नई दिल्ली: आखिर 7 साल बाद निर्भया गैंगरेप और हत्याकांड के दोषियों की फांसी की तारीख तय हो गई. देश को झकझोर कर रख देने वाले इस कांड के चारों दोषियों मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को 22 जनवरी की सुबह 7 बजे फांसी दी जाएगी. दोषियों और उनके वकीलों ने आज भी फांसी टलवाने की पूरी कोशिश की. लेकिन जज ने और समय देने से मना कर दिया. डेथ वारंट पर दस्तखत करते वक्त जज ने कहा कि दोषी चाहें तो बचे हुए 14 दिन में किसी भी कानूनी विकल्प का इस्तेमाल कर सकते हैं.


दिल्ली की सड़कों पर दरिंदगी


16 दिसंबर 2012 को 23 साल की निर्भया अपने दोस्त के साथ रात के वक्त फिल्म 'लाइफ ऑफ पाई' देखकर लौट रही थी. दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका इलाके में एक चार्टर्ड बस में सवार छह लोगों ने दोनों को अपनी बस में बैठा लिया. वादा था गंतव्य स्थल पर छोड़ने का, लेकिन नीयत में थी दरिंदगी. चलती बस में बारी-बारी से सभी छह लोगों ने निर्भया के साथ बलात्कार किया. विरोध करने पर उसके दोस्त को मारा पीटा गया. बलात्कार के दौरान वहशियों की दरिंदगी का आलम यह था कि उन्होंने पीड़िता के अंग में लोहे का सरिया डाल दिया दिया. इससे उसकी आंत बाहर आ गई. इसके बाद चलती बस से दोनों को फेंक दिया गया.


एक दोषी सस्ते में छूटा


घटना की जानकारी सामने आते ही दिल्ली समय पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ पड़ी. पुलिस ने तेज़ी से कारवाई की और अगले कुछ दिनों में सभी छह लोगों को पकड़ लिया गया. घटना के 17 दिन के भीतर, 3 जनवरी 2013 को पांच आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी. छठा आरोपी नाबालिग था, इसलिए वह मुकदमे से बच गया. उसका मुकदमा अलग से ज्युवेनाइल जस्टिस बोर्ड में चला. जहां उसे 3 साल की सजा दी गई. दिसंबर 2015 को वह आज़ाद हो गया.


10 महीने में फैसला


मुख्य मुकदमे की सुनवाई दिल्ली की साकेत कोर्ट में फ़ास्ट ट्रैक तरीके से हुई. इस दौरान 11 मार्च 2013 को बस के ड्राइवर और मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली. हालांकि, इससे मुकदमे की रफ्तार पर कोई फर्क नहीं पड़ा. फास्ट ट्रैक कोर्ट ने घटना के 10 महीने के भीतर, 13 सितंबर 2013 को चारों दोषियों को फांसी की सजा दे दी.


सुप्रीम कोर्ट में धीमी पड़ी रफ्तार


चारों ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील दाखिल की. हाई कोर्ट ने भी पूरी तेजी दिखाते हुए 13 मार्च 2014 को यानी 6 महीने में चारों को मिली फांसी की पुष्टि कर दी. फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में आया. यहां इसकी रफ्तार थोड़ी धीमे पड़ गई. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई में कुछ देरी हुई. 5 पांच मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा बरकरार रखने का फैसला दिया. कोर्ट के फैसले के बाद मुकेश, विनय और पवन ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की. इसकी सुनवाई में भी कुछ समय लगा. 7 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों की पुनर्विचार याचिका खारिज की.


दोषियों की पैंतरेबाजी से देरी


इसके बाद भी दोषियों का डेथ वारंट जारी न होने के चलते निर्भया के परिवार ने दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में याचिका दाखिल की. उनका कहना था कि दोषियों के पास अब कोई कानूनी विकल्प नहीं बचा है. उनका डेथ वारंट जारी होना चाहिए. इसके जवाब में दोषियों के वकील साल भर तक टालमटोल करते रहे. उन्होंने कहा कि अभी अक्षय ने पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं की है. राष्ट्रपति के पास दया याचिका का विकल्प है.


जज ने उन्हें इसके लिए कई बार समय दिया. आखिरकार, जज के कड़े तेवर के बाद 10 दिसंबर 2019 को अक्षय ने भी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट ने उस पर तुरंत सुनवाई करते हुए 18 दिसंबर को उसे खारिज कर दिया. उसी दिन निचली अदालत के जज सतीश कुमार अरोड़ा ने तिहाड़ जेल प्रशासन को दोषियों को एक हफ्ते का नोटिस देने के लिए कहा. उस नोटिस में दोषियों से यह कहा गया था कि वह राष्ट्रपति के पास चाहे तो दया याचिका दाखिल कर सकते हैं.


आज नहीं पिघले जज


इसके करीब 20 दिन के बाद आज जब मामला कोर्ट में सुनवाई के लिए आया, तब तक दोषियों ने राष्ट्रपति के पास कोई याचिका दाखिल नहीं की थी. सुनवाई कर रहे एडिशनल सेशन्स जज सतीश कुमार अरोड़ा ने चारों दोषियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश किए जाने का आदेश दिया. शाम 4 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए जज ने चारों से बात करनी शुरू की. 40 मिनट तक चली इस कार्रवाई के दौरान दोषियों ने पुरजोर कोशिश की कि जज आज फांसी के तारीख तय न करें.


चारों दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पेटिशन दाखिल करने और राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजने के विकल्प का हवाला दिया. कहा कि उन्हें इसके लिए और समय दिया जाना चाहिए. लेकिन जज ने कहा, "आपको पूरे मौके दिए गए. अभी भी सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले के मुताबिक 14 दिन बाद फांसी की तारीख तय कर रहा हूं. आप इस दौरान किसी भी कानूनी विकल्प का इस्तेमाल कर सकते हैं."


अभी बचे हैं 2 विकल्प


अगले 14 दिन में दोषी चाहें तो सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पेटिशन दाखिल कर सकते हैं. अगर सुप्रीम कोर्ट क्यूरेटिव पेटिशन पर फैसला लेने में समय लगाता है या उस पर खुली अदालत में सुनवाई को तैयार होता है तो डेथ वारंट पर रोक लग सकती है. दोषियों के पास राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दाखिल करने का भी विकल्प है. अगर इस 14 दिन में दया याचिका पर राष्ट्रपति फैसला नहीं लेते, तब भी डेथ वारंट पर रोक लग सकती है. तो अभी यह पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता कि 22 जनवरी को सुबह 7 बजे चारों दोषियों की फांसी हो ही जाएगी.