नई दिल्ली: अगर आप अपनी ट्रेन की लोकेशन और समय जानने के लिए रेल वेबसाइट या रेल ऐप का सहारा लेते हैं तो अक्सर आप धोखे का शिकार हो जाते हैं. क्योंकि वहां ट्रेन की पंक्चुएलिटी थोड़ी बेहतर कर के दिखा दी जाती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कुछ रेलकर्मी बड़े अधिकारियों के दबाव में कम्प्यूटर में ग़लत डेटा अपलोड कर देते हैं. लेकिन रेलवे ने अपने सिस्टम को फ़ुलप्रूफ़ करने के लिए नई तकनीक का प्रयोग शुरू किया है जिसका नाम है डेटा लॉगर.


जानिए क्या है डेटा लॉगर?
रेलवे की इनक्वायरी पर आप फ़ोन करते हैं तो आपको बताया जाता है कि ट्रेन अपने सही समय से आधे घंटे लेट है लेकिन जब आप स्टेशन पहुंचते है तो आधे-आधे घंटे करके डेढ़ घंटे बाद ट्रेन आ ही जाती है. यही हाल रेलवे के ऐप का भी होता है. कभी-कभी तो ट्रेन में बैठा यात्री आश्चर्य में पड़ जाता है कि उसकी ट्रेन जिस अगले स्टेशन तक पहुंची भी नहीं ऐप में उसे पीछे छूट जाने की सूचना दिखाई जा रही है. ऐसे तमाम आरोपों को देखते हुए हाल ही में डेटा फ़र्ज़ीवाड़े के आरोप में दो रेल अधिकारियों को ख़ुद रेल मंत्री पीयूष गोयल ने सस्पेंड भी कर दिया है.


जब रेलवे ने दावा किया कि उसने डेटा के इस फ़र्ज़ीवाड़े से निजात पाने का पुख़्ता इंतजाम कर लिया है तो हमारे संवाददाता ने भी रेलवे की एक निरीक्षण रेल यान में इसकी पड़ताल की. दिल्ली से चल कर ये निरीक्षण यान ग़ाज़ियाबाद के छोटे से स्टेशन चिपियाना बुज़ुर्ग पहुंची जहां हमने रेलवे के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के एक अधिकारी अक्षत के साथ रेल पटरी पर लगे एक्सल काउंटर नाम के यंत्र के बारे में जानकारी ली. एक्सल काउंटर से गुज़रने वाले ट्रेन चक्कों की जानकारी पास के कंट्रोल रूम में लगी दो मशीनों तक अंडरग्राउंड तारों से पहुंचाते हैं.


पटरियों पे तीन यंत्र लगे होते हैं- डीसी ट्रैक सर्किट, ऑडियो फ्रीक्वेन्सी ट्रैक सर्किट और एक्सल काउंटर. सिग्नल को रेड से येलो करने के लिए उसके बाद का एक किलोमीटर का ट्रैक एरिया ख़ाली होना चाहिए. एक्सल काउंटर गुज़रती हुई रेल के एक्सल को पटरी पर पैदा हुए फ़्लक्स के माध्यम से गिनता है. इसमें फ़्लक्स को मापने के सेंसर लगे होते हैं.


दरअसल, रेलवे का दावा है कि उसने देश के 98 बड़े स्टेशनों के पास डेटा लॉगर नाम की ये लगभग चमत्कारी मशीन लगा ली है. ये एक्सल काउंटर जैसे तीन सिस्टम से डेटा लेकर उसकी अनगिनत सूचनाओं को प्रोसेस करके ये बताता है कि कोई ट्रेन रेल ट्रैक के किसी हिस्से से पूरी तरह निकल चुकी है या नहीं.


मुख्य जन सम्पर्क अधिकारी, नॉर्दन रेलवे नितिन चौधरी ने कहा, जब तक डेटा ऑथेंटिक न हो तब तक हम अपने आपरेशन को नहीं सुधार पाएंगे. ट्रेन के मूवमेंट का डेटा आटोमैटिकली लॉग होना चाहिए. पहले गाड़ी के पास होने की जो सूचना टेलिफ़ोन से दी जाती थी वो अब डेटा लॉगर करता है. ये सब एएसएम और डिप्टी स्टेशन मास्टर की निगरानी में होता है. डेटा लॉगर सेन्सर्ज़ से आई मुख्य सूचनाओं पर टाइम का स्टैम्प लगाता है.


भले ही रेलवे ट्रेन के सही लोकेशन की जानकारी का दावा कर रहा है लेकिन अब भी यात्री तो यही जानना चाहते हैं कि ट्रेनें सही समय पर चलना कब शुरू करेंगी. यात्री रेलवे इनक्वायरी में फ़ोन करते हैं लेकिन उन्हें सही जानकारी मिल रही है इसकी गारंटी नहीं होती. अब रेलवे ने प्रमुख स्थानों पर भले ही डेटा लॉगर लगा दिया हो लेकिन अब भी देश के तमाम छोटे स्टेशनों पर ऐसे डेटा लॉगर लगने बाक़ी हैं.


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