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मानहानि मामला: कुमार विश्वास ने जेटली को खत लिख मांगी माफी, केजरीवाल को बताया 'आदतन झूठा'

कुमार विश्वास ने लिखा, ''राजनीतिक दलों की परम्पराओं के अनुसार शीर्ष नेतृत्व की बात पर सहज भरोसा करने का क्रम आम आदमी पार्टी में भी था. बहुधा पार्टिओं के शीर्ष नेता जब कोई बड़ा सार्वजनिक बयान दे कर स्टैंड लेते हैं तो दल का आखिरी कार्यकर्ता भी वही बात दोहराता है.''

नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम आदमी पार्टी नेता और कवि कुमार विश्वास पर किया मानहानि का मुक़दमा वापस ले लिया है. इसके साथ ही कई महीनों से लम्बित ये मामला खत्म हो गया है. खास बात ये है कि विश्वास ने अरुण जेटली को एक पत्र लिख कर पूरे मामले में अपना पक्ष स्पष्ट किया था. इसी चिट्ठी के बाद अरुण जेटली ने ये मुक़दमा वापस ले लिया.

विश्वास ने अपनी चिट्ठी में केजरीवाल पर जमकर निशाना साधा था और उन्हें आदतन झूठा करार दिया था. विश्वास ने लिखा कि अपनी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के कहने पर ही उन्होंने, पार्टी के अन्य कार्यकर्ताओं और प्रवक्ताओं की बात दोहराई थी और अब अरविंद केजरीवाल उनसे सम्पर्क नहीं में नहीं हैं और झूठ बोल कर स्वयं गायब हो गए हैं.

विश्वास ने लिखा है कि अरविंद आदतन झूठे हैं और पार्टी कार्यकर्ता होने के नाते उन्होंने सिर्फ़ अरविंद की बात दुहराई थी.

गौरतलब है कि मानहानि केस में अरविंद केजरीवाल समेत अन्य सभी अभियुक्तों द्वारा माफ़ी मांग लिए जाने के बाद विश्वास इस मामले में अकेले राह गए थे.

यहां पढ़ें कुमार विश्वास का खत

प्रतिष्ठा में,

श्री अरुण जेटली (वित्तमंत्री भारत सरकार)

आशा है आप सानंद होंगे! समाचार माध्यमों से ज्ञात हुआ की आप का स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं. मां सरस्वती से प्रार्थना है की आप शीघ्र स्वथ्य होकर देश की वित्तव्यवथा को अपनी ऊर्जा प्रदान करें! यद्यपि आप के स्वाथ्य लाभ के समय, आप से राजनैतिक चर्चा करना उपयुक्त नहीं लगता किन्तु अवसर की आवश्यकता को देखते हुए मैं आपको यह पत्र लिख रहा हूं, आशा है कि आप मेरे कथन को सहज भाव के साथ सुनेंगे.

महोदय मुझ जैसे करोड़ों भारतीय जो इस देश से अपार प्रेम करते हैं, वे सब समय-अवसर के अनुकूल देश के लिए कुछ न कुछ करने की इच्छा रखते हैं. उन सब को दैनिक राजनीति की जटिल-भाषा न समझ आती है और न वे ये सब समझना चाहतें हैं. परिवर्तन की इसी आशा से मैंने भी 2010 में अपने दो पुराने मित्रों के साथ देश में व्यापत भ्रष्टाचार के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन की भूमिका तैयार की जो कालांतर में 'आम आदमी पार्टी' नामक राजनैतिक दल में परिवर्तित हो गई. हर दल की तरह नेता चुनने की परंपरा के तहत हमने भी अरविन्द केजरीवाल को अपने दल का सर्वोच्च नेता चुना था. अरविन्द अक्सर कुछ कागज़ जमा करके हम सब को और बाद में हमारे माध्यम से कार्यकर्ताओं व जनता को, वे कागज़ कमोबेश हर दल के नेता के भ्रष्टाचार के सबूत कह कर दिखाते रहते थे. हर दल के कार्यकर्ता की तरह हम सबने भी उनकी बातों पर सदा आंख मूंद कर भरोसा किया था.

राजनीतिक दलों की परम्पराओं के अनुसार शीर्ष नेतृत्व की बात पर सहज भरोसा करने का क्रम आम आदमी पार्टी में भी था. बहुधा पार्टिओं के शीर्ष नेता जब कोई बड़ा सार्वजनिक बयान दे कर स्टैंड लेते हैं तो दल का आखिरी कार्यकर्ता भी वही बात दोहराता है. हम सब ने भी बिना सच-झूठ परखे, बिना अपने नेता पर शंका किये उसके हर कथन को अक्षरशः दुहराया. आम आदमी पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं और करोड़ों शुभचिंतकों ने भी अरविन्द की हर कुतार्किक बात पर यह सोच आखं मूंदकर भरोसा किया कि करोड़ों लोगों के भरोसे को वो कम से कम, केवल चुनाव जीतने जैसी इच्छा के लिए नहीं तोड़ेगा.

यही कारण है कि जब अरविन्द ने आप को या श्री नितिन गडकरी या श्री कपिल सिब्बल या सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले अनेक नेताओं, पत्रकारों, व्यापारियों को भ्रष्टाचारी कहा तो हम साथियों-कार्यकर्ताओं ने भी पार्टी का आदेश मानते हुए उसी की बात को अक्षरशः दोहराया. मैंने निजी मित्रता और पार्टी  संस्थापक होने के अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए अरविन्द को अनेक बार ज़रूर आगाह करते हुए कहा कि "तथ्यों के अधकचरे होने पर सिर्फ चुनाव जीतने या गद्दी हथियाने की लालसा से भर कर कोई आरोप मत लगाओ, इससे देश में तुम्हारी विश्वश्नीयता ही कम नहीं होगी बल्कि पूरी तरह ख़त्म ही हो जाएगी जो कि हमारी पूरी पार्टी का बहुत बड़ा नुक़सान होगा" , किंतु उसने हर बार चीख-चीख कर कहा कि उसके ये सारे तथाकथित सबूत उसकी स्वराज किताब की तरह ही असली  हैं. यहाँ तक कि पंजाब चुनाव के समय  पंजाब के अकाली नेता श्री मजीठिया को भी वो अवैध ड्रग्स का व्यापारी खुलेआम कहते रहे. लेकिन जब से इन केसों की सुनवाई दिन प्रतिदिन के हिसाब से चलने लगी तो कानून के विशद जानकारों ने अरविन्द को बताया कि आरोप झूठे सिद्ध होने पर कुछ दिन की सांकेतिक जेल निश्चित है. इसमें अरविन्द को विभिन्न नेताओं पर अपने द्वारा लगाए झूठे आरोपों के कारण अगर कुछ दिन के लिए भी जेल जाना पड़ेगा तो उसे मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ेगा. अरविन्द का मानना था कि इन झूठे आरोप लगाने के कारण हुए मुक़दमों में अगर उसे सजा हुई तो उस सजा के कारण उसे पद छोड़ कर मनीष को मुख्यमंत्री बनाना होगा! ऐसी परिस्थिति में सजा से वापस आने पर मनीष उसे सी एम की गद्दी वापस नहीं देगा. इसलिए उसने हर नेता से पहले तो अलग-अलग लोगों के माध्यम से समझौते की कोशिश की और उन कोशिशों के असफल होने पर खुद ही लिखित माफ़ी मांगना शुरू कर दिया.

मान्य जेटली जी, इस पूरी क़वायद में उसने मेरे और संजय जैसे वरिष्ठ दोस्तों, नेताओं, कार्यकर्ताओं और सह-अभियुक्तों जिन्होंने उसके झूठ को सच समझ कर दोहराया, उन तक से न तो सलाह की न ही हमें सूचित किया! ऐसा करके अरविन्द ने, आप, श्री गडकरी, मजीठिया आदि  नेताओं के विरुद्ध बयान देने वाले या सड़कों पर प्रदर्शन करने वाले हज़ारों साथी कार्यकर्ता को अकेले लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया. बिना पार्टी में चर्चा किये,  झूठ से लबालब भरी अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए अरविन्द का अकेले ही माफ़ी का निर्णय ठीक वैसा ही हुआ जैसे चलते युद्ध में साथी सिपाहियों को जान जोखिम में डाल कर कोई कायर सेनापति पीछे से मैदान छोड़कर न केवल भाग खड़ा हो बल्कि सामने वाले योद्धाओं के तम्बू में जा कर उन्हीं के चरणों पर गिर पड़े और साथियों की कीमत पर कमाई अपनी "जान-राजमुकुट" बख़्श देने के लिए रोने-गिड़गिड़ाने लगे! ये न केवल मेरे लिए बल्कि हज़ारों कार्यकर्ताओं व देशवासियों के लिए, योद्धा स्वराज-मार्गी अरविन्द का "कुर्सी के पिस्सू" में बदलने का चौकाने वाला रूपांतरण था.

हालांकि अपने मार्ग से वो कोसों दूर तो अनेक कारणों से पहले ही निकल गया था किन्तु वो थूक कर बारम्बार चाटेगा, ऐसी वीभत्स कल्पना इस देश में उसके राजनैतिक शत्रुओं तक ने नहीं की थी. उसके दरबारियों का कुतर्क था कि अब अरविन्द सारा ध्यान दिल्ली चलाने पर देना चाहता है, इसलिए माफियां मांगता फिर रहा है.  यानि चार साल तक ऐसे अनेक केस और राजनीतिक प्रपंचों में खुद को जबरन फंसा कर वो दिल्लीवालों को ईश्वर भरोसे छोड़े हुए था?

मान्य अरुण जी, अब जब अपनी कुर्सी और सत्ता बचाने के लिए अरविन्द ने लाखों पार्टी-कार्यकर्ताओं और मुझ जैसे सबसे पुराने साथी को बिना संज्ञान में लिए आपसे माफ़ी मांगते हुए ये कहा है कि "मेरे द्वारा लगाए गए आरोप झूठे थे और मुझे किसी ने गलत कागज़ ला कर दे दिए थे ", तो अब हम सब कार्यकर्ताओं का ये जानना बेहद ज़रूरी हो गया है कि वो आप पर ऐसे आरोप लगाते समय झूठ बोल रहा था या अब अपनी कुर्सी बचाने के लिए झूठ बोल रहा है? यानि अरविन्द के सचिव श्री राजेंद्र कुमार के दफ्तर पर पड़े सीबीआई के छापे को डीडीसीए के कागज़ों के लिये प्रधानमंत्री जी द्वारा डलवाया गया छापा बताना, सच पता होने पर भी सिर्फ फायदा उठाने के लिए बोला गया अरविन्द का राजनीतिक झूठ था? यानि प्रधानमंत्री के लिए लिखे गए उसके अपशब्द भी उसका जायज़ गुस्सा न हो कर राजनैतिक स्टंट था? यानि आजतक जिन-जिन बातों पर हम सब ने भरोसा किया उसमे न जाने क्या क्या झूठ था? यानि अब आगे अरविन्द जब किसी के बारे में कुछ भी बोलेगा तो वह बात सच है या झूठ यह तो केवल उसकी कुर्सी खतरे में पड़ने पर ही हमें और देश को पता चल सकेगा?

मान्य अरुण जी अब, जब हमारे नेता ने ही मान लिया कि वो सस्ती लोकप्रियता और राजनीतिक फायदे के लिए अनर्गल झूठ बोलने वाला आदतन झूठा है तो मेरे जैसे लाखों कार्यकर्ताओं के लिए सहज है कि हम सब भी न केवल आप के, नितिन जी के, मजीठिया जी, प्रधानमंत्री जी, एल जी दिल्ली, मीडिया जगत के प्रति खेद प्रकट कर के एक झूठे इंसान के द्वारा फैलाये प्रपंच से पिंड छुड़ाएँ! किन्तु यहां सवाल यह उठता है कि आप को या अकारण लज्जित हुए हम सब को यह तो पता चले की वो "तथाकथित-सबूत" का सफ़ेद झूठ क्यों रचा गया ?

जब सचमुच कोई सबूत नहीं था तो किस आधार पर इतना बड़ा वितंडा रचा गया?  जिन कुछ लोगों द्वारा गलत सबूत देने का फ़र्ज़ी बहाना रच कर अरविन्द इस "Mud Sledging" की घटिया हरकत पर पर्दा डालना चाहता है वो "कुछ लोग" कौन थे? इसके लिए मैंने अरविन्द से संवाद की अनेक कोशिश की जो सफल नहीं हो सकीं. PAC वो कराता नहीं, फ़ोन वो उठाता नहीं, और अपने घर आये हर राजनीतिक मेहमान की वीडियो रिकॉर्डिंग का इच्छाधारी क्रांतिकारी वीडियो कैमरों के सामने, बात करने को तैयार नहीं! इस केस के न तो वो "तथाकथित-सबूत" देने को तैयार है न ही मिलकर ये बताने को तैयार है कि वे "नरपुंगव" कौन थे जो दिनरात आरोप लगा कर लड़ने वाले एक योद्धा के हाथ में "बारूद" के नाम पर सबूतों का "कागज़ी गोबर" थमाकर,बचकर निकल लिए?

मान्य अरुण जी, हम किस के माफ़ी मांगे? आप से? आप के परिवार से? नितिन जी सरीखे अन्य नेताओं या मिडिया मुगलों से? यदि हम आप सब से इसकी माफ़ी मांगते हैं और आशा है कि इस विवाद के पटाक्षेप होने के बाद हम सब अपनी-अपनी दुनिया में लौट भी जाएंगे, तो भी उन सब लाखों साथी कार्यकर्ताओं से माफ़ी कौन मांगेगा जिन्होंने एक सत्तालोलुप कायर झूठे के कहे पर अपना-अपना परिवार-कैरियर-सपने सब दांव पर लगा दिए? उन बच्चों से माफ़ी कौन मांगेगा जिन्होंने एक कायर झूठे के कहने को सच समझ कर आप सब के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन किया, पुलिस की लाठियाँ खायीं, लोगों के मज़ाक के पात्र बने, कैरियर के शुरूआती दौर में अपने खिलाफ मुक़दमे दर्ज़ करवाए और आज भी अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं? आप एक बड़े वकील होने के अतिरिक्त देश के वित्तमंत्री भी है मान्य अरुण जी, आप इस पद की जिम्मेदारियों में लगातार व्यस्त हैं ही, अरविन्द एंड गैंग चंद माफिओं के एवज़  में सत्ता-सुख बचा ले आने की ख़ुशी में मगन है और रहेगा, मैं सामाजिक और साहित्यिक रूप से और अधिक स्वीकार्य हो कर अपने कार्यक्रमों में व्यस्त हो जाऊंगा, किन्तु देश के बाहर और भीतर, सहमत और असहमत उन करोड़ों भारतवासियों से माफ़ी कौन मांगेगा, जिनके अंदर "कुछ तो बदलेगा" की उम्मीद पैदा हुई थी?

मान्य अरुण जी, अब हाल ये है कि आप के सामने केस लड़ने के लिए सहमत मेरे निजी वकील को भी हमारी पार्टी ने पद से हटा दिया है. न केस के काग़ज़ दे रहे हैं और न अरविन्द उन नामुरादों के नाम बताने को तैयार है जिनके "तथाकथित झूठे सबूतों" के कारण हमारी ये फ़ज़ीहत हुई है, हो रही है! आप वकील हैं, इस सब बेशर्म झूठ-कथा से निश्चित ही आपकी मानहानि हुई है, तो हो सकता है कि आप सोचें कि आपको भला इन सब बातों से क्या लेना-देना? और ये जायज़ भी है किन्तु मेरे और मुझ से हज़ारों कार्यकर्ताओं के लिए ये महज़ आप से या पूरे देश से अपने कायर नेता के झूठ को दोहराने की गलती पर क्षमाप्रार्थना मात्र नहीं है! मेरे लिए ये करोड़ों देशवासियों की ऊर्जा से बनी एक आशा भरी प्रतिमा के कायरतापूर्ण असमय अनैतिक पतन का शोककाल है !

मान्य अरुण जी, अब यह देश की अदालतों, प्रशासन और अन्य दलों के नेताओं की सदाशयता पर निर्भर है कि देश भर में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर अपने कायर झूठे नेता के उकसाने पर किये गए प्रदर्शनों में लंबित मुक़दमे ख़त्म कराएं या एक ओर अपने ऐसे नेता के द्वारा लुटे हुए निरपराध लोगों को अदालतों से और सजा दिलवाएं ! आप को और आप के परिवार-शुभचिंतकों को हमारे आदतन झूठे नेता के निराधार आरोप और हमारे उसके झूठ को दोहराने से जो कष्ट हुआ है उसके लिए हमें खेद है, आशा है कि आप भी हम सब का ये सार्वजनिक दर्द समझेंगे और इस निराधार विवाद के हिस्से बचे हम जैसे निरपराध कार्यकर्ताओं को इस वाद में और अधिक कष्ट नहीं उठाने देंगे. दुःख किसी सरकार या नेता के सफल-असफल होने का नहीं दुःख एक आशा के धूमिल पटाक्षेप का है. मैं कवि हूं , इस पत्र के समाहार में शायद इन चार पंक्तियों से अपनी मनःस्थिति को ठीक से बयां कर सकूँ -

"पराये आँसुओं से आँख को नम कर रहा हूँ मैं, भरोसा आजकल ख़ुद पर भी कुछ कम कर रहा हूँ मैं, बड़ी मुश्किल से जागी थी ज़माने की निगाहों में, उसी उम्मीद के मरने का मातम कर रहा हूँ मैं!"

आपके उत्तम स्वास्थ्य की कामना के साथ

कुमार विश्वास

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