिया ही नहीं गया था. वहीं, डसॉल्ट ने अपनी सफाई में कहा है कि राफेल डील में ऑफसेट पार्टनर का होनी जरूरी थी, लेकिन इसके लिए पार्टनर के तौर पर सिर्फ रिलायंस कंपनी के विकल्प जैसी बात नहीं थी. किसी भी कंपनी को चुनने के लिए डसॉल्ट स्वतंत्र था.

एक ही विकल्प रिलायंस ऑफसेट पार्टनर को लेकर मचे बवाल के बीच ये खुलासा सरकार के लिए काफी मुश्किलें खड़ी करने वाला है क्योंकि 59,000 करोड़ में हुए 36 विमानों के इस सौदे में सरकार का यही कहना रहा है कि डसॉल्ट अपना ऑफसेट पार्टनर चुनने के लिए स्वतंत्र था. फ्रांस की खोजी वेबसाइट मीडियापार्ट  ने ताज़ा मामले में कहा है उसके हाथ डसॉल्ट कंपनी के वो दस्तावेज लगे हैं जिनसे ये बात साबित होती है कि उन्हें आखिरी विकल्प के तौर पर सिर्फ और सिर्फ रिलायंस का नाम दिया गया था.

आपको बता दें कि इसी साइट ने फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलोंद का वो बयान सामने लाया था जिसमें दावा किया गया था कि भारत सरकार ने असल में उनके ऊपर रिलायंस डिफेंस को आखिरी विकल्प के तौर पर थोपा था और यही बात अब फिर से डसॉल्ट के आंतरिक दस्तावेजों में साबित होती है कि सौदे में रिलायंस डिफेस का नाम इकलौता विकल्प था.

"लेन-देन" के तहत तय किया गया रिलायंस का नाम मीडियापार्ट ने अन्य सनसनीखेज दावे किए हैं. इस मीडिया संस्थान का कहना है कि दस्तावेजों से साफ है कि रिलायंस डिफेंस को साथी बनाने को "लेन-देन" के तौर पर पेश किया गया था. ऐसा इसलिए किया गया था ताकि भारत से 36 विमानों का सौदा हासिल किया जा सके. इसके लिए मीडियापार्ट ने डसॉल्ट के नागपुर स्थित एक अधिकारी द्वारा बनाए गए एक प्रेजेंटेशन का हवाला दिया.

भारत-फ्रांस-दसॉल्ट ने दावों को किया खारिज इसी रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि रिलायंस के साथ पार्टनरशिप को "अतिआवश्यक और अनिवार्य" बताया गया था. हालांकि, फ्रांस की सरकार और डसॉल्ट ने पिछले महीने ओलांद के दावों को बिना किसी देरी के खारिज किया था. भारत के रक्षा मंत्रालय ने भी विवाद को अनावश्यक करार दिया था और कहा था कि इसने ऑफसेट पार्टनर के तौर पर कभी किसी कंपनी के नाम की सिफारिश नहीं की. वहीं, विवाद पर डसॉल्ट का भी रुख यही है. फ्रांस सरकार का कहना है कि ये किसी भी तरीके से भारत से पार्टनर चुने जाने की प्रक्रिया में शामिल नहीं थी.

क्या है ऑफसेट दरअसल, कॉन्ट्रैक्ट के तहत फ्रांस की जो भी कंपनी इस सौदे में शामिल होती (इस मामले में डसॉल्ट) उसे इसका 50% हिस्सा ऑफसेट निवेश के तहत भारत में वापस लाना था. रक्षा मंत्रालय ने कहा, "ऑफसेट गाइडलाइन के तहत सौदे में शामिल कंपनी को ऑफसेट पार्टनर की जानकारी या तो ऑफसेट क्रेडिट मांगे जाने के दौरान या ऑफसेट की जिम्मेदारियों को निभाए जाने के एक साल पहले दी जाती है. इस मामले में ये समयसीमा 2020 तक की है."

फ्रांस में भारत की रक्षा मंत्री गौर करने लायक बात ये है कि ये रिपोर्ट ठीक तभी सामने आई है जब भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण तीनों दिनों के फ्रांस दौरे पर फ्रांस पहुंची हैं. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण बुधवार रात तीन दिवसीय यात्रा पर फ्रांस रवाना हुईं. फ्रांसीसी एयरोस्पेस कंपनी दसॉल्ट एविएशन से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के मुद्दे पर पैदा हुए विवाद के बीच सीतारमण फ्रांस की यात्रा पर गयी हैं. आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सीतारमण अपने फ्रांसीसी काउन्टर पार्ट फ्लोरेंस पार्ली के साथ व्यापक बातचीत कर दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग बेहतर बनाने और आपसी हितों के प्रमुख क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करेंगी.

36 राफेल विमानों की प्रगति का लेंगी जायजा उन्होंने कहा कि सीतारमण 58,000 करोड़ रुपए के करार के तहत दसॉल्ट द्वारा भारतीय वायुसेना को 36 राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति में प्रगति का जायजा लेंगी. ऐसे संकेत हैं कि रक्षा मंत्री उस इकाई का भी दौरा कर सकती हैं जहां राफेल विमान बनाए जा रहे हैं. अपनी बातचीत में सीतारमण और पार्ली दोनों देशों द्वारा सैन्य प्लेटफॉर्मों और हथियारों के संयुक्त उत्पादन पर भी चर्चा कर सकते हैं.

अप्रैल में शुरू हुई थी 114 राफेल विमानों की खरीद प्रक्रिया इस साल की शुरुआत में फ्रांस 36 राफेल विमानों की एक और खेप भारत को बेचने के लिए भारत से बातचीत शुरू करना चाह रहा था. लेकिन भारत इसके लिए तैयार नहीं दिखा. अप्रैल में भारतीय वायुसेना ने 114 लड़ाकू विमानों के बेड़े की खरीद प्रक्रिया शुरू की थी और दसॉल्ट एविएशन इस अनुबंध के लिए प्रमुख दावेदारों में से एक के रूप में उभरी है.

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