Defence Expo 2022: भारत चीन की नियंत्रण रेखा (LAC) पर टकराव के बीच भारत ने अपने स्वदेशी हथियारों की प्रदर्शनी डिफेंस एक्सपो-2022 (Defence Expo 2022) का आगाज किया है. गुजरात की राजधानी गांधीनगर (Gandhi Nagar) में एशिया की सबसे बड़ी रक्षा प्रदर्शनी में हथियारों और तकनीक का प्रदर्शन किया गया है. इस तकनीक का इस्तेमाल भविष्य में चीन से सटी एलएसी पर किया जा सकता है. 


ऐसे में एबीपी न्यूज आपको बताएगा कि आखिर इस डिफेंस एक्सपो में एक्सक्लूसिव क्या है?


गुजरात के गांधी नगर में भारत पैविलियन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस प्रदर्शनी का बुधवार (19 अक्टूबर) को उद्घाटन करेंगे. हालांकि इस हॉल में वैसे तो एक से एक स्वदेशी टैंक, तोप, मिसाइल और ड्रोन रखे हैं लेकिन इनमें सबसे खास बीएमपी सी-थ्रू आर्मर है. 


पिछले कई दशक से भारतीय सेना रूस की मैकेनाइज्ड-इंफेंट्री सैनिकों की मूवमेंट के लिए इस्तेमाल करती आ रही थी. इन बीएमपी व्हीकल को भारत की ओएफबी यानि ऑर्डनेंस फैक्ट्री रूस की मदद से भारत में बनाती आई थी लेकिन पूर्वी लद्दाख में चीन से टकराव के समय सेना को इसमें कुछ ऑपरेशनल परेशानियां सामने आईं थी. 


क्या थी समस्या?
इसमें सबसे अहम समस्या ये थी कि इसमें अंदर बैठे कमांडर और ड्राइवर बाहर हो पा रही घटनाओं के ठीक से समझ नहीं पाते थे. ऐसे में युद्ध के मैदान में या सीमा पर दुश्मन की हरकत का पता नहीं चल पाता था. ऐसे में सेना ने चेन्नई के एक स्टार्टअप से संपर्क किया.


क्या मिला सोल्यूशन?
चेन्नई के बिग बैंग बूम सोल्यशन ने एक ऐसा चश्मा तैयार किया जिसमें एक खास तरह का कैमरा लगा था. ये कोई साधारण कैमरा नहीं बल्कि सी-थ्रू कैमरा है. इस कैमरे से बीएमपी में अंदर बैठकर रणभूमि का 350 डिग्री व्यू मिल सकता है. बिंग बैंग सोल्यशन के चीफ अधिकारी गौरव शर्मा ने एबीपी से बातचीत में बताया कि ये सी-थ्रू सोफ्टवेयर पूरी तरह से स्वदेशी है और इससे बाहर की 700 मीटर तक की पूरी तस्वीर सामने दिखाई पड़ती है, बल्कि कौन सा टैंक दुश्मन का है या अपनी सेना का है वो भी पता चल जाता है. 


इसके लिए कैमरे में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानि एआई का इस्तेमाल भी किया गया है. साथ ही कैमरे की क्वालिटी फुल एचडी है जिससे बाहर का वीडियो बेहद साफ दिखाई पड़ता है. इसके अलावा ये दिन-रात दोनों जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है. 


अशोक लीलैंड की 4x4 एलबीपीवी
भारतीय सेना को अब तक 70 हजार मिलिट्री ट्रक सप्लाई कर चुकी भारत की अशोक लीलैंड कंपनी अब इंफेंट्री कॉम्बेट व्हीकल यानी आईसीवी बनाने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है. दरअसल,  एलएसी पर चीन के साथ हुए टकराव के दौरान भारतीय सेना को लद्दाख के हाई ऑल्टिट्यूड यानि उंचाई वाले इलाकों में मूवमेंट में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था.


चीन की पीएलए सेना अपने हमवी व्हीकल्स में बहुत तेजी से मूवमेंट करती है जबकि भारतीय सैनिक अपनी जिप्सी या फिर बीएमपी व्हीकल में करते थे. लेकिन इनमें हाई आल्टिट्यूड एरिया में मूवमेंट करने में थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता था. ऐसे में भारतीय सेना ने स्वदेशी कंपनियों से हमवी स्टाइल की आईसीवी बनाने पर जोर दिया. अशोक लिलैंड ने एक आईसीवी व्हीकल बनाई है जिसे नाम दिया गया है लाइट बुलेट प्रूफ व्हीकल. अशोक लीलैंड की ये आर्मर्ड व्हीकल रेगिस्तान और उंचाई वाले इलाकों में अपने ट्रायल पूरे कर चुकी है.


हाई एल्टीट्यूड एरिया में आसान हो जाएगी पेट्रोलिंग
अशोक लीलैंड (डिफेंस) के वाइस प्रेसिडेंट राजेश एस. ने एबीपी न्यूज को बताया कि इन गाड़ियों को बॉर्डर पर तैनात सैनिकों के लिए भी बनाया गया है ताकि इन गाड़ियों में सैनिक पेट्रोलिंग कर सकें. राजेश ने उम्मीद जताई कि जिस तरह भारतीय सेना को हाई ऑल्टिट्यूड में पेट्रोलिंग की जरूरत होती है ये उसके लिए बेहद कारगर है. क्योंकि एलबीपीवी में छह सैनिक आराम से बैठ सकते हैं और दुश्मन पर अंदर से बैठकर निशाना भी लगा सकते हैं.


क्या है इस व्हीकल की खासियत?
अगर इस व्हीकल की खासियत के बारे में बात करें तो एक सैनिक सन-रूफ पर खड़ा होकर भी दुश्मनों को टारगेट करके गोली चला सकता है. इसके अलावा एलबीपीवी में इंजन आगे के बजाए बीच में रखा गया है ताकि सामने से वार होने पर इंजन को कोई नुकसान नहीं हो. चूंकि व्हीकल बुलेट प्रूफ है इसलिए इसपर गोली या बम से भी ज्यादा नुकसान नहीं हो सकता है. हाल ही में सेना की उधमपुर स्थित उत्तरी कमान ने पूर्वी लद्दाख में तैनात करने के लिए ऐसी ही आईसीवी को प्राईवेट कंपनियों से खरीदा था. 


अशोक लीलैंड के वाइस प्रेसीडेंट ने बताया कि एलबीपीवी को हाल ही में भारतीय वायुसेना ने खरीदा है. वायुसेना अपनी एयर-बेस की पेट्रोलिंग और आतंकियों से मुकालबा करने के लिए इन खास व्हीकल्स का इस्तेमाल करेगी. 


एलएंडटी के लाइट टैंक
पूर्वी लद्दाख में चीन से टकराव के दौरान जब भारतीय सेना ने मोबिलाइजेशन किया तो सबसे बड़ी चुनौती 14-15 हजार फीट की उंचाई पर टैंक्स को तैनात करना था. भारतीय सेना टी-90 और टी-72 जैसे हैवी टैंक का इस्तेमाल करती है. 


ऐसे में इन टैंक को दुनिया के सबसे उंचाई वाले दर्रों से पार करा कर चीन से सटी एलएसी पर तैनात करने में खासी दिक्कतें आई थी. यही वजह है कि एलएसी पर तैनात करने के लिए भारतीय सेना स्वदेशी लाइट-टैंक खरीदना चाहती है. भारतीय सेना ने इसके लिए प्रोजेक्ट जोरावर शुरू किया है. 


'कर चुकी है 100 टैंकी की सप्लाई'
भारतीय सेना के लिए लाइट टैंक की कमी पूरी करने के लिए एल एंड टी खुद हल्के टैंक डिजाइन कर रही है. एल एंड टी ने इससे पहले फिलीपींस के साथ मिलकर लाइट आर्मर्ड व्हीकल तैयार किया था लेकिन अब वह हल्के टैंक खुद डिजाइन कर बनाना भी चाहता है. 


एल एंड टी (डिफेंस) के एडवायजर जयंत डी पाटिल ने एबीपी न्यूज को बताया कि अगले साल जून तक उनका लाइट टैंक बनकर तैयार हो जाएगा. आपको बता दें कि एल एंड टी की के-9 वज्र तोप की अगले खेप के लिए भारतीय सेना जल्द ही ऑर्डर करने जा रही है. 100 तोपों की इस खेप को चीन से सटी एलएसी पर ही तैनात किया जाएगा. टैंक की तरह दिखने वाली ये तोप एल एंड टी ने दक्षिण कोरिया की मदद से भारत में ही तैयार की है. इस कंपनी से 100 तोप भारतीय सेना पहले ही खरीद चुकी है. 


दुनिया को हथियारों की सप्लाई करेगा भारत
हालांकि इन तोपों को रेगिस्तान यानि पाकिस्तान से सटी सीमा पर तैनात करने के लिए लिया गया था. लेकिन पूर्वी लद्दाख में चीन से तनाव बढने पर इन तोपों में खास विंटर-किट लगाकर एलएसी पहुंचाया गया था. लेकिन जो नई के-9 तोप आएंगी उनमें पहले से विंटर-किट लगी होंगी. जयंत पाटिल ने भरोसा दिलाया कि निकट भविष्य में भारतीय सैनिक ना केवल स्वदेशी हथियारों से लैस होंगे बल्कि भारत मेड फॉर वर्ल्ड के तहत दुनिया को हथियारों की सप्लाई भी करेगा. 


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