Juvenile Justice: बाल अधिकार संरक्षण आयोग पहुंचा SC, जेजे एक्ट में हुए संशोधन को दी चुनौती
Juvenile Justice Act: दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में हुए संशोधन को चुनौती दी है.
Supreme Court: दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पिछले साल जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (Juvenile Justice Act) में हुए संशोधन को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. आयोग ने कहा कि नए संशोधन के तहत बच्चों के खिलाफ कुछ गंभीर अपराधों को गैर-संज्ञेय बनाया गया है. जेजे एक्ट 2015 में कई बदलाव करने के लिए 2021 में संशोधन किया गया था. जिसमें गंभीर प्रकृति के अपराधों को संज्ञेय से गैर संज्ञेय बना दिया. यह संशोधन पुलिस को बिना वॉरंट आरोपी को गिरफ्तार करने और अदालत की मंजूरी के बिना जांच शुरू करने से रोकेगा.
इस संशोधन के बाद जिन अपराधों को गैर-संज्ञेय बनाया गया है, उनमें बच्चों की बिक्री और खरीद, बाल कर्मचारियों का शोषण, भीख के लिए बच्चों का उपयोग, बच्चों का वेंडिंग, तस्करी या नशीले पदार्थों की तस्करी में उपयोग और चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस (सीसीआई) के कर्मचारियों द्वारा बच्चों पर की गई क्रूरता शामिल है. याचिका में कहा गया कि संशोधन अधिनियम ऐसे कई अपराधों को गैर-संज्ञेय बनाता है. आयोग ने कहा कि संक्षेप में समझें तो बच्चों के खिलाफ जो अपराध जेजे एक्ट 2015 के 'बच्चों के खिलाफ अन्य अपराध' से जुड़े अध्याय में उल्लिखित हैं, उसमें तीन से सात साल की कैद का प्रावधान है, अब उन्हें गैर संज्ञेय माना जाएगा.
संशोधन को असंवैधानिक करार देने की मांग की
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) ने अपनी याचिका में संशोधन को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द करने की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की प्रमुख विशेषताओं में से एक यह था कि पहली बार कानून ने बच्चों के खिलाफ किए गए कुछ नए अपराधों को स्पष्ट रूप से मान्यता दी, जो अब तक किसी अन्य कानून के तहत पर्याप्त रूप से कवर नहीं किए गए थे. लेकिन संशोधित कानून का कानून के उद्देश्यों के साथ कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है, जो मुख्य रूप से बच्चों की सुरक्षा, उचित देखभाल, विकास, उपचार और सामाजिक पुन: एकीकरण के माध्यम से उनकी बुनियादी जरूरतों को प्रदान करने के लिए अधिनियमित किया गया है.
बच्चों के मौलिक अधिकारों का है उल्लंघन
याचिका में ये कहा गया है कि संशोधन में बच्चों के खिलाफ किए गए अपराधों को उन अपराधों की तुलना में कम गंभीर माना जाता है जो बड़े के खिलाफ किए जाते हैं. इसका परिणाम यह है कि पुलिस न तो प्राथमिकी दर्ज कर सकती है और न ही न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना गिरफ्तारी की जांच या प्रभाव कर सकती है, जिससे मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है. बच्चे अपराधी के हाथों शिकार हो रहे हैं.
केंद्र सरकार को लिखे पत्र का नहीं मिला जवाब
याचिका में ये भी बताया गया कि एक महीने पहले पंजाब, पश्चिम बंगाल, चंडीगढ़ और राजस्थान के राज्य बाल अधिकार निकायों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इस संशोधन को उलटने के लिए संसद में एक विधेयक पेश करने की मांग की थी. बाल अधिकार निकायों ने केंद्र सरकार को लिखे अपने पत्र में, अध्ययनों का हवाला देते हुए दावा किया कि देश में 33 लाख से अधिक बाल भिखारी हैं और 44,000 से अधिक बच्चे सालाना ऐसे गिरोह के चंगुल में आते हैं. हालांकि, इस संबंध में कोई जवाब नहीं मिला.
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