Kejriwal Vs LG: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज कहा कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ राष्ट्री राजधानी में 'सेवाओं' के नियंत्रण पर केंद्र और दिल्ली सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित कानूनी मुद्दे पर 9 नवंबर को सुनवाई करेगी. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वह दिन-प्रतिदिन के आधार पर मामले की सुनवाई शुरू करेगी. इस संविधान पीठ (Constitution Bench) में जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं.
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को कहा था कि दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित कानूनी मुद्दे की सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में एक संविधान पीठ का गठन किया गया है. 6 मई को, शीर्ष अदालत ने दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा था.
पूर्व CJI रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने पाया था कि कि मुख्य तर्क अनुच्छेद 239AA में 'इस तरह का कोई भी मामला केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होता है' और 'इस संविधान के प्रावधानों के अधीन' वाक्यांशों की व्याख्या से संबंधित है. पीठ ने यह भी कहा था कि ऐसा प्रतीत होता है कि विचाराधीन ट्रांसफर-पोस्टिंग मुद्दे को छोड़कर सभी मुद्दों को 2018 के अपने फैसले में संविधान पीठ द्वारा विस्तृत रूप से निपटाया गया है. यही कारण है कि पीठ ने उन मुद्दों पर फिर से विचार करना आवश्यक नहीं समझा, जो पिछले संविधान पीठों द्वारा तय किए गए हैं.
2018 का महत्वपूर्ण फैसला
2018 के फैसले में, पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली के उपराज्यपाल निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह से बंधे हैं, और दोनों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है.
क्या कहना है दिल्ली सरकार का?
इस पूरे मामले में दिल्ली सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में केंद्र सरकार के पास सिर्फ जमीन, पुलिस और लोक आदेश यानी कानून व्यवस्था के मामले में अधिकार मिला है, इसलिए वह इन्हीं से संबंधित अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग कर सकती है, लेकिन केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार को चलाने से संबंधित गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट में 2021 में संशोधन किया था, जिसके तहत उपराज्यपाल को कई और अधिकार दे दिए गए थे. दिल्ली सरकार ने इस संशोधन को भी चुनौती दी है.
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