Mohammed Zubair Gets Bail: 'हिन्दू सहिष्णु धर्म है, असहमति की आवाज...', मोहम्मद जुबैर को बेल देते हुए कोर्ट ने क्या कुछ कहा?
कोर्ट ने मोहम्मद जुबैर को जमानत देते हुए कहा कि हिंदू धर्म इतना सहिष्णु है कि इसके अनुयायी गर्व से अपनी संस्था/संगठन/केंद्र का नाम अपने देवी-देवताओं के नाम पर रखते हैं.
Mohammed Zubair Case: दिल्ली की एक अदालत (Delhi Court) ने एक हिंदू देवता के खिलाफ 2018 में एक ‘आपत्तिजनक ट्वीट’ करने के मामले में ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair) को शुक्रवार को जमानत दे दी और कहा कि हिंदू धर्म और इसको मानने वाले ''सहिष्णु'' हैं. अदालत ने कहा कि असहमति की आवाज स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है और भारतीय लोकतंत्र व राजनीतिक दलों की आलोचना की जा सकती है. किसी राजनीतिक दल की महज आलोचना करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए और 295ए लगाया जाना जायज नहीं है.
'हिरासत में लेकर पूछताछ की जरूरत नहीं'
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार जांगला ने जुबैर को राहत दी. अदालत ने कहा कि 'स्वतंत्र अभिव्यक्ति निस्संदेह एक लोकतांत्रिक समाज की नींव है.' अदालत ने जमानत देते हुए कहा कि आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की जरूरत नहीं है और कथित कृत्य तभी अपराध की श्रेणी में आएगा, जब वह दोषपूर्ण इरादे से किया हो.
न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस आज तक उस ट्विटर उपयोगकर्ता की पहचान स्थापित करने में विफल रही है, जिसने आरोपी के ट्वीट से आहत महसूस किया और जिसकी शिकायत के आधार पर वर्तमान मामला दर्ज किया गया था.
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि आरोपी ने अपने ट्वीट में ''2014 से पहले'' और ''2014 के बाद'' शब्दों का इस्तेमाल किया, जिससे हिंदू समुदाय की भावनाएं आहत हुईं और यह लोगों के बीच नफरत की भावना पैदा करने के लिए पर्याप्त है. इसपर अदालत ने कहा कि हिंदू धर्म और इसको मानने वाले सहिष्णु हैं.
न्यायाधीश ने कहा, ''हिंदू धर्म सबसे पुराने और सबसे सहिष्णु धर्मों में शामिल है. हिंदू धर्म के अनुयायी भी सहिष्णु हैं. हिंदू धर्म इतना सहिष्णु है कि इसके अनुयायी गर्व से अपनी संस्था/संगठन/केंद्र का नाम अपने देवी-देवताओं के नाम पर रखते हैं.''
'बच्चों का नाम अपने देवी-देवताओं के नाम पर रखते हैं'
उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में हिंदू गर्व से अपने बच्चों का नाम अपने देवी-देवताओं के नाम पर रखते हैं. न्यायाधीश ने कहा, ''कॉरपोरेट मंत्रालय, भारत सरकार की वेबसाइट से पता चलता है कि हिंदू देवी या देवताओं के नाम पर कई कंपनियों का नाम रखा गया है. इसलिए किसी संस्थान, केंद्र या संगठन, या संतान का नाम हिंदू देवी-देवता के नाम पर रखना, आईपीसी की धारा 153ए और 295ए का उल्लंघन नहीं है जब तक कि ऐसा द्वेष या दोषपूर्ण इरादे से नहीं किया जाता.''
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र लोगों के लिए स्वतंत्र अभिव्यक्ति का माध्यम है. न्यायाधीश ने कहा, ''लोकतंत्र तब तक न तो काम कर सकता है और न ही समृद्ध हो सकता है जब तक लोग स्वतंत्र रूप से अपने विचार साझा नहीं कर पाते. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) अपने नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है.''
उन्होंने कहा कि विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति, बिना किसी रोक-टोक के सूचनाओं का प्रसार, ज्ञान का आदान-प्रदान, भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों का प्रसार, वाद-विवाद और विचार तय करना व उन्हें व्यक्त करना मुक्त समाज के मूल संकेतक हैं.
'जिस फ़िल्म की तस्वीर ज़ुबैर ने लगाई, उसे CBFC ने पास किया था'
अदालत ने कहा, ''आवेदक ने वर्ष 1983 में रिलीज हुई एक फिल्म 'किसी से ना कहना' के दृश्य की तस्वीर पोस्ट की थी. इस फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा प्रमाणित किया गया था, जो भारत सरकार का एक वैधानिक निकाय है, और वह ट्वीट तब से लोगों के लिए उपलब्ध है. कहा गया है कि फिल्म के उक्त दृश्य ने समाज के एक विशेष समुदाय की भावनाओं को आहत किया है, लेकिन इसके बारे में आज तक कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई गई.''
अदालत ने कहा कि पुलिस अधिकारी सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुसार जांच करने के लिए बाध्य हैं. अदालत ने कहा, ''मामले के तथ्यों व परिस्थितियों और आरोपी को पूछताछ के लिए हिरासत में रखने की आवश्यकता नहीं होने के तथ्य को ध्यान में रखते हुए मैं आवेदक/आरोपी मोहम्मद जुबैर की ओर से दाखिल वर्तमान जमानत याचिका को मंजूर करता हूं. जमानत मंजूर की जाती है.
जमानत की शर्तें
अदालत ने 50,000 रुपए के मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत पर जुबैर को राहत दी. साथ ही अदालत ने जुबैर को पूर्व अनुमति के बिना देश से बाहर नहीं जाने को कहा. साथ ही अदालत ने जुबैर को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि उनके ट्वीट, रीट्वीट, या सोशल मीडिया अकाउंट पर कोई भी सामग्री आईपीसी की धारा 153ए और 295ए के तहत दंडनीय अपराध की सीमाओं को न छुए.
अदालत ने जुबैर (Mohammed Zubair) को जेल से रिहाई के तीन दिन के भीतर जांच एजेंसी को अपना पासपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया. साथ ही उसने कहा कि आरोपी ‘‘सबूतों से छेड़छाड़ न करे और न ही किसी ऐसी गतिविधि में लिप्त हो, जो गैर कानूनी हो या जो लंबित मामले में कार्यवाही के प्रतिकूल हो.’’ न्यायाधीश ने कहा, ‘‘थाना प्रभारी/जांच अधिकारी जब भी आरोपी/याचिकाकर्ता को जांच के लिए बुलाएगा, उन्हें पेश होना होगा.’’