नई दिल्ली: "क्या केंद्र सरकार ने बलात्कार से जुड़े हुए कानून में जो संशोधन किया है उसमें पीड़ित पक्ष को ध्यान में रखकर भी कोई कदम उठाने की बात की गई है." एक टिप्पणी के जरिए दिल्ली हाईकोर्ट ने यह सवाल पूछा है. दिल्ली हाईकोर्ट में साल 2012 में निर्भया गैंगरेप के बाद हुए कानून के संशोधन को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई चल रही थी. याचिका में मांग की गई थी कि केंद्र सरकार ने साल 2013 में कानून में जो संशोधन किया उसमें पीड़ित महिला को लेकर कोई बात नहीं कही गई. याचिका में मांग की गई कि पीड़ित महिला को लेकर भी उस कानून में प्रावधान रखे जाने चाहिए थे.


इसी दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा बलात्कार कानून में किए गए संशोधन का जिक्र करते हुए पूछा कि "क्या केंद्र सरकार जो कानून लेकर आई है उससे पहले उसने कुछ अध्ययन भी किया था या कानून बस जल्दबाजी में लेकर आया गया है? और क्या इस कानून में पीड़िता को लेकर भी कोई प्रावधान रखा गया है?''


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10 महीने में खत्म करना होगा केस


नए कानून के मुताबिक, नाबालिगों से रेप के मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की व्यवस्था की जाएगी. फॉरेंसिक जांच के जरिए सबूतों को जुटाने की व्यवस्था को और मजबूत करने की व्यवस्था भी की जाएगी. इतना ही नहीं दो महीने में ट्रायल पूरा करना होगा. अगर अपील दायर होती है तो 6 महीने में निपटारा करना होगा. नाबालिग के साथ बलात्कार के केस को कुल 10 महीने में खत्म करना होगा.


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महिला से रेप पर दस साल से उम्रकैद की सजा


आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश 2018 के मुताबिक, किसी महिला से बलात्कार के मामले में अब न्यूनतम सजा 10 साल के कठोर कारावास की होगी जो उम्रकैद तक विस्तारित हो सकती है. उम्रकैद का मतलब है कि व्यक्ति को जीवन के अंत तक रिहा नहीं किया जाएगा.


दिसम्बर 2012 में निर्भया मामले के बाद आपराधिक कानूनों में संशोधन किया गया था. इसके तहत किसी भी महिला से बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा सात साल की कठोर कारावास रखी गई थी. जम्मू कश्मीर के कठुआ और गुजरात के सूरत जिले में हाल ही में लड़कियों से बलात्कार और हत्या की घटनाओं की पृष्ठभूमि में यह कदम उठाया गया है.