Supreme Court Judgement on K. Kavitha Bail: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (27 अगस्त) को दिल्ली आबकारी नीति मामले में भारत राष्ट्र समिति (BRS) की नेता के. कविता को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के मामलों में जमानत दे दी. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले की आलोचना की, जिसमें उसने अप्रैल में कविता की जमानत याचिका खारिज करते हुए धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के जमानत प्रावधानों में महिलाओं के लिए एक प्रमुख अपवाद के आवेदन को अस्वीकार कर दिया था.


सुप्रीम कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों पर निर्णय लेते समय न्यायालयों को न्यायिक रूप से विवेक का प्रयोग करना चाहिए. न्यायालय यह नहीं कहता कि केवल इसलिए कि कोई महिला अच्छी तरह से शिक्षित या परिष्कृत है या संसद सदस्य या विधान परिषद का सदस्य है, वह पीएमएलए अधिनियम की धारा 45 के प्रावधान के लाभ की हकदार नहीं है. हम पाते हैं कि हाई कोर्ट की एकल पीठ ने खुद को पूरी तरह से गलत दिशा में निर्देशित किया है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आगे कहा, "अगर दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश को कानून बनने दिया जाता है, तो इस विकृत टिप्पणी का मतलब होगा कि कोई भी शिक्षित महिला जमानत नहीं पा सकेगी."


कानूनी मिसाल क्या है?


2023 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने महिलाओं के लिए अपवाद को रेखांकित करते हुए मेसर्स यूनिटेक समूह के निदेशक संजय चंद्रा की पत्नी 49 वर्षीय प्रीति चंद्रा को जमानत दे दी थी. तब कविता के मामले की तरह ईडी ने तर्क दिया था कि आरोपी घरेलू महिला नहीं है. हालांकि, हाईकोर्ट ने तब कहा था कि पीएमएलए या संविधान घरेलू महिला, व्यवसायी या राजनीतिक व्यक्ति के बीच अंतर नहीं करता है, लेकिन जब इसी आधार पर के. कविता के वकीलों ने जमानत मांगी तो दिल्ली हाई कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.


क्या कहा था दिल्ली हाई कोर्ट ने?


दिल्ली हाई कोर्ट ने इसी साल 1 जुलाई को के. कविता की अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि कविता शिक्षित और समाज में एक अच्छी स्थिति वाली महिला है और उन्हें PMLA के तहत अपवाद के प्रयोजनों के लिए कमजोर महिला नहीं माना जा सकता है.


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