नई दिल्ली: जब प्रदूषण के कारण दिल्ली का दम घुट रहा था तब दिल्ली सरकार फंड की कमी का रोना रो रही थी और केंद्र सरकार से मदद मांग रही थी. अब एक आरटीआई में खुलासा हुआ है कि केजरीवाल सरकार के पास लगभग 800 करोड़ का फंड पहले से मौजूद था लेकिन उसने प्रदूषण से निपटने के लिए इस पैसे का इस्तेमाल ही नहीं किया.


787 करोड़, 12 लाख, 67 हजार और 201 रुपये. जी हां, दिल्ली सरकार के अधीन ट्रांसपोर्ट विभाग के खाते में ये पैसे पिछले दो सालों से धूल फांक रहे थे लेकिन दिल्ली सरकार पैसों का रोना रोती रही. ये भारी भरकम रकम पिछले दो सालों में पर्यावरण के नाम पर दिल्ली सरकार के पास आया था लेकिन सरकार ने दिल्ली की जनता को प्रदूषण से बचाने के लिए इन पैसों का इस्तेमाल नहीं किया.



राजधानी दिल्ली में 124 एंट्री प्वाइंट हैं जहां से हर रोज शहर में लाखों ट्रक दूसरे राज्यों से आते हैं और इनकी वजह से दिल्ली की आबो-हवा जहरीली होती है. इसी आंकड़े को देखते हुए साल 2015 में NGT ने ट्रकों की एंट्री पर पर्यावरण सेस लगाने का निर्देश दिया था.


RTI में खुलासा हुआ है कि NGT के आदेश के पहले साल 2014 में दिल्ली ट्रांसपोर्ट विभाग का अकाउंट निल यानि खाली था. मतलब पर्यावरण सेस का एक भी पैसा खाते में नहीं था. लेकिन साल 2015 में आदेश आने के बाद खाते में 50 करोड़ 65 लाख 28 हजार 300 रुपये जमा हुए. ये आंकडा साल 2016 में बढ़कर लगभग 386 करोड़ तक पहुंच गया यानि सीधे 6 गुना बढ़ोतरी हुई. साल 2017 में यानि आदेश के दो साल बाद दिल्ली सरकार को पर्यावरण सेस से 787 करोड़ 12 लाख 67 हजार 201 रुपये की कमाई हुई.


मतलब दिल्ली के प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली सरकार के पास अथाह पैसा था लेकिन सरकार ने सही कदम नहीं उठाए. इस खुलासे के बाद दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने कैमरे पर कुछ नहीं बोला लेकिन ऑफ रिकॉर्ड कहा कि सरकार इलेक्ट्रिक बसें खरीदेगी. प्रदूषण से निपटने में फेल दिल्ली सरकार के सुस्त रवैये पर एनजीटी पहले ही फटकार लगा चुकी है. और अब RTI से हुए इस खुलासे ने दिल्ली सरकार की मुसीबतों को बढ़ा दिया है जिस पर जवाब देना केजरीवाल सरकार के लिए आसान नहीं होगा.