नई दिल्ली:  सात साल पहले दिल्ली सरकार की सत्ता से कांग्रेस को बाहर करने के बाद अरविंद केजरीवाल इस विधानसभा चुनाव में एक के बाद एक कांग्रेस नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल किए जा रहे हैं. पूर्व विधायक शोएब इकबाल और उनके बेटे आले इकबाल के बाद सोमवार को पूर्व विधायक राम सिंह नेताजी और दिल्ली में कांग्रेस का पूर्वांचली चेहरा महाबल मिश्रा के बेटे विनय मिश्रा को केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी में शामिल करवाया. जाहिर है सवाल उठता है कि एक तरफ केजरीवाल अपनी सरकार के काम के आधार पर वोट मांग रहे हैं तो फिर उन्हें कांग्रेस पर झाड़ू चलाने की जरूरत क्यों पड़ रही है?


दरअसल दिल्ली की सियासत में सत्ता से फिसल कर तीसरे स्थान पर जाने के बाद कांग्रेस ने करीब आठ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन में सुधार किया. भले ही कांग्रेस को सातों सीटों पर हार मिली लेकिन पांच सीटों पर वो दूसरे स्थान पर रही. वोट प्रतिशत के मामले में भी उसने आम आदमी पार्टी को पीछे छोड़ दिया था. लोकसभा के वोट को विधानसभा वार बांटे तो सत्तर में से पैंसठ पर बीजेपी और पांच पर कांग्रेस ने बढ़त बनाई थी. आधी से ज्यादा सीटों पर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था. जाहिर है इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि कांग्रेस की कमर तोड़ना केजरीवाल के लिए जरूरी क्यों है.


हाल में ही नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली में शुरू हुए आंदोलन में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के मुकाबले लीड ले ली. माना जा रहा था कि इस माहौल में मुस्लिम बहुल सीटों जैसे सीलमपुर, मटियामहल, ओखला आदि पर कांग्रेस बेहद मजबूत स्थिति में हैं. लेकिन मटियामहल सीट से कांग्रेस नेता शोएब इकबाल और उनके पार्षद बेटे आप में शामिल करा कर केजरीवाल ने पुरानी दिल्ली इलाके की सीटों पर मुस्लिम वोटबैंक को सपष्ट संदेश दे दिया कि कांग्रेस मुकाबले में नहीं है. इस संदेश का असर पुरानी दिल्ली के बाहर की सीटों पर भी पड़ेगा.


इसी तरह केजरीवाल ने दक्षिण दिल्ली के गूजर समाज के बड़े नेता राम सिंह नेताजी और पश्चिमी दिल्ली से कांग्रेस के पूर्वांचली चेहरे महाबल मिश्रा के बेटे विनय मिश्रा को शामिल करा कर कांग्रेस की बची-खुची ताकत भी खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं.


जनाकार मानते हैं कि केजरीवाल पंजाब के नतीजे और हालिया लोकसभा चुनाव को देखते हुए थोड़ी सी भी गुंजाइश छोड़ना नहीं चाहते. उन्हें पता है कि एक तरफ बीजेपी के पास उसका ठोस वोट बैंक है दूसरी तरफ कांग्रेस भी अगर जिंदा हो गई तो उनकी आगे की राजनीति के लिए खतरा हो सकता है. इसलिए इस विधानसभा चुनाव में जीत के स्पष्ट संकेत होने के बावजूद वो विरोधी दलों खास तौर पर कांग्रेस के नेता तोड़ कर उसकी जमीन बंजर करने में लगे हुए हैं.


हालांकि इससे एक बड़ा सवाल ये खड़ा हुआ है कि जिस कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन कर केजरीवाल ने अपनी राजनीति शुरू की उसी के नेताओं को शामिल करा और संभावना के मुताबिक टिकट देकर वो अपने पुराने कार्यकर्ताओं को क्या संदेश दे रहे हैं? इससे पहले राज्यसभा चुनाव में भी केजरीवाल ने कांग्रेस से आए सुशील गुप्ता को आप से राज्यसभा भेजा था. केजरीवाल कांग्रेस पर झाड़ू तो चला रहे हैं कि लेकिन बटोर क्या रहे हैं ये हर कोई देख रहा है.