नई दिल्ली: दिल्ली चुनाव के नतीजे आ गए हैं. तीसरी बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने जा रही है. प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर दिल्ली की जनता को शुक्रिया कहा है. अरविंद केजरीवाल ने उन्हें चुनावी रणनीति बनाने की जिम्मेदारी थी. पिछले दो हफ्तों से प्रशांत चुप थे. बस आज के दिन का इंतज़ार कर रहे थे. जितने खुश केजरीवाल हैं, उतने ही प्रशांत भी. बहुत कुछ दांव पर प्रशांत किशोर यानी पीके का भी लगा था. जीत के बाद दोनों के गले मिलने की तस्वीर भी सोशल मीडिया में वायरल हो रही है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत का पूरा क्रेडिट केजरीवाल को जाता है. पानी, बिजली, मोहल्ला क्लिनिक से लेकर स्कूल में हुए उनके काम की चर्चा रही. लेकिन आइसिंग ऑन केक रहा प्रशांत किशोर का आइडिया. वो आइडिया कि बीजेपी के हिंदुत्व के गेम में नहीं फंसना है.


यही वजह रही कि अच्छा काम करने के बाद भी अरविंद केजरीवाल को हनुमान चालीसा गाना पड़ा. बजरंगबली के मंदिर में मत्था टेकना पड़ा. ये वो अरविंद नहीं थे जो अजान के समय अपना भाषण रोक देते थे. इस बार के चुनाव में अरविंद का नया अवतार दिखा. हनुमान भक्त वाला. धरना प्रदर्शन के एक्सपर्ट ने शाहीनबाग न जाने की कसम खा ली. जाना तो छोड़िए, शाहीनबाग के नाम से ही उन्होंने तौबा कर ली थी. डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया का मैं शाहीनबाग के साथ हूं वाला बयान भी उन्हें रत्ती भर रास नहीं आया. आम आदमी पार्टी की बैठक में तय हुआ कोई भी शाहीनबाग की चर्चा नहीं करेगा. फिर सभी छोटे बड़े नेता इससे बचते रहे. बीजेपी के लाख उकसावे के बावजूद केजरीवाल की टीम इस चक्कर में नहीं फंसी.


शाहीनबाग के बहाने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कराने की बीजेपी की कोशिशें बेकार रहीं. अमित शाह से लेकर कपिल मिश्र तक ने क्या क्या न कहा. लेकिन आप के नेताओं ने तो एक कान से सुन कर दूसरे से निकालते रहे. प्रशांत नहीं चाहते थे कि बीजेपी के हिंदुत्व के पिच पर जाकर केजरीवाल बैटिंग करें. आप के जिन नेताओं के कारण बात बिगड़ सकती थी. उन सबको साइलेंट मोड में डाल दिया गया. अमानतुल्लाह और शोएब इक़बाल जैसे मुस्लिम नेताओं को मुंह बंद रखने को कहा गया. कोशिश यही रही कि कहीं से भी ध्रुवीकरण को हवा नहीं मिले.


दिल्ली की तरह पांच साल पहले बिहार में भी चुनाव हुआ था. लालू यादव और नीतीश कुमार की जोड़ी से बीजेपी का सीधा मुकाबला था. तब लालू- नीतीश के साथ प्रशांत किशोर थे. बीजेपी की तरफ से तब भी हिंदुस्तान और पाकिस्तान कराने के प्रयास हुए. हिंदू मुसलमान का माहौल बन जाए, इसके लिए बीजेपी ने खूब जोर लगाया. पार्टी की तरफ से ये तक कहा गया कि बीजेपी हारी तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे. लेकिन लालू और नीतीश तो बस सामाजिक न्याय के एजेंडे पर ही बात करते रहे. दोनों ही पार्टियों के मुस्लिम नेताओं को चुनाव प्रचार से हटा लिया गया. उनसे कहा गया कि ऐसा कुछ भी न बोलें जिससे साम्प्रदायिक माहौल बिगड़े. ये रणनीति प्रशांत किशोर की थी. वे अपनी चाल में कामयाब रहे. यही फार्मूला इस बार भी दिल्ली के चुनाव में हिट रहा.


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