सुप्रीम कोर्ट में मौत की सजा के लिए फांसी दिए जाने को बर्बर तरीका बताते हुए इसे बदलने की मांग की गई है. मंगलवार (21 मार्च) को सर्वोच्च अदालत में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि गरिमापूर्ण तरीके से मृत्यु मिलना मौलिक अधिकार है. इसलिए मौत की सजा के लिए फांसी दिए जाने पर पुनर्विचार हो.
याचिकाकर्ता ने कहा कि फांसी की प्रक्रिया पूरी होने में 30-40 मिनट का वक्त लगता है. डॉक्टर अंत में सजायाफ्ता मरा या नहीं इसकी जांच करते हैं. यह बहुत ही दर्दनाक प्रक्रिया है. इस दौरान कोर्ट में कई पुराने फैसलों का जिक्र भी किया गया है. सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने 1983 में दीना बनाम भारत सरकार मामले में मौत के लिए फांसी को सबसे बेहतरीन माना था.
भारत में मृत्युदंड की सजा का उल्लेख धर्मग्रंथों में भी है. मनुस्मृति में मृत्युदंड को लेकर कई श्लोक का जिक्र है. महाभारत काल में भी मृत्युदंड की सजा सुनाई जाती थी. मौर्य वंश की शासन काल में भी मृत्युदंड का उल्लेख मिलता है. ऐसे में आइए जानते हैं भारत के इतिहास में मौत के लिए कौन-कौन सा तरीका इस्तेमाल किया जाता था?
1. सूली पर चढ़ाना- ईसा पूर्व में भारत में मृत्युदंड का सबसे बेहतरीन और लोकप्रिय तरीका माना जाता था. एक लकड़ी के बीम पर अपराधी को बांध दिया जाता था. साथ ही दंडित मनुष्य एक नुकीले लोहे के डंडे पर बैठा दिया जाता था और उसके सिर पर मुंगरे से आघात किया जाता था. इससे नीचे से ऊपर तक उसका सारा शरीर छिद जाता था और वह मर जाता था.
यह सबसे क्रूर तरीका माना जाता था, क्योंकि इस तरीके में मरने में हफ्ते और महीने का वक्त भी लगता था. सूली पर चढ़े व्यक्ति को खाने भी नहीं दिया जाता था.
2. जलाकर मरवा देना- मृत्युदंड की इस तरीके का जिक्र अशोक शासन काल में मिलता है. अशोक ने अपनी अंतिम पत्नी तिष्यरक्षा को जला कर मारने का आदेश दिया था. इतिहास के मुताबिक अशोक से शादी करने के बाद तिष्यरक्षा उसके बेटे कुणाल से प्रेम कर बैठी थी, जिसे कुणाल ने ठुकरा दिया.
इसके बाद तिष्यरक्षा ने कुणाल के दोनों आंख निकलवा दिए. इस बात की जानकारी जब अशोक को लगी तो उन्होंने तिष्यरक्षा को जलाकर मारने का हुक्म सुना दिया.
3. सिर धड़ से अलग करना- मुस्लिम लुटेरों के भारत आने और फिर दिल्ली सल्तनत पर कब्जा करने के बाद मौत की सजा के तरीकों में बदलाव आया. अब तुरंत मारने के लिए तलवार से सीधे सिर को धड़ से अलग कर दिया जाता था.
गुलाम और खिलजी वंश के दौरान इस तरह की सजा ज्यादा प्रचलित थी. दंडित व्यक्ति को हाथ बांधकर लाया जाता था और फिर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था. इस तरीके में सबसे कम वक्त लगता था.
4. हाथी से कुचलवाना- मुहम्मद बिन तुगलक और हुमायूं के वक्त मौत की सजा देने के लिए दंडित व्यक्ति को एक बंद मैदान में खूंखार हाथी के आगे छोड़ दिया जाता था. हाथी व्यक्ति को कुचल कर मारता था और इस आयोजन का दरबारी मजा लेते थे.
हाथी से कुचलवाकर मारने का तरीका को जहांगीर काल में भी प्रसिद्ध था. हालांकि, बाद में मुगलों ने इस तरीके को खत्म कर दिया.
5. पत्थर से पीटकर हत्या- औरंगजेब शासन काल में रेप और दुर्लभतम मामलों के दोषियों को पत्थर से पीट-पीटकर हत्या करवा देता था. इसके अलावा औरंगजेब शासन में दंड पाए व्यक्ति को चार हाथियों के पांव से बांधकर हाथियों को अलग दिशा में दौड़ा दिया जाता था. इससे उसकी मौत हो जाती थी.
औरंगजेब शासन में सिर काटकर उसे चौराहे पर टांग भी दिया जाता था, जिससे खिलाफत करने की जुर्रत कोई न कर सके. औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह का सिर राजदरबार में दिखाने के लिए मंगवाया था.
6. फांसी की सजा- ब्रिटिश के भारत आने के बाद मौत की सजा के तरीकों में बदलाव किया गया. 1899 के बाद भारत में मौत के लिए फांसी की सजा दी जाती है. ब्रिटिश हुकुमत के वक्त दुनिया में 200 तरहों के अपराध के लिए मौत की सजा सुनाई जाती थी.
19वीं शताब्दी के आसपास 200 को कम कर 100 तरहों के अपराध के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया. आजादी के बाद भी भारत में फांसी के तरीके को ही बेहतर माना गया जो अब तक जारी है.
58 देशों में फांसी ही मृत्युदंड का सबसे बेहतरीन तरीका?
जर्नल ऑफ न्यूरो सर्जरी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत समेत दुनिया के 58 देशों में मृत्युदंड के लिए फांसी सबसे बेहतरीन तरीका माना जाता है. दुनिया के 33 देशों में तो फांसी ही मृत्युदंड देने का एकमात्र जरिया है. फांसी देने का कांसेप्ट विलियम मारवुड ने दिया था.
फांसी देते वक्त इंसान का गर्दन टूट जाता है, जिससे उसके शरीर से ब्रेन का संपर्क खत्म हो जाता है. ऐसे में इंसान को मौत के वक्त कम दर्द होता है. हालांकि, अब नए खोज आने के बाद इसको लेकर बहस शुरू हो गई है. ऐसे में आइए जानते हैं दुनिया के देशों में अभी मृत्युदंड कैसे दी जा रही है?
पथराव- अफगानिस्तान और सूडान में अभी भी दुर्लभतम अपराध के दोषियों को पथराव के जरिए मार दिया जाता है. इस सजा देने के पीछे दोनों देश कुरान के नियमों का हवाला देते हैं.
फायरिंग- अमेरिका, अफगानिस्तान, सूडान, यमन, टोगो, तुर्कमेनिस्तान, थाईलैंड, बहरीन, चिली, इंडोनेशिया, घाना, अर्मीनिया, चीन समेत 78 देशों में गोली मारकर हत्या कर दी जाती है. इन देशों का मानना है कि इससे इंसान को दर्द कम होता है.
इंजेक्शन- चीन और फिलीपींस समेत कई देशों में इंजेक्शन के जरिए मौत की सजा दी जाती है. इंजेक्शन से मारने की प्रक्रिया में सबसे पहला इंजेक्शन शरीर को सुन करता है और फिर दूसरा इंजेक्शन से जहर से भरा होता है.
इलेक्ट्रोक्यूशन- मौत देने का यह तरीका अमेरिका में प्रयोग किया जाता है. इसमें बिजली के ज्यादा पावर का झटका दंडित व्यक्ति को दिया जाता है, जिससे उसकी मौत हो जाती है. यह प्रक्रिया डॉक्टरों की निगरानी में पूरी की जाती है.
फांसी- भारत, मलेशिया, बारबाडोस आदि देशों में फांसी के जरिए ही मौत की सजा दी जाती है. इसमें दंडित व्यक्ति को फंदा तक मुंह ढक कर लाया जाता है. इस दौरान कैदी का हाथ पीछे करके बांध दिया जाता है. फिर उसे फंदा तक लाया जाता है. रस्सी पर लटकाने के बाद नीचे का तख्ता लीवर के सहारे हटा दिया जाता है.
जहरीला गैस चैंबर- यह तरीका भी सिर्फ अमेरिका में प्रयोग किया जाता है. इसमें सजायाफ्ता को एक एयर टाइट चैंबर में कुर्सी पर बैठाकर बांध दिया जाता है. साथ ही कुर्सी के नीचे एक सल्फ्यूरिक एसिड की बाल्टी रखी होती है, जिसमें क्रिस्टल सोडियम सायनाइड छोड़ा जाता है. दोनों के रिएक्शन से हाइड्रोजन सायनाइड गैस निकलता है. इसी जहरीली गैस के दंडित व्यक्ति की मौत हो जाती है.
ड्रेकुला और फ्रांस का खूंखार तरीका
15वीं शताब्दी में रोमानिया के वासलिया के राजा बने व्लाद थर्ड. बाद में उसने अपना नाम ड्रेकुला रख लिया. इतिहासकारों के मुताबिक युद्ध में ड्रेकुला पहले तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य के खिलाफ हार गया. इसके बाद उसने दूसरी बार जंग की तैयारी शुरू की.
युद्ध में युद्धबंदियों को ड्रैकुला खूंखार तरीके से मृत्युदंड देता था. वो दंडित व्यक्तियों के सिर पर भाले मार देता था और भाले को उसी में छोड़ देता था. कई इतिहासकारों ने दावा गया है कि ड्रेकुला को खून पीने की भी आदत थी.
फ्रांस के क्रांति के समय गिलेटिन से सजा देने को भी खूंखार माना जाता है. लुईस 16वां आंदोलनकारियों को गिलोटिन पर मरवाने का आदेश देता था. इसमें दंडित व्यक्तियों को पहले गिलोटिन पर सुलाया जाता था.
इसके बाद उसके गर्दन पर एक नुकीला ब्लेड नुमा हथियार गिरता था, जिससे उसका सिर अलग हो जाता था. मैक्सिमिलियन रोबेस्पियर जब सत्ता में आए तो उन्होंने भी इसे बरकरार रखा. लुईस 16वां को भी इसी तरीके से मौत दी गई.
मैक्सिमिलियन रोबेस्पियर ने अपने वक्त में करीब 17 हजार लोगों को गिलोटिन पर लिटा कर मरवाने का हुक्म दिया था. बाद में फ्रांस की अदालत ने रोबेस्पियर को फांसी की सजा सुनाई थी.
अब जाते-जाते जान लीजिए भारत के सुप्रीम कोर्ट में क्या सुनवाई हुई और आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि हम इस मामले में कोई आदेश नहीं दे सकते हैं, लेकिन सरकार से मानवीय तरीका अपनाने के लिए कहेंगे.
कोर्ट ने कहा कि 1983 के बाद सरकार को फांसी के तरीकों पर विचार करना चाहिए था. सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि हम कोशिश करेंगे कि बेहतर तरीका निकले. कोर्ट ने यह भी कहा कि गोली मारने का आदेश देना मानवाधिकार का उल्लंघन हो सकता है.
कोर्ट ने सरकार से कहा कि फांसी के दौरान कितना दर्द होता है और मरने में कितना वक्त लगता है, इसका डेटा उपलब्ध कराएं. कोर्ट ने कहा कि हम एक्सपर्ट कमेटी बना सकते हैं, जो इस पर विचार कर सुझाव दे. अगली सुनवाई 2 मई को होगी.
भारत में अंतिम बार 2020 में निर्भया गैंगरेप के 4 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. साल 2000 के बाद अब तक सिर्फ 5 बार फांसी की सजा दी गई है. 2004 में धनंजय चटर्जी, 2012 में अजमल कसाब, 2013 में अफजल गुरु, 2015 में याकूब मेमन और 2020 में निर्भया गैंगरेप के दोषियों को फांसी दी गई.