India BrahMos-2 Hypersonic Missile: भारत और रूस साथ मिलकर ब्रह्मोस-2 हाइपरसोनिक मिसाइल बना रहे हैं. ब्रह्मोस (BrahMos) को दुनिया का सबसे तेज और घातक हथियार माना जाता है. भारत की पहली हाइपरसोनिक मिसाइल रूस के जिरकॉन मिसाइल के मॉडल आधारित हो सकती है. जानकारी के मुताबिक ब्रह्मोस-2 मिसाइल को निर्यात नहीं किया जाएगा. प्रदर्शन और ताकत के मामले में ये रूस के जिरकॉन मिसाइल से काफी मेल खाएगी.
ब्रह्मोस एयरोस्पेस के सीईओ अतुल राणे (Atul Rane) ने हाल ही में कहा था कि हम हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने में सक्षम हैं. 5 से 6 साल के भीतर हम पहले हाइपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल को बनाने में सफल हो जाएंगे.
ब्रह्मोस-2 की ताकत और खासियत
ब्रह्मोस-2 सुपरसोनिक मिसाइल में स्क्रैमजेट इंजन लगाया जाएगा, जो इसकी ताकत को काफी बढ़ा देगा. स्पीड और ग्लाइड करने की बेहतर क्षमता के साथ इसे विकसीत किया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक इस मिसाइल की रेंज 600 किमी होगी. इसकी रेंज को बढ़ाकर 1000 किमी किया जा सकता है. ये मिसाइल एंटी शिप और सतह से सतह पर मार करने वाली हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल होगी. इसे फाइटर जेट, युद्धपोत, पनडुब्बी से दागा जा सकता है.
रडार से भी नहीं आएगी पकड़ में
चीन और पाकिस्तान जैसे चालबाज पड़ोसियों के ये मिसाइल काफी घातक साबित हो सकती है. इसकी स्पीड इतनी अधिक होगी की रडार से भी पकड़ में नहीं आएगी. ये आसमान में ही डायरेक्शन चेंज कर सकती है. हाइपरसोनिक हथियार की विशेषता ये होती है कि ये कम ऊंचाई पर भी उड़ान भरने में सक्षम है. ब्रह्मोस का सुपरसोनिक संस्करण 2.8 मैक की गति से उड़ान भरने में सक्षम होगा.
रूस के किस मिसाइल से मेल खाएगी?
रूस की TASS समाचार एजेंसी के हवाले से ब्रह्मोस एयरोस्पेस (Brahmos Aerospace) के सीईओ अतुल राणे ने कहा कि हाइपरसोनिक ब्रह्मोस- II में रूस की जिरकॉन मिसाइल के समान प्रदर्शन करने की विशेषताएं होंगी. इसका मतलब है कि ब्रह्मोस-2 प्रदर्शन के मामले में जिरकॉन मिसाइल के लगभग बराबर होगा. रूस ने दावा किया है कि उसकी हाइपरसोनिक जिरकॉन मिसाइल (Zircon Missile) ध्वनि की गति से नौ गुना तेज उड़ान भर सकती है.
अभी बनने में कितना वक्त लगेगा?
ब्रह्मोस का सुपरसोनिक संस्करण (Supersonic Version of Brahmos) 2.8 मैक की गति से उड़ान भर सकता है, जो कि ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना अधिक है. अतुल राणे ने यह भी बताया कि ब्रह्मोस-2 (BrahMos-2 ) को पहली उड़ान परीक्षण से पहले पांच-छह साल तक का वक्त लग सकता है. ब्रह्मोस-II का विकास संयुक्त तौर से डीआरडीओ (DRDO) और रूस के NPO Mashinostroyeniya की ओर से किया जा रहा है.
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