नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बच चुका है. दिल्ली में किसके सिर बंधेगा जीत का सहरा ये तो समय के गर्त में छिपा है, लेकिन इस चुनाव में कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनका जवाब जनता को चाहिए ही चाहिए. इन्हीं में से एक मुद्दा भ्रष्टाचार का भी है. बीते पांच सालों में केजरीवाल सरकार भ्रष्टाचार के मु्द्दे पर कितनी खरी उतरी है, ये बड़ा सवाल है. राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप के बीच आप हमें वोट कर बता सकते हैं कि क्या दिल्ली में भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है?
दरअसल, अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) का जन्म ही भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों से हुआ. पांच साल तक सत्ता में रहने के बाद पार्टी का दावा है कि केजरीवाल ने भ्रष्टाचार मुक्त शासन दिए. इन दावों से इतर कांग्रेस-बीजेपी भ्रष्टाचार का आरोप लगाने से नहीं चूक रही है.
दोनों ही पार्टी बस सेवा में भ्रष्टाचार, सत्येंद्र जैन की आय से अधिक संपत्ति और लाडली योजना में कथित गड़बड़ी की याद दिला रही है. यही नहीं पीडब्ल्यूडी मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साढ़ू सुरेन्द्र बंसल के घर हुई छापेमारी का भी विपक्षी पार्टियां जिक्र कर रही हैं. इन सब से इतर सत्तारूढ़ AAP कहना है कि सारी जांच एजेंसी केंद्र सरकार के पास है और उसने जांच भी किए हैं, अगर भ्रष्टाचार हुआ तो अब तक कोई जेल में क्यों नहीं है?
आप नेता यह भी दावा करते रहे हैं कि भ्रष्टाचार को बिल्कुल निचले स्तर पर भी खत्म करेंगे, अगर केंद्र सरकार भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) हमें सौंप दे.
2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) ने भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाया था. अरविंद केजरीवाल ने जनता को यह विश्वास दिलाया था कि उनकी सरकार बनने के बाद दिल्ली से भ्रष्टाचार को वो जड़ से मिटा देंगे. उनकी बात पर दिल्ली की जनता ने भरोसा भी किया. विधानसभा की कुल 70 में से 67 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने जीत दर्ज की.
अब देखना दिलचस्प होगा कि इस बार के विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election 2020) में आम जनता के लिए भ्रष्टाचार कितना बड़ा मुद्दा बनता है और वह मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के दावों पर कितना भरोसा करती है. दिल्ली में आठ फरवरी को वोट डाले जाएंगे और वोटों की गिनती 11 फरवरी को होगी.